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[[मेवाड़]] में प्रजामंडल की राजनीतिक गतिविधियों में अपनी अग्रणी स्थिति बनाने से पहले मोहन लाल सुखाड़िया ने इंदुबाला सुखाड़िया के साथ [[अंतर्जातीय विवाह]] कर लिया। ब्यावर के शिक्षित एवं प्रगतिशील समाज के लोगों ने [[आर्य समाज]] की वैदिक रीति से यह [[विवाह]] [[1 जून]], [[1938]] को संपन्न करवाया।
[[मेवाड़]] में प्रजामंडल की राजनीतिक गतिविधियों में अपनी अग्रणी स्थिति बनाने से पहले मोहन लाल सुखाड़िया ने इंदुबाला सुखाड़िया के साथ [[अंतर्जातीय विवाह]] कर लिया। ब्यावर के शिक्षित एवं प्रगतिशील समाज के लोगों ने [[आर्य समाज]] की वैदिक रीति से यह [[विवाह]] [[1 जून]], [[1938]] को संपन्न करवाया।


अपने संस्मरणों में सुखाड़िया जी ने लिखा है कि- "विवाह के बाद [[नाथद्वारा]] जाकर मां का आशीर्वाद पाना मेरा कर्तव्य था, जो मुझे सबसे अधिक भयपूर्ण और मानसिक रूप से कष्टप्रद लग रहा था; लेकिन मुझमें आक्रोश भी बहुत था। जो मां मुझे बचपन में स्नेह से पालती रही तथा हज़ारों कल्पनाएं मेरे लिए संजोती रहीं, वही आज मुझसे मिलने में आत्मग्लानि और मुंह देखने में घृणा तथा मौत की सी अनुभूति कर उठी है। मेरे लिए यह विषम परिस्थिति थी। इसमें मां का भी क्या दोष था? वह ऐसे ही वातावरण में पली थी। जीवन भर [[श्रीनाथजी उदयपुर|श्रीनाथजी]] की [[भक्ति]] एवं साधना में छुआछूत की पृष्ठभूमि में सतत संलग्न रही। वह भला मेरे इस विवाह से कैसे प्रसन्न होकर आशीर्वाद दे सकती थी? और उनके इस व्यवहार के प्रति मेरा भी क्रोध कैसे शांत हो सकता था? दोनों ओर ही मजबूरी थी। मित्रों की मित्रता का परीक्षण भी इसी समय होना था। मुझे पता चला कि नाथद्वारा का [[वैष्णव सम्प्रदाय|वैष्णव समाज]] सक्रिय रूप से मेरा विरोध करने वाला था, लेकिन मेरे मित्रों ने इसकी तनिक भी परवाह नहीं की और मुझे एक बग्घी में वर और इंदु को वधू के वेश में बिठाकर मेरे चारों ओर घेरा बनाकर एक जुलूस निकाला। जुलूस नाथद्वारा के पूरे बाज़ार में घूमा। ‘मोहन भैया जिंदाबाद’ के नारे भी लगाए। पूरे शहर की परिक्रमा की। किसी भी विरोध में मित्रों के पैर नहीं उखड़े। शायद [[मुख्यमंत्री]] के रूप में भी ऐसा भव्य और अपूर्व उत्साहजनक जुलूस नहीं निकला, वैसा यह अनोखा और विलक्षण जुलूस था।"<ref>{{cite web |url= http://rajasthanstudy.blogspot.in/2012/07/blog-post_9730.html|title= मोहन लाल सुखाड़िया जी के जीवन के अनुछुए पहलू|accessmonthday=14 मार्च |accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= राजस्थान स्टडी|language= हिन्दी}}</ref>
अपने संस्मरणों में सुखाड़िया जी ने लिखा है कि- "विवाह के बाद [[नाथद्वारा]] जाकर माँ का आशीर्वाद पाना मेरा कर्तव्य था, जो मुझे सबसे अधिक भयपूर्ण और मानसिक रूप से कष्टप्रद लग रहा था; लेकिन मुझमें आक्रोश भी बहुत था। जो माँ मुझे बचपन में स्नेह से पालती रही तथा हज़ारों कल्पनाएं मेरे लिए संजोती रहीं, वही आज मुझसे मिलने में आत्मग्लानि और मुंह देखने में घृणा तथा मौत की सी अनुभूति कर उठी है। मेरे लिए यह विषम परिस्थिति थी। इसमें माँ का भी क्या दोष था? वह ऐसे ही वातावरण में पली थी। जीवन भर [[श्रीनाथजी उदयपुर|श्रीनाथजी]] की [[भक्ति]] एवं साधना में छुआछूत की पृष्ठभूमि में सतत संलग्न रही। वह भला मेरे इस विवाह से कैसे प्रसन्न होकर आशीर्वाद दे सकती थी? और उनके इस व्यवहार के प्रति मेरा भी क्रोध कैसे शांत हो सकता था? दोनों ओर ही मजबूरी थी। मित्रों की मित्रता का परीक्षण भी इसी समय होना था। मुझे पता चला कि नाथद्वारा का [[वैष्णव सम्प्रदाय|वैष्णव समाज]] सक्रिय रूप से मेरा विरोध करने वाला था, लेकिन मेरे मित्रों ने इसकी तनिक भी परवाह नहीं की और मुझे एक बग्घी में वर और इंदु को वधू के वेश में बिठाकर मेरे चारों ओर घेरा बनाकर एक जुलूस निकाला। जुलूस नाथद्वारा के पूरे बाज़ार में घूमा। ‘मोहन भैया जिंदाबाद’ के नारे भी लगाए। पूरे शहर की परिक्रमा की। किसी भी विरोध में मित्रों के पैर नहीं उखड़े। शायद [[मुख्यमंत्री]] के रूप में भी ऐसा भव्य और अपूर्व उत्साहजनक जुलूस नहीं निकला, वैसा यह अनोखा और विलक्षण जुलूस था।"<ref>{{cite web |url= http://rajasthanstudy.blogspot.in/2012/07/blog-post_9730.html|title= मोहन लाल सुखाड़िया जी के जीवन के अनुछुए पहलू|accessmonthday=14 मार्च |accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= राजस्थान स्टडी|language= हिन्दी}}</ref>
====सामाजिक प्रगति व परिवर्तन के पुरोधा====
====सामाजिक प्रगति व परिवर्तन के पुरोधा====
इस प्रकार जात-पाँत और छुआछूत जैसी बुराइयों के प्रबल विरोधी मोहन लाल सुखाड़िया सामाजिक प्रगति व परिवर्तन के ऐसे पुरोधा थे, जिन्होंने न केवल प्रगतिशीलता के लिए समाज में जागरूकता पैदा की, अपितु समाज व [[परिवार]] के घोर विरोध के बावजूद अपने स्वयं के जीवन को जात-पाँत के बंधनों से मुक्त कर आदर्श प्रस्तुत किया। परिवार का विरोध काफ़ी अर्से तक रहा, किंतु बाद में उनकी [[माता]] ने अपने पुत्र और पुत्रवधू को आशीर्वाद भी दिया। उनके निधन के पश्चात हुए लोकसभा चुनाव में श्रीमती इंदुबाला सुखाड़िया [[उदयपुर]] [[लोक सभा]] से [[सांसद]] भी चुनी गईं।
इस प्रकार जात-पाँत और छुआछूत जैसी बुराइयों के प्रबल विरोधी मोहन लाल सुखाड़िया सामाजिक प्रगति व परिवर्तन के ऐसे पुरोधा थे, जिन्होंने न केवल प्रगतिशीलता के लिए समाज में जागरूकता पैदा की, अपितु समाज व [[परिवार]] के घोर विरोध के बावजूद अपने स्वयं के जीवन को जात-पाँत के बंधनों से मुक्त कर आदर्श प्रस्तुत किया। परिवार का विरोध काफ़ी अर्से तक रहा, किंतु बाद में उनकी [[माता]] ने अपने पुत्र और पुत्रवधू को आशीर्वाद भी दिया। उनके निधन के पश्चात हुए लोकसभा चुनाव में श्रीमती इंदुबाला सुखाड़िया [[उदयपुर]] [[लोक सभा]] से [[सांसद]] भी चुनी गईं।

14:10, 2 जून 2017 का अवतरण

मोहन लाल सुखाड़िया
मोहन लाल सुखाड़िया
मोहन लाल सुखाड़िया
पूरा नाम मोहन लाल सुखाड़िया
जन्म 31 जुलाई, 1916
जन्म भूमि झालावाड़, राजस्थान
मृत्यु 2 फ़रवरी, 1982
मृत्यु स्थान बीकानेर, राजस्थान
अभिभावक पुरुषोत्तम लाल सुखाड़िया
पति/पत्नी इन्दुबाला सुखाड़िया
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि राजनीतिज्ञ
पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
पद मुख्यमंत्री
कार्य काल 13 नवम्बर, 1954 से 9 जुलाई, 1971
शिक्षा इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा
विद्यालय 'वीरमाता जीजाबाई टेक्नोलॉजीकल इंस्टीट्यूट', मुम्बई
संबंधित लेख राजस्थान, राजस्थान के मुख्यमंत्री
अन्य जानकारी सुखाड़िया जी सामाजिक प्रगति व परिवर्तन के ऐसे पुरोधा थे, जिन्होंने न केवल प्रगतिशीलता के लिए समाज में जागरूकता पैदा की, अपितु समाज व परिवार के घोर विरोध के बावजूद स्वयं के जीवन को जात-पाँत के बंधनों से मुक्त कर आदर्श प्रस्तुत किया।

मोहन लाल सुखाड़िया (अंग्रेज़ी: Mohan Lal Sukhadia ; जन्म- 31 जुलाई, 1916, झालावाड़, राजस्थान; मृत्यु- 2 फ़रवरी, 1982, बीकानेर) राजस्थान के प्रसिद्ध राजनीतिज्ञों में से एक थे। उन्हें "आधुनिक राजस्थान का निर्माता" भी कहा जाता है। मोहन लाल सुखाड़िया सबसे लम्बे समय तक राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे थे।

जन्म

मोहन लाल सुखाड़िया का जन्म 31 जुलाई, 1916 को राजस्थान के झालावाड़ में हुआ था। वे एक जैन परिवार से सम्बंध रखते थे। उनके पिता का नाम पुरुषोत्तम लाल सुखाड़िया था, जो बम्बई (आधुनिक मुम्बई) और सौराष्ट्र के अच्छे क्रिकेटरों में गिने जाते थे।

शिक्षा

राजस्थान के नाथद्वारा और उदयपुर में प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद मोहन लाल सुखाड़िया 'वी.जे.टी.आई.' (वीरमाता जीजाबाई टेक्नोलॉजीकल इंस्टीट्यूट) से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा के लिए मुंबई के लिए चले गए। वहाँ वह छात्र संगठन के महासचिव चुने गए।

राष्ट्रीय नेताओं से सम्पर्क

कॉलेज में मोहन लाल सुखाड़िया देश के प्रमुख राष्ट्रीय नेताओं, जैसे- सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभभाई पटेल, यूसुफ़ मेहरली तथा अशोक मेहता के सम्पर्क में आ गए। सुखाड़िया जी निरंतर कांग्रेस कार्यकर्ताओं की मीटिंग आदि में उपस्थित रहते थे।

व्यावसायिक शुरुआत

जब मोहन लाल सुखाड़िया वापस नाथद्वारा, राजस्थान आ गए, तब उन्होंने एक छोटी-सी इलेक्ट्रिक दुकान से व्यावसायिक जीवन शुरू किया। इस दुकान में ही वे और उनके साथी ब्रिटिश साम्राज्य के कुशासन और सामाजिक-आर्थिक सुधारों के लिए योजनाएँ आदि बनाया करते थे।

विवाह

मेवाड़ में प्रजामंडल की राजनीतिक गतिविधियों में अपनी अग्रणी स्थिति बनाने से पहले मोहन लाल सुखाड़िया ने इंदुबाला सुखाड़िया के साथ अंतर्जातीय विवाह कर लिया। ब्यावर के शिक्षित एवं प्रगतिशील समाज के लोगों ने आर्य समाज की वैदिक रीति से यह विवाह 1 जून, 1938 को संपन्न करवाया।

अपने संस्मरणों में सुखाड़िया जी ने लिखा है कि- "विवाह के बाद नाथद्वारा जाकर माँ का आशीर्वाद पाना मेरा कर्तव्य था, जो मुझे सबसे अधिक भयपूर्ण और मानसिक रूप से कष्टप्रद लग रहा था; लेकिन मुझमें आक्रोश भी बहुत था। जो माँ मुझे बचपन में स्नेह से पालती रही तथा हज़ारों कल्पनाएं मेरे लिए संजोती रहीं, वही आज मुझसे मिलने में आत्मग्लानि और मुंह देखने में घृणा तथा मौत की सी अनुभूति कर उठी है। मेरे लिए यह विषम परिस्थिति थी। इसमें माँ का भी क्या दोष था? वह ऐसे ही वातावरण में पली थी। जीवन भर श्रीनाथजी की भक्ति एवं साधना में छुआछूत की पृष्ठभूमि में सतत संलग्न रही। वह भला मेरे इस विवाह से कैसे प्रसन्न होकर आशीर्वाद दे सकती थी? और उनके इस व्यवहार के प्रति मेरा भी क्रोध कैसे शांत हो सकता था? दोनों ओर ही मजबूरी थी। मित्रों की मित्रता का परीक्षण भी इसी समय होना था। मुझे पता चला कि नाथद्वारा का वैष्णव समाज सक्रिय रूप से मेरा विरोध करने वाला था, लेकिन मेरे मित्रों ने इसकी तनिक भी परवाह नहीं की और मुझे एक बग्घी में वर और इंदु को वधू के वेश में बिठाकर मेरे चारों ओर घेरा बनाकर एक जुलूस निकाला। जुलूस नाथद्वारा के पूरे बाज़ार में घूमा। ‘मोहन भैया जिंदाबाद’ के नारे भी लगाए। पूरे शहर की परिक्रमा की। किसी भी विरोध में मित्रों के पैर नहीं उखड़े। शायद मुख्यमंत्री के रूप में भी ऐसा भव्य और अपूर्व उत्साहजनक जुलूस नहीं निकला, वैसा यह अनोखा और विलक्षण जुलूस था।"[1]

सामाजिक प्रगति व परिवर्तन के पुरोधा

इस प्रकार जात-पाँत और छुआछूत जैसी बुराइयों के प्रबल विरोधी मोहन लाल सुखाड़िया सामाजिक प्रगति व परिवर्तन के ऐसे पुरोधा थे, जिन्होंने न केवल प्रगतिशीलता के लिए समाज में जागरूकता पैदा की, अपितु समाज व परिवार के घोर विरोध के बावजूद अपने स्वयं के जीवन को जात-पाँत के बंधनों से मुक्त कर आदर्श प्रस्तुत किया। परिवार का विरोध काफ़ी अर्से तक रहा, किंतु बाद में उनकी माता ने अपने पुत्र और पुत्रवधू को आशीर्वाद भी दिया। उनके निधन के पश्चात हुए लोकसभा चुनाव में श्रीमती इंदुबाला सुखाड़िया उदयपुर लोक सभा से सांसद भी चुनी गईं।

मुख्यमंत्री

मोहन लाल सुखाड़िया को आधुनिक राजस्थान का निर्माता कहा जाता है। इन्होंने सर्वाधिक समय लगभग 17 वर्ष तक राजस्थान के मुख्यमंत्री पद पर कार्य किया। वे 1954 से 1971 तक राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे। बाद में कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के राज्यपाल भी रहे।

निधन

मोहन लाल सुखाड़िया जी का निधन 2 फ़रवरी, 1982 को बीकानेर में हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मोहन लाल सुखाड़िया जी के जीवन के अनुछुए पहलू (हिन्दी) राजस्थान स्टडी। अभिगमन तिथि: 14 मार्च, 2015।

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