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*प्रत्यभिज्ञादर्शन एक दार्शनिक सम्प्रदाय है।  
*प्रत्यभिज्ञादर्शन एक दार्शनिक सम्प्रदाय है।  
*इसके अनुयायी काश्मीरक शैव होते हैं।  
*इसके अनुयायी काश्मीरक शैव होते हैं।  
*इसके अनुसार [[महेश्वर]] ही जगत के कारण और कार्य सभी कुछ हैं।  
*इसके अनुसार [[महेश्वर]] ही जगत् के कारण और कार्य सभी कुछ हैं।  
*यह संसार मात्र शिवमय है। महेश्वर ही ज्ञाता और ज्ञानस्वरूप हैं। घट-पटादि का ज्ञान भी शिवस्वरूप है।  
*यह संसार मात्र शिवमय है। महेश्वर ही ज्ञाता और ज्ञानस्वरूप हैं। घट-पटादि का ज्ञान भी शिवस्वरूप है।  
*इस दर्शन के अनुसार [[पूजा]], पाठ, जप, तप आदि की कोई आवश्यकता नहीं है, केवल इस प्रत्यभिज्ञा अथवा ज्ञान की कोई आवश्यकता है कि जीव और ईश्वर एक हैं।  
*इस दर्शन के अनुसार [[पूजा]], पाठ, जप, तप आदि की कोई आवश्यकता नहीं है, केवल इस प्रत्यभिज्ञा अथवा ज्ञान की कोई आवश्यकता है कि जीव और ईश्वर एक हैं।  

13:54, 30 जून 2017 के समय का अवतरण

  • प्रत्यभिज्ञादर्शन एक दार्शनिक सम्प्रदाय है।
  • इसके अनुयायी काश्मीरक शैव होते हैं।
  • इसके अनुसार महेश्वर ही जगत् के कारण और कार्य सभी कुछ हैं।
  • यह संसार मात्र शिवमय है। महेश्वर ही ज्ञाता और ज्ञानस्वरूप हैं। घट-पटादि का ज्ञान भी शिवस्वरूप है।
  • इस दर्शन के अनुसार पूजा, पाठ, जप, तप आदि की कोई आवश्यकता नहीं है, केवल इस प्रत्यभिज्ञा अथवा ज्ञान की कोई आवश्यकता है कि जीव और ईश्वर एक हैं।
  • इस ज्ञान की प्राप्ति ही मुक्ति है। जीवात्मा-परमात्मा में जो भेद दिखता है, वह भ्रम है।
  • इस दर्शन के मानने वालों का विश्वास है कि जिस मनुष्य में ज्ञान और क्रियाशक्ति है, वही परमेश्वर है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • पुस्तक हिन्दू धर्म कोश से पेज संख्या 420 | डॉ. राजबली पाण्डेय |उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान (हिन्दी समिति प्रभाग) |राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन हिन्दी भवन महात्मा गाँधी मार्ग, लखनऊ