"उपराष्ट्रपति": अवतरणों में अंतर
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[[20 दिसम्बर]], [[1999]] को संसद ने उपराष्ट्रपति की पेंशन में वृद्धि हेतु विधेयक पारित कर इसे 6250 रुपये प्रतिमाह से बढ़ाकर 20,000 रुपये प्रतिमाह कर दिया था। पद विमुक्ति के पश्चात् उपराष्ट्रपति की पेंशन उनके वेतन का 50 प्रतिशत निर्धारित किया गया है। इस प्रकार वर्तमान में सेवा निवृत्ति पर उपराष्ट्रपति को 7,50,000 रुपये वार्षिक पेंशन देय है। साथ ही सेवानिवृत्त उपराष्ट्रपति को कार्यालय ख़र्च के लिए मिलने वाली राशि को भी 6000 रुपये से बढ़ाकर 12,000 रुपये प्रतिवर्ष कर दिया गया है। ध्यातव्य है कि [[1997]] से पूर्व उपराष्ट्रपति की सेवा निवृत्ति के पश्चात् पेंशन का प्रावधान नहीं था। 1997 से ही उपराष्ट्रपति को 6250 रुपये प्रतिमाह पेंशन का प्रावधान किया गया था। | [[20 दिसम्बर]], [[1999]] को संसद ने उपराष्ट्रपति की पेंशन में वृद्धि हेतु विधेयक पारित कर इसे 6250 रुपये प्रतिमाह से बढ़ाकर 20,000 रुपये प्रतिमाह कर दिया था। पद विमुक्ति के पश्चात् उपराष्ट्रपति की पेंशन उनके वेतन का 50 प्रतिशत निर्धारित किया गया है। इस प्रकार वर्तमान में सेवा निवृत्ति पर उपराष्ट्रपति को 7,50,000 रुपये वार्षिक पेंशन देय है। साथ ही सेवानिवृत्त उपराष्ट्रपति को कार्यालय ख़र्च के लिए मिलने वाली राशि को भी 6000 रुपये से बढ़ाकर 12,000 रुपये प्रतिवर्ष कर दिया गया है। ध्यातव्य है कि [[1997]] से पूर्व उपराष्ट्रपति की सेवा निवृत्ति के पश्चात् पेंशन का प्रावधान नहीं था। 1997 से ही उपराष्ट्रपति को 6250 रुपये प्रतिमाह पेंशन का प्रावधान किया गया था। | ||
==कार्य एवं शक्तियाँ== | |||
उपराष्ट्रपति को संविधान के द्वारा निम्नलिखित कार्य तथा शक्तियाँ प्रदान की गयी हैं- | |||
====कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य==== | |||
अनुच्छेद 65 के अनुसार राष्ट्रपति की मृत्यु या उसके त्याग पत्र दे देने या महाभियोग प्रक्रिया के अनुसार उसके पदमुक्त होने या उसकी अनुपस्थिति के कारण जब राष्ट्रपति का पद रिक्त हो जाता है, तब उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के कर्तव्यों का निर्वहन करता है तथा राष्ट्रपति की शक्तियाँ प्रयोग करता है। जब उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन कर रहा होता है, तब वह ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का हकदार होता है, जिनका हकदार राष्ट्रपति होता है। उपराष्ट्रपति जब राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है या राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन करता है, उस अवधि के दौरान वह राज्य सभा के कर्तव्यों का पालन नहीं करेगा। | |||
====राज्यसभा के सभापति के रूप में==== | |||
अनुच्छेद 64 में दी गयी व्यवस्था के अनुसार राज्यसभा के सभापति के रूप में उपराष्ट्रपति निम्नलिखित कार्यों को करता है– | |||
#वह राज्यसभा के कार्यों का संचालन करता है, राज्यसभा में अनुशासन बनाये रखता है तथा आज्ञा का अनुपालन न करने वाले सदस्यों को सदन से निष्कासित करवा सकता है। | |||
#वह राज्यसभा के किसी सदस्य को सदन में भाषण देने की अनुज्ञा देता है तथा उसकी अनुज्ञा के बिना कोई भी सदस्य सदन में भाषण नहीं दे सकता है। | |||
#वह सदन में पेश किये गये विधेयकों पर विचार-विमर्श करवाता है। वह विचार-विमर्श के बाद मतदान कराता है तथा उसका परिणाम घोषित करता है। | |||
#उसको यह निर्णय करने की शक्ति प्राप्त है कि कौन सा प्रश्न सदन से पूछने के योग्य है। | |||
#वह सदन में असंसदीय भाषा के प्रयोग को रोकता है तथा यह आदेश दे सकता है कि असंसदीय भाषा को अभिलेख से निकाल दिया जाए। | |||
#वह राजसभा के द्वारा पारित विधेयकों पर हस्ताक्षर करता है। | |||
#वह राज्यसभा के विशेषाधिकारों का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों को प्रताड़ित करता है। | |||
====सूचना देने का कर्तव्य==== | |||
भारत का राष्ट्रपति जब कभी त्यागपत्र देता है तो वह अपना त्यागपत्र उपराष्ट्रपति को देता है। जब उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति का त्यागपत्र प्राप्त करे, तो उसका कर्तव्य बनता है कि वह राष्ट्रपति के त्यागपत्र की सूचना लोकसभा के अध्यक्ष को दे। | |||
====अन्य कार्य==== | |||
उपराष्ट्रपति को संविधान के द्वारा कोई औपचारिक कार्यपालिकीय शक्ति प्राप्त नहीं है, फिर भी व्यवहार में उसे मंत्रिमण्डल के समस्त निर्णयों की सूचना प्रदान की जाती है। उपराष्ट्रपति विभिन्न राजकीय यात्राओं में राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है। इन सब के अतिरिक्त् उपराष्ट्रपति दिल्ली विश्वविद्यालय का पदेन कुलपति होता है। | |||
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08:30, 4 सितम्बर 2010 का अवतरण
संविधान के अनुचछेद 63 के अनुसार भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा। संविधान में उपराष्ट्रपति से सम्बन्धित प्रावधान संयुक्त राज्य अमरीका के संविधान से ग्रहण किया गया है। इस प्रकार से भारत के उपराष्ट्रपति का पद अमेरिकी उपराष्ट्रपति पद की कुछ परिवर्तन सहित अनुकृति है। भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सदस्य होता है और अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करता है।
योग्यता
कोई भी व्यक्ति उपराष्ट्रपति निर्वाचित होने के योग्य तभी होगा, जब वह-
- भारत का नागरिक हो।
- 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
- राज्यसभा का सदस्य निर्वाचित होने के योग्य हो।
- संसद के किसी सदन या राज्य विधान मण्डल में से किसी सदन का सदस्य न हो। इसका तात्पर्य यह नहीं हैं कि संसद या राज्य विधान मण्डलों का सदस्य उपराष्ट्रपति नहीं हो सकता, बल्कि इसका तात्पर्य यह है कि यदि कोई व्यक्ति उपराष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित किया जाता है और यदि वह संसद या राज्य विधानमण्डलों में से किसी सदन का सदस्य है, तो उसे इस सदस्यता का त्याग करना पड़ता है।
- भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन अथवा उक्त सरकारों में से किसी के नियन्त्रण में किसी स्थानीय या प्राधिकारी के अधीन लाभ का पद धारण न करता हो।
निर्वाचन
उपराष्ट्रपति का निर्वाचन एक ऐसे निर्वाचक मण्डल के द्वारा किया जाएगा, जो कि संसद के दोनों सदनों से मिलकर बनेगा, अर्थात् उपराष्ट्रपति का निर्वाचन राज्यसभा तथा लोकसभा के सदस्यों के द्वारा किया जाएगा। राज्य विधानमण्डल के सदस्य इसमें भाग नहीं लेते हैं। यह निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत तथा गुप्त मतदान के द्वारा होगा। उपराष्ट्रपति पद के लिए अभ्यर्थी का नाम 20 मतदाताओं के द्वारा प्रस्तावित और 20 मतदाताओं के द्वारा समर्थित होना आवश्यक है। साथ ही अभ्यर्थों द्वारा 15,000 रुपये की जमानत राशि जमा करना आवश्यक होता है।
सम्बन्धित विवाद
उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से सम्बन्धित किसी भी विवाद का निर्णय उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जाएगा (अनुच्छेद 71)। यदि निर्वाचित उपराष्ट्रपति के पद ग्रहण करने के बाद उच्चतम न्यायालय के द्वारा उपराष्ट्रपति के निर्वाचन को अवैध घोषित किया जाता है तो पद पर रहते हुए उपराष्ट्रपति द्वारा किय गये कार्य को अवैध नहीं माना जाएगा।
पदावधि
उपराष्ट्रपति अपने पद ग्रहण करने की तिथि से पाँच वर्ष तक अपने पद पर बना रहेगा और यदि उसका उत्तराधिकारी इस पाँच वर्ष की अवधि के दौरान नहीं चुना जाता है, तो वह तब तक अपने पद पर बना रहेगा, जब तक उसका उत्तराधिकारी निर्वाचित होकर पद ग्रहण नहीं कर लेता है। लेकिन उपराष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तारीख़ से पाँच वर्ष के अन्दर भी अपने पद से निम्नलिखित ढंग से हट सकता है या हटाया जा सकता है-
- राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र देकर,
- राज्यसभा के द्वारा संकल्प पारित करके-
उपराष्ट्रपति को पद से हटाने के लिए संकल्प या राज्य सभा में पेश किया जाता है, लेकिन उपराष्ट्रपति को पद से हटाने का संकल्प राज्यसभा में पेश करने के पहले उसकी सूचना उन्हें 14 दिन पूर्व देना आवश्यक है। राज्यसभा में संकल्प पारित होने के बाद उसे अनुमोदन के लिए लोकसभा को भेजा जाता है। यदि लोकसभा संकल्प को अनुमोदित कर देती है तो उपराष्ट्रपति को पद से हटा दिया जाता है। कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने की स्थिति में उपराष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा केवल उसी प्रक्रिया के तहत हटाया जा सकेगा, जिस प्रक्रिया से संविधान में राष्ट्रपति पर महाभियोग स्थापित करने का प्रावधान है।
पुनर्विचार के लिए पात्रता
जो व्यक्ति उपराष्ट्रपति पद की आवश्यक योग्यता को धारण करता है, वह एक से अधिक कार्यालय के लिए निर्वाचित किया जा सकता है। लेकिन डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के दो बार निर्वाचित किए जाने के बाद अब यह सामान्य परम्परा बन गयी है कि किसी व्यक्ति को एक बार ही उपराष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित किया जाए।
शपथ या प्रतिज्ञान
उपराष्ट्रपति अपना पद ग्रहण करने के पूर्व राष्ट्रपति अथवा उसके द्वारा इस प्रयोजन के लिए नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष शपथ लेता है तथा शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करता है (अनुच्छेद 69)। उपराष्ट्रपति का शपथ पत्र का प्रारूप निम्नलिखित रूप में निर्धारित होता है-
मैं, अमुक ईश्वर की शपथ लेता हूँ, सत्य निष्ठा से प्रतिज्ञाण करता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा तथा जिस पद को मैं ग्रहण करने वाला हूँ उसके कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक निर्वहन करूँगा।
निर्वाचित व्यक्ति की पदावधि
उपराष्ट्रपति के पद की रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन करने का समय तथा आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति की पदावधि-
उपराष्ट्रपति की पदावधि की समाप्ति से हुई रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन पदावधि की समाप्ति से पूर्व किया जाएगा तथा उपराष्ट्रपति की मृत्यु, पदत्याग या पद से हटाये जाने या अन्य कारण से हुई उसके पद में हुई रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन यथाशीघ्र किया जाएगा और रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति अपने पद ग्रहण की तारीख़ से पाँच वर्ष की पूरी अवधि तक पद धारण करने का हकदार होगा (अनुच्छेद 68)। पदावधि के दौरान उपराष्ट्रपति की मृत्यु हो जाने की स्थिति में रिक्त हुए उसके पद को कार्यवाहक उपराष्ट्रपति के द्वारा भरे जाने सम्बन्धी कोई संवैधानिक व्यवस्था नहीं है। इस प्रकार ऐसी स्थिति में उपराष्ट्रपति का पद केवल निर्वाचन के द्वारा ही भरा जाएगा।
वेतन एवं भत्ते
उपराष्ट्रपति अपने पद का वेतन नहीं ग्रहण करता, बल्कि वह राज्यसभा के सभापति के रूप में अपना वेतन ग्रहण करता है। 11 सितम्बर, 2008 को केन्द्रीय मंत्रिमण्डल द्वारा लिये गये निर्णय के अनुसार उपराष्ट्रपति का वेतन 1.25 लाख रुपये प्रति माह निर्धारित किया गया है। नया वेतन 1 जनवरी, 2006 से प्रभावी किया गया है। हालाँकि इससे पूर्व 10 जनवरी, 2008 को उपराष्ट्रपति का वेतन 40 हज़ार से बढ़ाकर 80,000 रुपये प्रति माह करने का निर्णय लिया गया था। इस वेतन के अतिरिक्त उपराष्ट्रपति को बिना किराए का सुसज्जित मकान आवास के लिए दिया जाता है। राज्यसभा के सभापति के रूप में उपराष्ट्रपति को वेतन भारत की संचित निधि से दिया जाता है। उपराष्ट्रपति के वेतन या भत्ते में उसकी पदावधि के दौरान कभी कमी नहीं की जा सकती। पदावधि के दौरान मृत्यु होने की स्थिति में उपराष्ट्रपति को पारिवारिक पेंशन, आवास और चिकित्सा सुविधाएँ प्राप्त हैं। उपराष्ट्रपति के निधन अथवा सेवा निवृत्ति की स्थिति में पत्नी अथवा पति को पेंशन प्राप्त होगी।
20 दिसम्बर, 1999 को संसद ने उपराष्ट्रपति की पेंशन में वृद्धि हेतु विधेयक पारित कर इसे 6250 रुपये प्रतिमाह से बढ़ाकर 20,000 रुपये प्रतिमाह कर दिया था। पद विमुक्ति के पश्चात् उपराष्ट्रपति की पेंशन उनके वेतन का 50 प्रतिशत निर्धारित किया गया है। इस प्रकार वर्तमान में सेवा निवृत्ति पर उपराष्ट्रपति को 7,50,000 रुपये वार्षिक पेंशन देय है। साथ ही सेवानिवृत्त उपराष्ट्रपति को कार्यालय ख़र्च के लिए मिलने वाली राशि को भी 6000 रुपये से बढ़ाकर 12,000 रुपये प्रतिवर्ष कर दिया गया है। ध्यातव्य है कि 1997 से पूर्व उपराष्ट्रपति की सेवा निवृत्ति के पश्चात् पेंशन का प्रावधान नहीं था। 1997 से ही उपराष्ट्रपति को 6250 रुपये प्रतिमाह पेंशन का प्रावधान किया गया था।
कार्य एवं शक्तियाँ
उपराष्ट्रपति को संविधान के द्वारा निम्नलिखित कार्य तथा शक्तियाँ प्रदान की गयी हैं-
कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य
अनुच्छेद 65 के अनुसार राष्ट्रपति की मृत्यु या उसके त्याग पत्र दे देने या महाभियोग प्रक्रिया के अनुसार उसके पदमुक्त होने या उसकी अनुपस्थिति के कारण जब राष्ट्रपति का पद रिक्त हो जाता है, तब उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के कर्तव्यों का निर्वहन करता है तथा राष्ट्रपति की शक्तियाँ प्रयोग करता है। जब उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन कर रहा होता है, तब वह ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का हकदार होता है, जिनका हकदार राष्ट्रपति होता है। उपराष्ट्रपति जब राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है या राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन करता है, उस अवधि के दौरान वह राज्य सभा के कर्तव्यों का पालन नहीं करेगा।
राज्यसभा के सभापति के रूप में
अनुच्छेद 64 में दी गयी व्यवस्था के अनुसार राज्यसभा के सभापति के रूप में उपराष्ट्रपति निम्नलिखित कार्यों को करता है–
- वह राज्यसभा के कार्यों का संचालन करता है, राज्यसभा में अनुशासन बनाये रखता है तथा आज्ञा का अनुपालन न करने वाले सदस्यों को सदन से निष्कासित करवा सकता है।
- वह राज्यसभा के किसी सदस्य को सदन में भाषण देने की अनुज्ञा देता है तथा उसकी अनुज्ञा के बिना कोई भी सदस्य सदन में भाषण नहीं दे सकता है।
- वह सदन में पेश किये गये विधेयकों पर विचार-विमर्श करवाता है। वह विचार-विमर्श के बाद मतदान कराता है तथा उसका परिणाम घोषित करता है।
- उसको यह निर्णय करने की शक्ति प्राप्त है कि कौन सा प्रश्न सदन से पूछने के योग्य है।
- वह सदन में असंसदीय भाषा के प्रयोग को रोकता है तथा यह आदेश दे सकता है कि असंसदीय भाषा को अभिलेख से निकाल दिया जाए।
- वह राजसभा के द्वारा पारित विधेयकों पर हस्ताक्षर करता है।
- वह राज्यसभा के विशेषाधिकारों का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों को प्रताड़ित करता है।
सूचना देने का कर्तव्य
भारत का राष्ट्रपति जब कभी त्यागपत्र देता है तो वह अपना त्यागपत्र उपराष्ट्रपति को देता है। जब उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति का त्यागपत्र प्राप्त करे, तो उसका कर्तव्य बनता है कि वह राष्ट्रपति के त्यागपत्र की सूचना लोकसभा के अध्यक्ष को दे।
अन्य कार्य
उपराष्ट्रपति को संविधान के द्वारा कोई औपचारिक कार्यपालिकीय शक्ति प्राप्त नहीं है, फिर भी व्यवहार में उसे मंत्रिमण्डल के समस्त निर्णयों की सूचना प्रदान की जाती है। उपराष्ट्रपति विभिन्न राजकीय यात्राओं में राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है। इन सब के अतिरिक्त् उपराष्ट्रपति दिल्ली विश्वविद्यालय का पदेन कुलपति होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ