"एहि बिधि भरत सेनु सबु संगा": अवतरणों में अंतर
कविता भाटिया (वार्ता | योगदान) No edit summary |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - " जगत " to " जगत् ") |
||
पंक्ति 39: | पंक्ति 39: | ||
{{poemclose}} | {{poemclose}} | ||
;भावार्थ | ;भावार्थ | ||
इस प्रकार [[भरत|भरतजी]] ने सब सेना को साथ में लिए हुए | इस प्रकार [[भरत|भरतजी]] ने सब सेना को साथ में लिए हुए जगत् को पवित्र करने वाली [[गंगा|गंगाजी]] के दर्शन किए। श्री रामघाट को (जहाँ श्री रामजी ने स्नान संध्या की थी) प्रणाम किया। उनका मन इतना आनंदमग्न हो गया, मानो उन्हें स्वयं श्री [[राम|रामजी]] मिल गए हों॥2॥ | ||
{{लेख क्रम4| पिछला=सृंगबेरपुर भरत दीख जब |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला= करहिं प्रनाम नगर नर नारी}} | {{लेख क्रम4| पिछला=सृंगबेरपुर भरत दीख जब |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला= करहिं प्रनाम नगर नर नारी}} |
13:46, 30 जून 2017 के समय का अवतरण
एहि बिधि भरत सेनु सबु संगा
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित ले | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
सभी (7) काण्ड क्रमश: | बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड, उत्तरकाण्ड |
एहि बिधि भरत सेनु सबु संगा। दीखि जाइ जग पावनि गंगा॥ |
- भावार्थ
इस प्रकार भरतजी ने सब सेना को साथ में लिए हुए जगत् को पवित्र करने वाली गंगाजी के दर्शन किए। श्री रामघाट को (जहाँ श्री रामजी ने स्नान संध्या की थी) प्रणाम किया। उनका मन इतना आनंदमग्न हो गया, मानो उन्हें स्वयं श्री रामजी मिल गए हों॥2॥
एहि बिधि भरत सेनु सबु संगा |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (अयोध्याकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-261
संबंधित लेख