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'''पिनाराई विजयन''' ([[अंग्रेज़ी]]: Pinarayi Vijayan जन्म: [[21 मार्च]], [[1944]]) एक भारतीय राजनेता हैं जो कि वर्तमान में [[केरल]] के [[मुख्यमंत्री]] हैं, वह [[भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी)]] के पोलित ब्यूरो के सदस्य [[1998]] से [[2015]] तक के सीपीआई (एम) के [[केरल]] स्टेट कमेटी के सबसे लंबे समय तक सेवा सचिव थे। उन्होंने केरल सरकार में उर्जा मंत्री के रूप में भी काम किया। विजयन ने मई [[2016]] के [[केरल]] विधानसभा चुनाव में धर्मदों के लिए सीपीआई (एम) के उम्मीदवार के रूप में सीट जीती।
'''राजेंद्र कृष्ण''' ([[अंग्रेज़ी]]: Rajendra Krishan जन्म: [[6 जून ]], [[1919]] मृत्यु: [[23 सितम्बर]], [[1987]]) हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार थे।
===जीवन परिचय===
===जीवन परिचय===
पिनाराई विजयन का जन्म [[21 मार्च]], [[1944]] को [[कन्नूर]] जिले के पिनरायी में एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके माता पिता काफी गरीब थे और इस गरीबी को विजयन ने भी झेला। इसके बाद पेट पालने के लिए विजयन ने एक हैंडलूम वर्कर के तौर पर भी काम किया। इसी दौरान मजदूरों पर होने वाले अत्याचार उन्हें अंदर तक झकझोरते थे। इसके मुकाबले के लिए उन्होंने काम छोड़कर आगे पढ़ाई करने का फैसला किया और गर्वमेंट ब्रेनन कॉलेज में प्रवेश ले लिया। यहीं से उन्होंने छात्र राजनीति के जरिए सीपीआई की छात्र इकाई एसएसफआई में शामिल हो गये। यहां से केरल स्टूडेंट फेडरेशन के सचिव और अध्यक्ष पद से होते हुए वह केरल स्टेट यूथ फेडरेशन के अध्यक्ष तक पहुंचे।<ref name="bb">{{cite web |url=http://www.amarujala.com/india-news/pinarayi-vijayan-taken-oath-of-chief-minister-of-kerala|title=पी विजयन बने मुख्यमंत्री|accessmonthday=06 अप्रेल |accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=amarujala.com|language=हिन्दी}}</ref>
राजेंद्र कृष्ण का जन्म [[6 जून ]], [[1919]] को गुजरात जिला (वर्तमान में पाकिस्तान) में जलालपुर जट्टन में एक दुग्गल परिवार में हुआ था। जब वह आठवीं कक्षा में पढ़ रहे थे तब उन्हें कविता की ओर आकर्षित किया गया था। उन्होंने शिमला में नगरपालिका के कार्यालय में [[1942]] तक क्लर्क के रूप में काम किया था। उस अवधि के दौरान, उन्होंने पूर्वी और पश्चिमी लेखकों को बड़े पैमाने पर पढ़ा और कविता लिखी उन्होंने फ़िरक गोरखपुरी और अहसान डैनीज के उर्दू कविता, पेंट और निरला की हिंदी कविताओं के लिए अपनी ऋणी व्यक्त की। उन दिनों दिल्ली-पंजाब के समाचार पत्रों ने विशेष पूरक कार्यक्रमों को जन्म दिया और कृष्ण जन्माष्टमी को चिह्नित करने के लिए कविता प्रतियोगिता आयोजित की, जिसमें उन्होंने नियमित रूप से भाग लिया।
===राजनीतिक परिचय===
===फिल्मी करियर की शुरुआत===
1970 में वह कूथुपरंबा से पहली बार विधानसभा पहुंचे। 1977 और 1991 में भी वह यहां से विधानसभा के लिए चुने गए। इसके बाद 1996 के चुनाव में वह पयन्नूर से जीतकर विधानसभा पहुंचे। 1996 से 1998 तक वह राज्य के मंत्रीमंडल में भी रहे। 1998 में उन्हें सीपीआईएम का राज्य सचिव बनाया गया।
[[1940]] के दशक के मध्य में, कृष्णन एक पटकथा लेखक बनने के लिए मुंबई गए। [[1947]] में पहली बार जनता नामक फिल्म की पटकथा लिखी और उसी वर्ष एक और फिल्म जंजीर में गीत लिखने का मौका मिल गया। जंजीर का कोई गीत नेट (अंतर्जाल) पर उपलब्ध नहीं है। उसके संगीत निर्देशक कृष्ण दयाल थे और गीत पंडित फानी, पंडित गाफिल, लालचंद बिस्मिल और राजेंद्र कृष्ण ने लिखे हैं। चारों गीतकारों के नाम एक साथ दिए गए हैं। गीतों के सिर्फ मुखड़े दिए गए हैं लेकिन यह नहीं बताया गया कि कौन-सा मुखड़ा किस गीतकार का है? गायकों के नाम भी नदारद हैं। [[1948]] के शुरू होते ही [[महात्मा गांधी]] की हत्या के बाद ‘सुनो सुनो ऐ दुनिया वालो बापू की ये अमर कहानी’ से उनका नाम घर-आंगन में गूंजने लगा। यह गीत मोहम्मद रफी ने गाया था और इसकी धुन उस जमाने के प्रख्यात संगीत निर्देशक हुस्नलाल भगतराम ने बनाई थी। उसी वर्ष आज की रात के गीतों से मशहूर हुए। आज की रात में उन्होंने सामाजिक यथार्थ को अपने गीत का विषय बनाते हुए लिखा ‘क्या जाने अमीरी जो गरीबी का मजा है दौलत उन्हें दी है तो हमें सब्र दिया है’। स्वर मीना कपूर का है और इसकी धुन हुस्नलाल भगतराम ने बनाई है। यह किसी गजल का मतला भी हो सकता है और किसी गीत का मुखड़ा भी लेकिन अपने गर्भ में यह [[कबीर]] के इस दोहे का रौशन बीज छुपाए हुए है ‘गोधन गजधन बाजिधन और रतनधन खान जब आए संतोषधन सब धन धूरि समान’। इसी फिल्म में सुरैया की आवाज में राजेंद्र कृष्ण का एक और गीत मशहूर हुआ ‘क्यूं ले चला है ऐ दिल मुझको प्यार की गली में हो’। जी एम दुर्रानी की पुरदर्द आवाज में राजेंद्र का यह गीत भी मकबूल हुआ
साल 2002 में उन्हें माकमा की सर्वोच्‍च इकाई पोलित ब्यूरो में शामिल कर लिया गया। राजनीति में विजयन को काफी उतार चढ़ाव देखने को मिले। इस दौरान उनके दामन पर कई गहरे दाग भी लगे, इन्हीं में से एक रहा 1998 में ईके नयनार की सरकार में ऊर्जा मंत्री रहते एसएनसी लवलीन घोटाले में नाम आना। तीन बिजलीघरों की मरम्‍मत का काम उन्होंने कनाडा की फर्म को दे दिया था।<ref name="bb"/>
===राजेन्द्र के कुछ मशहुर गीत===
375 करोड़ के इस घोटाले में उन्हें भी आरोपी बनाया गया। आरोप ये भी था कि कनाडा की फर्म को यह ठेका देने के लिए वह बिना किसी विशेषज्ञ के साथ कनाडा गए थे और खुद ही इस ठेके को फाइनल कर दिया। उन पर ऊर्जा सचिव की सलाह को भी दरकिनार करने का आरोप लगा था। मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई तो एजेंसी ने उनका नाम भी सातवें आरोपी के तौर पर चार्जशीट में शामिल किया था। जिसमें उन्हें जमानत मिल गई ‌थी। हालांक‌ि बाद में यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया, लेकिन घोटाले के दाग पिनाराई विजयन के दामन से नहीं छूट पाए। इसके अलावा भी विवादों से उनका साबका जारी रहा। साल 2009 में उनका नाम उस समय विवादों में आ गया जब चेन्नई एयरपोर्ट पर तलाशी के दौरान उनके बैग से पिस्टल की पांच गोलियां मिली थीं। उस समय उनके पास पिस्टल का लाइसेंस भी नहीं ‌था। राजनीति में पूर्व मुख्यमंत्री अच्युतानंद से उनकी तनातनी जगजाहिर है। एलडीएफ की पिछली सरकार के दौरान भी उनमें और अच्युतानंद में सीएम की कुर्सी के लिए खींचतान मची थी लेकिन बाजी वयोवृद्ध अच्युतानंद के हाथ लगी। इस बार भी वह उन्हीं अच्युतानंद को रेस में पीछे छोड़कर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे हैं।<ref name="bb"/>
‘प्यार की शमा को तकदीर बुझाती क्यूं है किसी बर्बादे-मोहब्बत को सताती क्यूं है’। और 1948 में बनी फिल्म प्यार की जीत में कमर जलालाबादी और राजेंद्र कृष्ण के गीत थे। राजेंद्र का यह गीत बहुत मकबूल हुआ ‘तेरे नैनों ने चोरी किया मेरा छोटा सा जिया परदेसिया’। 1948 में ‘बापू की यह अमर कहानी’ इस कदर मशहूर और मकबूल हो गया था कि 1949 की एक फिल्म का नाम ही अमर कहानी रख दिया गया और उसमें गीत लिखने की दावत राजेंद्र कृष्ण को ही दी गई। सुरैया की आवाज में इस फिल्म का यह गीत बहुत मकबूल हुआ ‘दीवाली की रात पिया घर आने वाले हैं सजन घर आने वाले हैं’। इसकी धुन हुस्नलाल भगतराम ने बनाई थी। इस फिल्म के और भी कई गीत मकबूल हुए; उनमें गीता दत्त की गाई एक गजल भी थी जिसका मतला इस तरह था ‘ये कैसी दिल्लगी है कहां का ये प्यार है कुछ ऐतबार भी नहीं कुछ ऐतबार है’। सुरैया की आवाज में राजेंद्र का यह गीत भी बहुत पसंद किया गया ‘उमंगों पर जवानी छा गई अब तो चले आओ तुम्हारी याद फिर तड़पा गई अब तो चले आ’’। [[1949]] में लाहौर और बड़ी बहन के गीत लिखे जो बेहद मकबूल हुए और राजेंद्र कृष्ण चोटी के गीतकारों में शुमार किए जाने लगे। लाहौर में संगीत दिया था प्रख्यात निर्देशक श्यामसुंदर ने और राजेंद्र कृष्ण का यह गीत बेहद मकबूल हुआ ‘बहारें फिर भी आएंगी मगर हम तुम जुदा होंगे घटाएं फिर भी छाएंगी मगर हम तुम जुदा होंगे’। एक गीतकार के रूप में वह दीनानाथ मधोक और कमर जलालाबादी के नजदीक पड़ते हैं जो मन की भावनाओं को सीधे-सच्चे शब्दों में और सादा अंदाज में कहने में यकीन रखते हैं और कोरी भावनाओं को कविता का साज-सिंगार पहनाने की चिंता नहीं करते। श्रोता तक उनकी कविता सुनते-सुनते ही संवेदित हो जाती है, उसे समझने और सराहने के लिए उसे कोशिश नहीं करनी पड़ती, कसरत का तो सवाल ही नहीं पैदा होता। बड़ी बहन के गीतों से यह बात और भी स्पष्टता से समझी जा सकती है। ‘चुप चुप खड़े हो जरूर कोई बात है पहली मुलाकात है ये पहली मुलाकात है’ में कविता कहां है? लेकिन इस गीत की मकबूलियत की हद यह थी कि ढोलक और मंजीरों पर भगवान का कीर्तन करने वाली गृहणियों ने इसकी तर्ज पर भजन बना लिए थे और कोठेवालियां भी इसे गा-गाकर वाहवाही लूटने में मशगूल थीं। इसे लता और प्रेमलता ने आवाजें दी थीं और इसकी धुन हुस्नलाल भगतराम ने बनाई थी। इसी फिल्म में लता का एक और एकल गीत था जिसने लोकप्रियता का कीर्तिमान कायम किया ‘चले जाना नहीं नैन मिलाके हाय सैंया बेदरदी सैंया बेदरदी’। इस फिल्म के गीतों की लोकप्रियता का प्रमाण यह है कि बड़ी बहन के निर्माता ने खुश होकर गीतकार राजेंद्र कृष्ण को एक ऑस्टिन कार भेंट की और गीत लिखने के लिए एक हजार रु. माहवार पर नौकर रख लिया। 1949 में आसूदाहाल लोग ही ऑस्टिन कार का सपना देखते थे और एक हजार प्रति माह की तनख्वाह अच्छी-खासी रकम हुआ करती थी। [[1950]] में कमल के फूल नामक फिल्म में राजेंद्र कृष्ण का यह गीत सुरैया की आवाज में बेहद मकबूल हुआ ‘मिटा सके तो मिटा दे दुनिया बनाने वाला बना ही देगा रुला सके तो रुला दे दुनिया हंसाने वाला हंसा ही देगा’। इसकी धुन श्यामसुंदर ने बनाई थी। [[1950]] की ही फिल्म समाधि में उनका यह गीत लता की आवाज में है और बहुत मकबूल हुआ था ‘वो पास आ रहे हैं हम दूर जा रहे हैं अपनी खुशी से अपनी दुनिया मिटा रहे हैं। इसकी धुन भी सी रामचंद्र ने बनाई थी। [[1951]] में बहार आई जिसमें राजेंद्र कृष्ण के कई गीत मकबूल हुए। शमशाद बेगम के स्वर में ‘सैंया दिल में आना रे ओ आके फिर न जाना रे छम छमाछम छम’सड़कों और चौराहों पर बजने लगा। इसकी छमछम करती धुन सचिन देबबर्मन ने बनाई थी। किशोरकुमार का यह हल्का-फुलका मशहूर गीत भी राजेंद्र कृष्ण ने इसी फिल्म में लिखा था: ‘कसूर आपका हुजूर आपका न मेरा नाम लीजिए न मेरे बाप का’। [[1952]] में आशियाना आई जिसमें लता और तलत ने यह गीत अलग-अलग गाया था ‘मेरा करार ले जा मुझे बेकरार कर जा दम भर को प्यार कर जा’। इसकी धुन सी रामचंद्र ने बनाई थी। इस फिल्म में तलत का एक और गीत ‘मैं पागल मेरा मनुआ पागल’भी बहुत मशहूर हुआ था और लता का यह गीत भी बहुत पसंद किया गया था ‘समां है बहार का ले ले मजा प्यार का’’। इसी फिल्म से सी रामचंद्र और राजेंद्र कृष्ण की विख्यात जोड़ी की शुरुआत मानी जाती है जिसने आगे चलकर हिंदी फिल्मों में एक से एक बढ़कर गीतों का योगदान किया। [[1952]] की ही एक और फिल्म साकी में राजेंद्र कृष्ण का लिखा और सी रामचंद्र का स्वरबद्ध किया गया यह गीत बहुत मकबूल हुआ ‘अजल से हुस्नपरस्ती लिखी थी किस्मत में गुजर रही है मेरी जिंदगी मोहब्बत में मेरा मिजाज लड़कपन से आशिकाना है। आवाज मोहम्मद रफी की है। हम कह नहीं सकते कि ‘मेरा मिजाज लड़कपन से आशिकाना है’ किसी पुराने शायर का मिसरा है या राजेंद्र कृष्ण की ही रचना है। हम इसे लड़कपन से सुनते और बोलते आए हैं। लेकिन अगर यह राजेंद्र का ही मिसरा है तो कमाल है कि यह मिसरा अब जबान का मिसरा बन चुका है और मुहावरे की तरह इस्तेमाल में आता है। [[1953]] में अनारकली आई जिसेे इस जोड़ी का सर्वश्रेष्ठ योगदान माना जाता है। कई फिल्म विशेषज्ञों ने माना है कि अगर राजेंद्र कृष्ण अनारकली के अलावा फिल्मों में एक भी गीत न लिखते तो भी फिल्मी गीतकारों में उनका नाम अमर हो जाता। लोकप्रियता के मामले में अनारकली में लता के गीतों ने महल और दुलारी जैसी फिल्मों को भी पीछे छोड़ दिया। अनारकली के सब गीत राजेंद्र कृष्ण ने नहीं लिखे हैं। उसमें जां निसार अख्तर और हसरत जयपुरी का एक-एक गीत है और शैलेंद्र के दो, और दोनों मशहूर। लेकिन अनारकली गीतों-भरी फिल्म थी और बाकी नौ गीत राजेंद्र कृष्ण के ही हैं, लिहाजा वह ही उसके प्रमुख गीतकार हैं और फिल्म के गीतों का मुख्य श्रेय भी उन्हीं को जाता है।
====राजनैतिक पद====
===प्रसिद्ध जोड़ी===
#विजयन राज्य अध्यक्ष और केरल छात्र संघ के सचिव तथा केरल राज्य यूथ फेडरेशन (KSYF) के अध्यक्ष थे।
दरअसल लता-सी रामचंद्र और राजेंद्रकृष्ण की एक तिकड़ी बनती है और ये तीनों जब भी एक जगह जमा होते हैं तो एक से बढ़कर एक रसवंती रचनाएं अस्तित्व में आती हैं। लता-रामचंद्र और राजेंद्र की तिकड़ी ने अनारकली में क्या गुल खिलाया है, जरा देखें? फिल्म के इस गीत को लेते है : ‘मोहब्बत ऐसी धड़कन है जो समझाई नहीं जाती’। मोहब्बत में दिल का धड़कना तो आम है, हिंदी-उर्दू शायरी ऐसी धड़कनों से भरी पड़ी है लेकिन यहां तो उसे धड़कन ही बना दिया गया है। यह रूपक अलंकार का चमत्कार है जो इस सीधे-सादे बयान को कविता के रुपहले रूमाल में लपेटकर एक नई आभा दे रहा है।
#विजयन ने केरल राज्य के सह अध्यक्ष ऑपरेटिव बैंक के रूप में कार्य किया।
===योगदान===
#[[1970]], [[1977]], [[1991]] और [[1996]] में [[केरल]] में विधानसभा के लिए चुने गए।
[[1966]] की फिल्म नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे में [[आशा भोंसले]] की आवाज में राजेंद्र का यह गीत बेहद लोकप्रिय हुआ ‘कोई शिकवा भी नहीं कोई शिकायत भी नहीं और तुम्हें हमसे वो पहली सी मोहब्बत भी नहीं’। अब राजेंद्र को फिल्मों का मिलना कम हो गया था लेकिन जब भी मौका मिलता था वह कोई न कोई मकबूल गीत रच देते थे और सुर्खियों में आ जाते थे। [[1970]] की फिल्म गोपी में उनका लिखा यह गीत देखिए: ‘सुख के सब साथी दुख का न कोय मेरे राम मेरे राम तेरा ना है सांचा दूजा न कोय’। गोपी में महेंद्र कपूर का भी एक सदाबहार गीत है जो आज भी सुनने को मिल जाता है, ‘रामचंद्र कह गए सिया से ऐसा कलजुग आएगा हंस चुगेगा दाना-दुनका कौवा मोती खाएगा’। अब राजेंद्र पचास के लपेटे में थे लेकिन उम्र ने उनके तेवरों पर जरा भी असर नहीं छोड़ा था। पर अब गीतकारों की नई खेप आ गई थी और उन्हें मिलनेवाले काम में कमी आ गई थी। वह इसकी परवा भी कहां करते थे? घुड़दौड़ में 46 लाख का करमुक्त जैकपॉट जीतकर वह पहले ही फिल्म उद्योग के सबसे धनी लेखक कहलाने लगे थे। अपने परम मित्र संतोषी की तरह वह ऐयाशी से खर्च करने वाले शख्स न थे बल्कि पैसे का विवेकशील उपयोग करने में विश्वास करते थे। लेकिन वह अंतिम दिनों तक सक्रिय रहने में भी विश्वास करते थे इसलिए जब भी मौका मिलता था, काम से इनकार नहीं करते थे। कुछ न कुछ काम उन्हें आखिरी दम तक मिलता रहा। इसके अलावा वो तमिल भाषा पर भी हिंदी जैसा ही अधिकार रखते थे और तमिल फिल्मों के लिए भी उतने ही मशहूर थे। हिंदी के कम पाठक जानते हैं कि राजेंद्र कृष्ण ने एवीएम स्टूडियो के लिए 18 फिल्में तमिल में लिखी थीं। उनकी अंतिम फिल्म अल्ला रक्खा 1986 में आई जबकि दो ही साल बाद [[1988]] में बंबई में उनकी मृत्यु हो गई। मृत्यु से पहले वह आग का दरिया के लिए गीत लिख रहे थे। यह फिल्म उनकी मृत्यु के दो साल बाद 1990 में प्रदर्शित की गई। अनुराधा पौडवाल का गीत ‘रिश्ते में मोहब्बत का संसार हमारा था’ आम तौर पर उनका आखिरी गीत माना जाता है।
#[[1996]] और [[1998]] के बीच इन्होंने [[केरल]] सरकार में मंत्री के रूप में कार्य किया।
===पुरस्कार===
राजेन्द्र कृष्ण ने फिल्म खंदन (1965) में "तुम्ही मेरे मंदिर, तुम्ही मेरी पूजा" के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार जीता था।

12:52, 19 मई 2017 का अवतरण

कविता2
राजेंद्र कृष्ण
राजेंद्र कृष्ण
पूरा नाम राजेंद्र कृष्ण
जन्म 6 जून , 1919
जन्म भूमि जलालपुर जट्टन
संतान पुत्र-
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र ग़ीतकार
मुख्य फ़िल्में जंजीर, प्यार की जीत
पुरस्कार-उपाधि राजेन्द्र कृष्ण ने फिल्म खंदन (1965) में "तुम्ही मेरे मंदिर, तुम्ही मेरी पूजा" के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार जीता था।

राजेंद्र कृष्ण (अंग्रेज़ी: Rajendra Krishan जन्म: 6 जून , 1919 मृत्यु: 23 सितम्बर, 1987) हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार थे।

जीवन परिचय

राजेंद्र कृष्ण का जन्म 6 जून , 1919 को गुजरात जिला (वर्तमान में पाकिस्तान) में जलालपुर जट्टन में एक दुग्गल परिवार में हुआ था। जब वह आठवीं कक्षा में पढ़ रहे थे तब उन्हें कविता की ओर आकर्षित किया गया था। उन्होंने शिमला में नगरपालिका के कार्यालय में 1942 तक क्लर्क के रूप में काम किया था। उस अवधि के दौरान, उन्होंने पूर्वी और पश्चिमी लेखकों को बड़े पैमाने पर पढ़ा और कविता लिखी उन्होंने फ़िरक गोरखपुरी और अहसान डैनीज के उर्दू कविता, पेंट और निरला की हिंदी कविताओं के लिए अपनी ऋणी व्यक्त की। उन दिनों दिल्ली-पंजाब के समाचार पत्रों ने विशेष पूरक कार्यक्रमों को जन्म दिया और कृष्ण जन्माष्टमी को चिह्नित करने के लिए कविता प्रतियोगिता आयोजित की, जिसमें उन्होंने नियमित रूप से भाग लिया।

फिल्मी करियर की शुरुआत

1940 के दशक के मध्य में, कृष्णन एक पटकथा लेखक बनने के लिए मुंबई गए। 1947 में पहली बार जनता नामक फिल्म की पटकथा लिखी और उसी वर्ष एक और फिल्म जंजीर में गीत लिखने का मौका मिल गया। जंजीर का कोई गीत नेट (अंतर्जाल) पर उपलब्ध नहीं है। उसके संगीत निर्देशक कृष्ण दयाल थे और गीत पंडित फानी, पंडित गाफिल, लालचंद बिस्मिल और राजेंद्र कृष्ण ने लिखे हैं। चारों गीतकारों के नाम एक साथ दिए गए हैं। गीतों के सिर्फ मुखड़े दिए गए हैं लेकिन यह नहीं बताया गया कि कौन-सा मुखड़ा किस गीतकार का है? गायकों के नाम भी नदारद हैं। 1948 के शुरू होते ही महात्मा गांधी की हत्या के बाद ‘सुनो सुनो ऐ दुनिया वालो बापू की ये अमर कहानी’ से उनका नाम घर-आंगन में गूंजने लगा। यह गीत मोहम्मद रफी ने गाया था और इसकी धुन उस जमाने के प्रख्यात संगीत निर्देशक हुस्नलाल भगतराम ने बनाई थी। उसी वर्ष आज की रात के गीतों से मशहूर हुए। आज की रात में उन्होंने सामाजिक यथार्थ को अपने गीत का विषय बनाते हुए लिखा ‘क्या जाने अमीरी जो गरीबी का मजा है दौलत उन्हें दी है तो हमें सब्र दिया है’। स्वर मीना कपूर का है और इसकी धुन हुस्नलाल भगतराम ने बनाई है। यह किसी गजल का मतला भी हो सकता है और किसी गीत का मुखड़ा भी लेकिन अपने गर्भ में यह कबीर के इस दोहे का रौशन बीज छुपाए हुए है ‘गोधन गजधन बाजिधन और रतनधन खान जब आए संतोषधन सब धन धूरि समान’। इसी फिल्म में सुरैया की आवाज में राजेंद्र कृष्ण का एक और गीत मशहूर हुआ ‘क्यूं ले चला है ऐ दिल मुझको प्यार की गली में हो’। जी एम दुर्रानी की पुरदर्द आवाज में राजेंद्र का यह गीत भी मकबूल हुआ

राजेन्द्र के कुछ मशहुर गीत

‘प्यार की शमा को तकदीर बुझाती क्यूं है किसी बर्बादे-मोहब्बत को सताती क्यूं है’। और 1948 में बनी फिल्म प्यार की जीत में कमर जलालाबादी और राजेंद्र कृष्ण के गीत थे। राजेंद्र का यह गीत बहुत मकबूल हुआ ‘तेरे नैनों ने चोरी किया मेरा छोटा सा जिया परदेसिया’। 1948 में ‘बापू की यह अमर कहानी’ इस कदर मशहूर और मकबूल हो गया था कि 1949 की एक फिल्म का नाम ही अमर कहानी रख दिया गया और उसमें गीत लिखने की दावत राजेंद्र कृष्ण को ही दी गई। सुरैया की आवाज में इस फिल्म का यह गीत बहुत मकबूल हुआ ‘दीवाली की रात पिया घर आने वाले हैं सजन घर आने वाले हैं’। इसकी धुन हुस्नलाल भगतराम ने बनाई थी। इस फिल्म के और भी कई गीत मकबूल हुए; उनमें गीता दत्त की गाई एक गजल भी थी जिसका मतला इस तरह था ‘ये कैसी दिल्लगी है कहां का ये प्यार है कुछ ऐतबार भी नहीं कुछ ऐतबार है’। सुरैया की आवाज में राजेंद्र का यह गीत भी बहुत पसंद किया गया ‘उमंगों पर जवानी छा गई अब तो चले आओ तुम्हारी याद फिर तड़पा गई अब तो चले आ’’। 1949 में लाहौर और बड़ी बहन के गीत लिखे जो बेहद मकबूल हुए और राजेंद्र कृष्ण चोटी के गीतकारों में शुमार किए जाने लगे। लाहौर में संगीत दिया था प्रख्यात निर्देशक श्यामसुंदर ने और राजेंद्र कृष्ण का यह गीत बेहद मकबूल हुआ ‘बहारें फिर भी आएंगी मगर हम तुम जुदा होंगे घटाएं फिर भी छाएंगी मगर हम तुम जुदा होंगे’। एक गीतकार के रूप में वह दीनानाथ मधोक और कमर जलालाबादी के नजदीक पड़ते हैं जो मन की भावनाओं को सीधे-सच्चे शब्दों में और सादा अंदाज में कहने में यकीन रखते हैं और कोरी भावनाओं को कविता का साज-सिंगार पहनाने की चिंता नहीं करते। श्रोता तक उनकी कविता सुनते-सुनते ही संवेदित हो जाती है, उसे समझने और सराहने के लिए उसे कोशिश नहीं करनी पड़ती, कसरत का तो सवाल ही नहीं पैदा होता। बड़ी बहन के गीतों से यह बात और भी स्पष्टता से समझी जा सकती है। ‘चुप चुप खड़े हो जरूर कोई बात है पहली मुलाकात है ये पहली मुलाकात है’ में कविता कहां है? लेकिन इस गीत की मकबूलियत की हद यह थी कि ढोलक और मंजीरों पर भगवान का कीर्तन करने वाली गृहणियों ने इसकी तर्ज पर भजन बना लिए थे और कोठेवालियां भी इसे गा-गाकर वाहवाही लूटने में मशगूल थीं। इसे लता और प्रेमलता ने आवाजें दी थीं और इसकी धुन हुस्नलाल भगतराम ने बनाई थी। इसी फिल्म में लता का एक और एकल गीत था जिसने लोकप्रियता का कीर्तिमान कायम किया ‘चले जाना नहीं नैन मिलाके हाय सैंया बेदरदी सैंया बेदरदी’। इस फिल्म के गीतों की लोकप्रियता का प्रमाण यह है कि बड़ी बहन के निर्माता ने खुश होकर गीतकार राजेंद्र कृष्ण को एक ऑस्टिन कार भेंट की और गीत लिखने के लिए एक हजार रु. माहवार पर नौकर रख लिया। 1949 में आसूदाहाल लोग ही ऑस्टिन कार का सपना देखते थे और एक हजार प्रति माह की तनख्वाह अच्छी-खासी रकम हुआ करती थी। 1950 में कमल के फूल नामक फिल्म में राजेंद्र कृष्ण का यह गीत सुरैया की आवाज में बेहद मकबूल हुआ ‘मिटा सके तो मिटा दे दुनिया बनाने वाला बना ही देगा रुला सके तो रुला दे दुनिया हंसाने वाला हंसा ही देगा’। इसकी धुन श्यामसुंदर ने बनाई थी। 1950 की ही फिल्म समाधि में उनका यह गीत लता की आवाज में है और बहुत मकबूल हुआ था ‘वो पास आ रहे हैं हम दूर जा रहे हैं अपनी खुशी से अपनी दुनिया मिटा रहे हैं। इसकी धुन भी सी रामचंद्र ने बनाई थी। 1951 में बहार आई जिसमें राजेंद्र कृष्ण के कई गीत मकबूल हुए। शमशाद बेगम के स्वर में ‘सैंया दिल में आना रे ओ आके फिर न जाना रे छम छमाछम छम’सड़कों और चौराहों पर बजने लगा। इसकी छमछम करती धुन सचिन देबबर्मन ने बनाई थी। किशोरकुमार का यह हल्का-फुलका मशहूर गीत भी राजेंद्र कृष्ण ने इसी फिल्म में लिखा था: ‘कसूर आपका हुजूर आपका न मेरा नाम लीजिए न मेरे बाप का’। 1952 में आशियाना आई जिसमें लता और तलत ने यह गीत अलग-अलग गाया था ‘मेरा करार ले जा मुझे बेकरार कर जा दम भर को प्यार कर जा’। इसकी धुन सी रामचंद्र ने बनाई थी। इस फिल्म में तलत का एक और गीत ‘मैं पागल मेरा मनुआ पागल’भी बहुत मशहूर हुआ था और लता का यह गीत भी बहुत पसंद किया गया था ‘समां है बहार का ले ले मजा प्यार का’’। इसी फिल्म से सी रामचंद्र और राजेंद्र कृष्ण की विख्यात जोड़ी की शुरुआत मानी जाती है जिसने आगे चलकर हिंदी फिल्मों में एक से एक बढ़कर गीतों का योगदान किया। 1952 की ही एक और फिल्म साकी में राजेंद्र कृष्ण का लिखा और सी रामचंद्र का स्वरबद्ध किया गया यह गीत बहुत मकबूल हुआ ‘अजल से हुस्नपरस्ती लिखी थी किस्मत में गुजर रही है मेरी जिंदगी मोहब्बत में मेरा मिजाज लड़कपन से आशिकाना है। आवाज मोहम्मद रफी की है। हम कह नहीं सकते कि ‘मेरा मिजाज लड़कपन से आशिकाना है’ किसी पुराने शायर का मिसरा है या राजेंद्र कृष्ण की ही रचना है। हम इसे लड़कपन से सुनते और बोलते आए हैं। लेकिन अगर यह राजेंद्र का ही मिसरा है तो कमाल है कि यह मिसरा अब जबान का मिसरा बन चुका है और मुहावरे की तरह इस्तेमाल में आता है। 1953 में अनारकली आई जिसेे इस जोड़ी का सर्वश्रेष्ठ योगदान माना जाता है। कई फिल्म विशेषज्ञों ने माना है कि अगर राजेंद्र कृष्ण अनारकली के अलावा फिल्मों में एक भी गीत न लिखते तो भी फिल्मी गीतकारों में उनका नाम अमर हो जाता। लोकप्रियता के मामले में अनारकली में लता के गीतों ने महल और दुलारी जैसी फिल्मों को भी पीछे छोड़ दिया। अनारकली के सब गीत राजेंद्र कृष्ण ने नहीं लिखे हैं। उसमें जां निसार अख्तर और हसरत जयपुरी का एक-एक गीत है और शैलेंद्र के दो, और दोनों मशहूर। लेकिन अनारकली गीतों-भरी फिल्म थी और बाकी नौ गीत राजेंद्र कृष्ण के ही हैं, लिहाजा वह ही उसके प्रमुख गीतकार हैं और फिल्म के गीतों का मुख्य श्रेय भी उन्हीं को जाता है।

प्रसिद्ध जोड़ी

दरअसल लता-सी रामचंद्र और राजेंद्रकृष्ण की एक तिकड़ी बनती है और ये तीनों जब भी एक जगह जमा होते हैं तो एक से बढ़कर एक रसवंती रचनाएं अस्तित्व में आती हैं। लता-रामचंद्र और राजेंद्र की तिकड़ी ने अनारकली में क्या गुल खिलाया है, जरा देखें? फिल्म के इस गीत को लेते है : ‘मोहब्बत ऐसी धड़कन है जो समझाई नहीं जाती’। मोहब्बत में दिल का धड़कना तो आम है, हिंदी-उर्दू शायरी ऐसी धड़कनों से भरी पड़ी है लेकिन यहां तो उसे धड़कन ही बना दिया गया है। यह रूपक अलंकार का चमत्कार है जो इस सीधे-सादे बयान को कविता के रुपहले रूमाल में लपेटकर एक नई आभा दे रहा है।

योगदान

1966 की फिल्म नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे में आशा भोंसले की आवाज में राजेंद्र का यह गीत बेहद लोकप्रिय हुआ ‘कोई शिकवा भी नहीं कोई शिकायत भी नहीं और तुम्हें हमसे वो पहली सी मोहब्बत भी नहीं’। अब राजेंद्र को फिल्मों का मिलना कम हो गया था लेकिन जब भी मौका मिलता था वह कोई न कोई मकबूल गीत रच देते थे और सुर्खियों में आ जाते थे। 1970 की फिल्म गोपी में उनका लिखा यह गीत देखिए: ‘सुख के सब साथी दुख का न कोय मेरे राम मेरे राम तेरा ना है सांचा दूजा न कोय’। गोपी में महेंद्र कपूर का भी एक सदाबहार गीत है जो आज भी सुनने को मिल जाता है, ‘रामचंद्र कह गए सिया से ऐसा कलजुग आएगा हंस चुगेगा दाना-दुनका कौवा मोती खाएगा’। अब राजेंद्र पचास के लपेटे में थे लेकिन उम्र ने उनके तेवरों पर जरा भी असर नहीं छोड़ा था। पर अब गीतकारों की नई खेप आ गई थी और उन्हें मिलनेवाले काम में कमी आ गई थी। वह इसकी परवा भी कहां करते थे? घुड़दौड़ में 46 लाख का करमुक्त जैकपॉट जीतकर वह पहले ही फिल्म उद्योग के सबसे धनी लेखक कहलाने लगे थे। अपने परम मित्र संतोषी की तरह वह ऐयाशी से खर्च करने वाले शख्स न थे बल्कि पैसे का विवेकशील उपयोग करने में विश्वास करते थे। लेकिन वह अंतिम दिनों तक सक्रिय रहने में भी विश्वास करते थे इसलिए जब भी मौका मिलता था, काम से इनकार नहीं करते थे। कुछ न कुछ काम उन्हें आखिरी दम तक मिलता रहा। इसके अलावा वो तमिल भाषा पर भी हिंदी जैसा ही अधिकार रखते थे और तमिल फिल्मों के लिए भी उतने ही मशहूर थे। हिंदी के कम पाठक जानते हैं कि राजेंद्र कृष्ण ने एवीएम स्टूडियो के लिए 18 फिल्में तमिल में लिखी थीं। उनकी अंतिम फिल्म अल्ला रक्खा 1986 में आई जबकि दो ही साल बाद 1988 में बंबई में उनकी मृत्यु हो गई। मृत्यु से पहले वह आग का दरिया के लिए गीत लिख रहे थे। यह फिल्म उनकी मृत्यु के दो साल बाद 1990 में प्रदर्शित की गई। अनुराधा पौडवाल का गीत ‘रिश्ते में मोहब्बत का संसार हमारा था’ आम तौर पर उनका आखिरी गीत माना जाता है।

पुरस्कार

राजेन्द्र कृष्ण ने फिल्म खंदन (1965) में "तुम्ही मेरे मंदिर, तुम्ही मेरी पूजा" के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार जीता था।