"जब दुपहरी ज़िंदगी पर -गजानन माधव मुक्तिबोध": अवतरणों में अंतर
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चले जाते मिलों में मदरसों में | चले जाते मिलों में मदरसों में | ||
फ़तह पाने के लिए | फ़तह पाने के लिए | ||
क्या | क्या फ़तह के ये खयाल खयाल हैं | ||
क्या सिर्फ धोखा है ?.... | क्या सिर्फ धोखा है ?.... | ||
सवाल है। | सवाल है। |
12:10, 5 जुलाई 2017 का अवतरण
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जब दुपहरी ज़िंदगी पर गजानन माधव मुक्तिबोध की अप्रकाशित कविता है जिसका रचनाकाल लगभग 1948-50 है।
जब दुपहरी ज़िन्दगी पर रोज सूरज |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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