"आरति बस सनमुख भइउँ": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
कविता भाटिया (वार्ता | योगदान) ('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - " जगत " to " जगत् ") |
||
पंक्ति 38: | पंक्ति 38: | ||
;भावार्थ | ;भावार्थ | ||
किन्तु हे तात! मैं आर्त्त होकर ही आपके सम्मुख हुई हूँ, आप बुरा न मानिएगा। आर्यपुत्र (स्वामी) के चरणकमलों के बिना | किन्तु हे तात! मैं आर्त्त होकर ही आपके सम्मुख हुई हूँ, आप बुरा न मानिएगा। आर्यपुत्र (स्वामी) के चरणकमलों के बिना जगत् में जहाँ तक नाते हैं, सभी मेरे लिए व्यर्थ हैं॥97॥ | ||
{{लेख क्रम4| पिछला=पतिहि प्रेममय बिनय सुनाई |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=पितु बैभव बिलास मैं डीठा}} | {{लेख क्रम4| पिछला=पतिहि प्रेममय बिनय सुनाई |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=पितु बैभव बिलास मैं डीठा}} |
14:11, 30 जून 2017 के समय का अवतरण
आरति बस सनमुख भइउँ
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
आरति बस सनमुख भइउँ बिलगु न मानब तात। |
- भावार्थ
किन्तु हे तात! मैं आर्त्त होकर ही आपके सम्मुख हुई हूँ, आप बुरा न मानिएगा। आर्यपुत्र (स्वामी) के चरणकमलों के बिना जगत् में जहाँ तक नाते हैं, सभी मेरे लिए व्यर्थ हैं॥97॥
आरति बस सनमुख भइउँ |
दोहा - मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख