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प्रसिद्ध कम्युनिस्ट नेता अजय घोष का जन्म 20 फ़रवरी 1909 ई. को चित्तरंजन बंगाल में हुआ था, जहां अजय नाम की एक नदी बहति है। उनके बाबा ने उस नदी के नाम पर ही उनका नाम अजय रख दिया था। अजय घोष के पिता का नाम शचीन्द्र नाथ घोष था, जो [[कानपुर]] के प्रतिष्ठित चिकित्सक थे। इनकी माँ का नाम सुधान्शु बाला था। अजय चार भाई और दो बहन थे। अजय घोष की शिक्षा पहले कानपुर फिर [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] में हुई। अजय घोष ने इलाहाबाद से बीएससी पास किया था।  
प्रसिद्ध कम्युनिस्ट नेता अजय घोष का जन्म 20 फ़रवरी 1909 ई. को चित्तरंजन बंगाल में हुआ था, जहां अजय नाम की एक नदी बहति है। उनके बाबा ने उस नदी के नाम पर ही उनका नाम अजय रख दिया था। अजय घोष के पिता का नाम शचीन्द्र नाथ घोष था, जो [[कानपुर]] के प्रतिष्ठित चिकित्सक थे। इनकी माँ का नाम सुधान्शु बाला था। अजय चार भाई और दो बहन थे। अजय घोष की शिक्षा पहले कानपुर फिर [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] में हुई। अजय घोष ने इलाहाबाद से बीएससी पास किया था।  
==क्रांतिकारी जीवन==
==क्रांतिकारी जीवन==
अजय घोष [[1923]] में [[सरदार भगत सिंह|भगत सिंह]], [[चंद्रशेखर आज़ाद]], [[बटुकेश्वर दत्त]] आदि के सम्पर्क में आये और क्रांतिकारी दल 'हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकेशन एसोसिएशन के सदस्य बन गए। [[1928]] में सांडर्स की हत्या और [[1929]] में केंद्रीय असेम्बली में बम फेंकने के बाद जब द्वितीय लाहौर षड्यंत्र केस के नाम से भगत सिंह आदि पर मुकदमा चला तो उस मुक्कदमे में अभियुक्त अजय घोष भी सम्मिलित थे, किंतु उनके विरुद्ध पर्याप्त सबूत न मिलने के कारण बाद में वे रिहा कर दिये गये।
अजय घोष [[1923]] में [[भगत सिंह|सरदार भगत सिंह]], [[चंद्रशेखर आज़ाद]], [[बटुकेश्वर दत्त]] आदि के सम्पर्क में आये और क्रांतिकारी दल 'हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकेशन एसोसिएशन के सदस्य बन गए। [[1928]] में सांडर्स की हत्या और [[1929]] में केंद्रीय असेम्बली में बम फेंकने के बाद जब द्वितीय लाहौर षड्यंत्र केस के नाम से भगत सिंह आदि पर मुकदमा चला तो उस मुक्कदमे में अभियुक्त अजय घोष भी सम्मिलित थे, किंतु उनके विरुद्ध पर्याप्त सबूत न मिलने के कारण बाद में वे रिहा कर दिये गये।
==कम्युनिस्ट नेता==
==कम्युनिस्ट नेता==
अजय घोष विचाराधीन कैदी के रूप में जेल में रहने के कारण कम्युनिस्ट विचारों के सम्पर्क में आए। [[1931]] की कराची कांग्रेस में उनका [[सुभाषचंद्र बोस]] से भी परिचय हुआ। फिर भी उनके ऊपर सबसे अधिक प्रभाव कम्युनिष्ट नेता श्रीनिवास सर देसाई का पड़ा और वे भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी में सम्मिलित हो गये। [[1936]] में अजय घोष कम्युनिष्ट पार्टी की पोलितब्यूरो के सदस्य बने और [[1951]] से [[1952]] तक पार्टी जनरल सेक्रेटरी रहे। वे पार्टी के प्रमुख पत्र 'दि नेस्शनल फ्रंट' के संपादकीय मंडल में भी थे और उन्होंने कई पुस्तिकाएं भी लिखीं।
अजय घोष विचाराधीन कैदी के रूप में जेल में रहने के कारण कम्युनिस्ट विचारों के सम्पर्क में आए। [[1931]] की कराची कांग्रेस में उनका [[सुभाषचंद्र बोस]] से भी परिचय हुआ। फिर भी उनके ऊपर सबसे अधिक प्रभाव कम्युनिष्ट नेता श्रीनिवास सर देसाई का पड़ा और वे भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी में सम्मिलित हो गये। [[1936]] में अजय घोष कम्युनिष्ट पार्टी की पोलितब्यूरो के सदस्य बने और [[1951]] से [[1952]] तक पार्टी जनरल सेक्रेटरी रहे। वे पार्टी के प्रमुख पत्र 'दि नेस्शनल फ्रंट' के संपादकीय मंडल में भी थे और उन्होंने कई पुस्तिकाएं भी लिखीं।

12:06, 18 मई 2017 का अवतरण

अजय घोष
अजय घोष
अजय घोष
पूरा नाम अजय घोष
जन्म 20 फ़रवरी, 1909
जन्म भूमि चित्तरंजन, बंगाल
मृत्यु 11 जनवरी, 1962
मृत्यु कारण क्षय रोग के कारण
अभिभावक पिता- शचीन्द्र नाथ घोष और माता- सुधान्शु बाला
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि स्वतंत्रता सेनानी
धर्म हिंदू
जेल यात्रा अजय घोष सांडर्स की हत्या, केंद्रीय असेम्बली में बम फेंकने के कारण जेल गये।
शिक्षा स्नातक
अन्य जानकारी अजय घोष पर सबसे अधिक प्रभाव कम्युनिष्ट नेता श्रीनिवास सर देसाई का पड़ा और वे भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी में साम्मिलित हो गये।

अजय घोष (अंग्रेज़ी: Ajoy Ghosh, जन्म: 20 फ़रवरी, 1909, चित्तरंजन, बंगाल; मृत्यु: 11 जनवरी, 1962) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता थे। ये हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य रहे तथा 1928 ई. में सरदार भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु एवं बटुकेश्वर दत्त के साथ कारावास गए एवं लाहौर काण्ड में इन्हें भी अभियुक्त के रूप में सज़ा दी गई।[1]

परिचय

प्रसिद्ध कम्युनिस्ट नेता अजय घोष का जन्म 20 फ़रवरी 1909 ई. को चित्तरंजन बंगाल में हुआ था, जहां अजय नाम की एक नदी बहति है। उनके बाबा ने उस नदी के नाम पर ही उनका नाम अजय रख दिया था। अजय घोष के पिता का नाम शचीन्द्र नाथ घोष था, जो कानपुर के प्रतिष्ठित चिकित्सक थे। इनकी माँ का नाम सुधान्शु बाला था। अजय चार भाई और दो बहन थे। अजय घोष की शिक्षा पहले कानपुर फिर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हुई। अजय घोष ने इलाहाबाद से बीएससी पास किया था।

क्रांतिकारी जीवन

अजय घोष 1923 में सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, बटुकेश्वर दत्त आदि के सम्पर्क में आये और क्रांतिकारी दल 'हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकेशन एसोसिएशन के सदस्य बन गए। 1928 में सांडर्स की हत्या और 1929 में केंद्रीय असेम्बली में बम फेंकने के बाद जब द्वितीय लाहौर षड्यंत्र केस के नाम से भगत सिंह आदि पर मुकदमा चला तो उस मुक्कदमे में अभियुक्त अजय घोष भी सम्मिलित थे, किंतु उनके विरुद्ध पर्याप्त सबूत न मिलने के कारण बाद में वे रिहा कर दिये गये।

कम्युनिस्ट नेता

अजय घोष विचाराधीन कैदी के रूप में जेल में रहने के कारण कम्युनिस्ट विचारों के सम्पर्क में आए। 1931 की कराची कांग्रेस में उनका सुभाषचंद्र बोस से भी परिचय हुआ। फिर भी उनके ऊपर सबसे अधिक प्रभाव कम्युनिष्ट नेता श्रीनिवास सर देसाई का पड़ा और वे भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी में सम्मिलित हो गये। 1936 में अजय घोष कम्युनिष्ट पार्टी की पोलितब्यूरो के सदस्य बने और 1951 से 1952 तक पार्टी जनरल सेक्रेटरी रहे। वे पार्टी के प्रमुख पत्र 'दि नेस्शनल फ्रंट' के संपादकीय मंडल में भी थे और उन्होंने कई पुस्तिकाएं भी लिखीं।

निधन

अजय घोष जब 1941 में देवली कैप्म जेल में बंदी थे, तब उन्हें क्षय रोग लग गया और इसी से 11 जनवरी, 1962 को उनका देहांत हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

नागोरी, डॉ. एस.एल. “खण्ड 3”, स्वतंत्रता सेनानी कोश (गाँधीयुगीन), 2011 (हिन्दी), भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: गीतांजलि प्रकाशन, जयपुर, पृष्ठ सं 2।

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 14 |

बाहरी कड़ियाँ

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