"पन्नालाल पटेल": अवतरणों में अंतर
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'''पन्नालाल पटेल''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Pannalal Patel'', जन्म: [[7 मई]], [[1912]], [[राजस्थान]]; मृत्यु: [[5 अप्रैल]], [[1989]]) [[गुजराती भाषा]] के जानेमाने साहित्यकार थे। उन्हें 'रणजितराम पुरस्कार' तथा '[[ज्ञानपीठ पुरस्कार]]' से सम्मानित किया गया था। वे गुजराती के अग्रणी कथाकार रहे। लगभग छह दशक पूर्व गुजराती साहित्य जगत में उनका अविर्भाव एक चमत्कार माना गया था। | {{सूचना बक्सा साहित्यकार | ||
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13:58, 23 मार्च 2017 का अवतरण
पन्नालाल पटेल
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पूरा नाम | पन्नालाल पटेल |
जन्म | 7 मई, 1912 |
जन्म भूमि | डूंगरपुर, राजस्थान |
मृत्यु | 5 अप्रैल, 1989 |
मृत्यु स्थान | अहमदाबाद, गुजरात |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | साहित्य रचना |
भाषा | गुजराती |
पुरस्कार-उपाधि | 'रणजितराम पुरस्कार' (1950) तथा 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' (1985)। |
प्रसिद्धि | गुजराती साहित्यकार |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | ‘गूँगे सुर बाँसुरी के’ पन्नालाल पटेल की कहानियों का संग्रह है, जिसमें उन्होंने प्रायः दलित, पीड़ित, उत्पीड़ित मनुष्य को अपना विषय बनाया है। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
पन्नालाल पटेल (अंग्रेज़ी:Pannalal Patel, जन्म: 7 मई, 1912, राजस्थान; मृत्यु: 5 अप्रैल, 1989, गुजरात) गुजराती भाषा के जानेमाने साहित्यकार थे। उन्हें 'रणजितराम पुरस्कार' तथा 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था। वे गुजराती के अग्रणी कथाकार रहे। लगभग छह दशक पूर्व गुजराती साहित्य जगत में उनका अविर्भाव एक चमत्कार माना गया था।
जीवन परिचय
पन्नालाल पटेल का जन्म 7 मई, 1912 को राजस्थान राज्य के डूंगरपुर ज़िले के मंडली नामक गाँव में हुआ था। उनका निधन 5 अप्रैल, 1989 में हुआ। उनकी शिक्षा-दीक्षा के बारे में जानकारी के रूप में कहा गया है कि उन्होंने प्राथमिक तक शिक्षा ग्रहण की थी, जिसको अंग्रेज़ी में चार मानक से पहचाना जाता है।
लेखन कार्य
पन्नालाल पटेल के लेखन कार्य के बारे में बताया जाये तो अगणित लेखन कार्य और प्रकाशन कार्य उन्होंने किया था, जिसमें उपन्यास, कहानियाँ, नाटक, जीवनी, बच्चों के साहित्य और विविध प्रकार के अन्य लेख भी लिखे शामिल हैं। उनके सहित्य का भारत की लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।
लगभग छह दशक पूर्व गुजराती साहित्य जगत में पन्नालाल पटेल का अविर्भाव एक चमत्कार माना गया। ग्रामीण जीवन के आत्मीय एवं प्रामाणिक चित्रण के साथ ही उन्होंने लोकभाषा का प्रयोग कुछ इस प्रकार किया कि उसकी गति और गीतात्मकता गुजराती गद्य के सन्दर्भ में अपूर्व मानी गयी। पन्नालाल पटेल की सर्वोत्कृष्ट इक्कीस कहानियों की चयनिका ‘गूँगे सुर बाँसुरी के’ कथा साहित्य के सुधी पाठकों के लिए उपलब्ध हो चुकी है। इन कहानियों में उन्होंने प्रायः दलित, पीड़ित, उत्पीड़ित मनुष्य को अपना विषय बनाया है।
पुरस्कार व सम्मान
भारतीय साहित्य में विशिष्ट योगदान के लिए पन्नालाल पटेल को 1950 में 'रणजितराम पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था और 1985 में 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से भी सम्मानित किया गया था।
मृत्यु
पन्नालाल पटेल की मृत्यु 5 अप्रैल सन 1989 को अहमदाबाद, गुजरात में हुई।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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