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07:11, 3 जून 2017 का अवतरण

बिशन नारायण धर
बिशन नारायण धर
बिशन नारायण धर
पूरा नाम बिशन नारायण धर
जन्म 1864
जन्म भूमि बाराबंकी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1916
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि राजनीतिज्ञ
पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
संबंधित लेख भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, कांग्रेस अधिवेशन
अन्य जानकारी बिशन नारायण धर सन 1911 में कलकत्ता में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में अध्यक्ष बनाये गए थे। वे धर्म और सामाजिक सुधारों पर बहुत उदार विचारों वाले थे।

बिशन नारायण धर (अंग्रेज़ी: Bishan Narayan Dar, जन्म- 1864, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 1916) जाने माने लेखक और लोकप्रिय नेता थे। वे कलकत्ता नगर निगम के सदस्य और बंगाल विधान परिषद के सदस्य रहे थे। बिशन नारायण धर सन 1911 में कलकत्ता में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में अध्यक्ष बनाये गए थे।

परिचय

बिशन नारायण धर का जन्म सन 1864 में बाराबंकी, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा की शुरुआत उर्दू और फ़ारसी के साथ अभिजात उत्तर भारतीय वर्ग की पारंपरिक शैली से की। उन्होंने अपनी कॉलेज शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। फिर वे इंग्लैंड चले गये, जहां उन्होंने क़ानून की पढ़ाई की और बार में चले गये। सन 1887 में वापसी के बाद उन्होंने अवध में वकील के रूप में अपनी प्रैक्टिस शुरू की। सार्वजनिक मामलों और अपने देश के कल्याण से जुड़े कामों में बिशन नारायण धर की रुचि थी, जिसके चलते वे अपने सफल पेशेवर कॅरियर को बहुत ज्यादा ऊंचाई नहीं दे पाये। सन 1892 में वे राजनीति में कूद पड़े और 1916 में हुई उनकी मृत्यु तक राष्ट्रीय आंदोलन में सबसे अधिक सक्रिय व्यक्तित्व के रूप में बने रहे।[1]

राजनीतिक शुरुआत

सन 1892 में बिशन नारायण धर ने सबसे पहले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में हिस्सा लिया और उस समय से लगातार वह कांग्रेस सत्र में नियमित रूप से अपनी भागीदारी दर्ज कराते रहे। वह कांग्रेस के सबसे प्रखर वक्ताओं में से एक थे। उन्होंने 1911 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन की अध्यक्षता की और उनका अध्यक्षीय भाषण कांग्रेस के इतिहास में सर्वश्रेष्ठ भाषणों में से एक था। वह उत्तर प्रदेश के राजनीतिक सम्मेलनों की एक प्रमुख हस्ती थे।

राष्ट्रवादी हितों की वकालत

20वीं सदी की शुरुआत में कई वर्षों तक इंपीरियल विधान परिषद के सदस्य के रूप में बिशन नारायण धर ने साहसपूर्वक राष्ट्रवादी हितों की वकालत की और सरकारी नीतियों तथा उपायों की आलोचना की। उनके राजनीतिक विचार स्पष्ट तौर पर कांग्रेस सत्रों में दिए गए भाषणों, इंपीरियल विधान परिषद में और उनके द्वारा लिखे गये कई लेखों में परिलक्षित होते हैं। 1890 में विधान परिषद में सुधार पर कांग्रेस सत्र में बोलते हुए उन्होंने विशेष अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व के विचार का विरोध किया था। उनका कहना था कि- "विधान परिषद ऐसी संस्था है, जहाँ राष्ट्रीय हितों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए और हर तरह के सांप्रदायिक हितों और पूर्वाग्रही वर्गों को बाहर रखा जाना चाहिए। राष्ट्रीय परिषद का उद्देश्य पूरे भारत के आम मसलों पर चर्चा करने के लिए ही है। इसलिये सिद्धांततः मेरी अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व के किसी भी खंड पर आपत्ति है।"[1]

इसके बाद कांग्रेस के 1911 सत्र में अपने अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने कहा- "सांप्रदायिक राजनीतिक संगठन हमेशा आपत्तिजनक होंगे, और भारत के मुकाबले कहीं भी ऐसा नहीं है, जहां जातीय, धार्मिक और सामाजिक पूर्वाग्रह इस संरचना में घुसने के लिये तत्पर हों और जिस वास्तविक उद्देश्य के लिये उनकी शुरुआत की गई हो उसी को विकृत कर दें।"

ब्रिटिश न्याय भावना में विश्वास

उनके समय के दूसरे राष्ट्रवादियों की तरह बिशन नारायण धर का ब्रिटिश न्याय भावना में विश्वास था, लेकिन इसके साथ ही वह सरकारी नीतियों और उपायों के प्रबल आलोचक थे। वे नौकरशाही के भारतीयकरण के पक्ष में थे तथा इंग्लैंड और भारत में एक साथ सिविल सेवा परीक्षाओं को करवाना चाहते थे।

सरकारी अधिकारियों की आलोचना

सन 1893 में आजमगढ़, उत्तर प्रदेश में जब गौहत्या दंगे हुए, जिसमें हिन्दुओं का भारी मात्रा में उत्पीड़न किया गया। बिशन नारायण धर ने सताए गये हिन्दुओं की ओर से क़ानूनी अदालतों और प्रेस में लड़ाईयां लड़ीं। आजमगढ़ पर्चों में उन्होंने स्थिति से निपटने में विफल रहने के कारण सरकारी अधिकारियों की आलोचना की। इससे पूरे देश में सनसनी पैदा हो गई।

लेखक

बिशन नारायण धर एक बेहतरीन लेखक भी थे। मार्च, 1910 में 'लीडर' में प्रकाशित उनके लेख "वर्तमान राजनीतिक स्थिति" ने सरकार को संपादक और प्रकाशक के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए उकसाने का काम किया।[1]

उदार विचार

बिशन नारायण धर धर्म और सामाजिक सुधारों पर बहुत उदार विचारों वाले थे। कश्मीरी पंडित समुदाय ने उन्हें इंग्लैंड जाने के कारण निर्वासित करने की घोषणा कर दी और 1887 में वापसी पर उनसे प्रायश्चित करने की मांग की। उन्होंने निर्भीकता से इनकार कर दिया और अंत में प्रगतिशील तत्वों की मदद से पुरानी धर्म सभा को भंग कर दिया तथा एक नया संगठन खड़ा किया, जिसे 'बिशन सभा' के नाम से जाना जाने लगा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 बिशन नारायण धर (हिन्दी) inc.in। अभिगमन तिथि: 3 जून, 2017।

संबंधित लेख

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