"धूमकेतु": अवतरणों में अंतर
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*[[सौरमण्डल]] के छोर पर बहुत ही छोटे–छोटे अरबों पिण्ड विद्यमान हैं, जो धूमकेतु या [[पुच्छल तारा]] कहलाते हैं। | *[[सौरमण्डल]] के छोर पर बहुत ही छोटे–छोटे अरबों पिण्ड विद्यमान हैं, जो धूमकेतु या [[पुच्छल तारा]] कहलाते हैं। | ||
*यह [[गैस]] एवं धूल का संग्रह हैं, जो आकाश में लम्बी चमकदार पूँछ सहित प्रकाश के चमकीले गोले के रूप में दिखाई देते हैं। | *यह [[गैस]] एवं धूल का संग्रह हैं, जो आकाश में लम्बी चमकदार पूँछ सहित प्रकाश के चमकीले गोले के रूप में दिखाई देते हैं। | ||
*धूमकेतु केवल तभी दिखाई पड़ता है, जब वह [[सूर्य]] की ओर अग्रसर होता है, क्योंकि सूर्य कि [[किरण|किरणें]] इसकी गैस को चमकीला बना देती हैं। | *धूमकेतु केवल तभी दिखाई पड़ता है, जब वह [[सूर्य ग्रह|सूर्य]] की ओर अग्रसर होता है, क्योंकि सूर्य कि [[किरण|किरणें]] इसकी गैस को चमकीला बना देती हैं। | ||
*धूमकेतु की पूँछ हमेशा सूर्य से दूर होती प्रतीत होती है। | *धूमकेतु की पूँछ हमेशा सूर्य से दूर होती प्रतीत होती है। | ||
*हैले नामक धूमकेतु का परिक्रमण काल 76 वर्ष है, यह अन्तिम बार [[1986]] में दिखाई दिया था। अगली बार यह 1986+76=[[2062]] में दिखाई देगा। | *हैले नामक धूमकेतु का परिक्रमण काल 76 वर्ष है, यह अन्तिम बार [[1986]] में दिखाई दिया था। अगली बार यह 1986+76=[[2062]] में दिखाई देगा। |
10:59, 3 सितम्बर 2010 का अवतरण
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- सौरमण्डल के छोर पर बहुत ही छोटे–छोटे अरबों पिण्ड विद्यमान हैं, जो धूमकेतु या पुच्छल तारा कहलाते हैं।
- यह गैस एवं धूल का संग्रह हैं, जो आकाश में लम्बी चमकदार पूँछ सहित प्रकाश के चमकीले गोले के रूप में दिखाई देते हैं।
- धूमकेतु केवल तभी दिखाई पड़ता है, जब वह सूर्य की ओर अग्रसर होता है, क्योंकि सूर्य कि किरणें इसकी गैस को चमकीला बना देती हैं।
- धूमकेतु की पूँछ हमेशा सूर्य से दूर होती प्रतीत होती है।
- हैले नामक धूमकेतु का परिक्रमण काल 76 वर्ष है, यह अन्तिम बार 1986 में दिखाई दिया था। अगली बार यह 1986+76=2062 में दिखाई देगा।
- धूमकेतु हमेशा के लिए टिकाऊ नहीं होते हैं, फिर भी प्रत्येक धूमकेतु के लौटने का समय निश्चित होता है।