"मंगल देवता": अवतरणों में अंतर
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "Category:हिन्दू धर्म कोश" to "Category:हिन्दू धर्म कोशCategory:धर्म कोश") |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - "विद्वान " to "विद्वान् ") |
||
पंक्ति 28: | पंक्ति 28: | ||
'''सामान्य मन्त्र''' | '''सामान्य मन्त्र''' | ||
सामान्य मन्त्र- 'ॐ अं अंगारकाय नम:' है। इनमें से किसी का श्रद्धानुसार नित्य एक निश्चित संख्या में जप करना चाहिये। कुल जप-संख्या 10000 तथा समय प्रात: आठ बचे है। विशेष परिस्थिति में | सामान्य मन्त्र- 'ॐ अं अंगारकाय नम:' है। इनमें से किसी का श्रद्धानुसार नित्य एक निश्चित संख्या में जप करना चाहिये। कुल जप-संख्या 10000 तथा समय प्रात: आठ बचे है। विशेष परिस्थिति में विद्वान् ब्राह्मण का सहयोग लेना चाहिये। | ||
{{प्रचार}} | {{प्रचार}} |
14:42, 6 जुलाई 2017 के समय का अवतरण
मंगल | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- मंगल (बहुविकल्पी) |
मंगल देवता की चार भुजाएँ हैं। इनके शरीर के रोयें लाल हैं इनके हाथों में क्रम से अभयमुद्रा, त्रिशूल, गदा और वरमुद्रा है। इन्होंने लाल मालाएँ और लाल वस्त्र धारण कर रखे हैं। इनके सिर पर स्वर्णमुकुट है तथा ये मेख (भेड़ा) के वाहन पर सवार हैं।
कथा
वाराह कल्प की बात है। जब हिरण्यकशिपु का बड़ा भाई हिरण्याक्ष पृथ्वी को चुरा ले गया था और पृथ्वी के उद्धार के लिये भगवान ने वराहावतार लिया तथा हिरण्याक्ष को मारकर पृथ्वी देवी का उद्धार किया, उस समय भगवान को देखकर पृथ्वी देवी अत्यन्त प्रसन्न हुईं और उनके मन में भगवान को पति रूप में वरण करने की इच्छा हुई। वाराहावतार के समय भगवान का तेज़ करोड़ों सूर्यों की तरह असह्य था। पृथ्वी की अधिष्ठात्री देवी की कामना पूर्ण करने के लिये भगवान अपने मनोरम रूप में आ गये और पृथ्वी देवी के साथ दिव्य एक वर्ष तक एकान्त में रहे। उस समय पृथ्वी देवी और भगवान के संयोग से मंगल ग्रह की उत्पत्ति हुई [1] इस प्रकार विभिन्न कल्पों में मंगल ग्रह की उत्पत्ति की विभिन्न कथाएँ हैं। पूजा के प्रयोग में इन्हें भरद्वाज गोत्र कहकर सम्बोधित किया जाता है। यह कथा गणेशपुराण में आयी है।
पुराण में मंगल
मंगल ग्रह की पूजा की पुराणों में बड़ी महिमा बतायी गयी है। यह प्रसन्न होकर मनुष्य की हर प्रकार की इच्छा पूर्ण करते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार मंगल व्रत में ताम्रपत्र पर भौमयन्त्र लिखकर तथा मंगल की सुवर्णमयी प्रतिमा की प्रतिष्ठा कर पूजा करने का विधान है। मंगल देवता के नामों का पाठ करने से ऋण से मुक्ति मिलती है। यह अशुभ ग्रह माने जाते हैं। यदि ये वक्रगति से न चलें तो एक-एक राशि को तीन-तीन पक्ष में भोगते हुए बारह राशियों को डेढ़ वर्ष में पार करते हैं।
शान्ति के उपाय
- मंगल ग्रह की शान्ति के लिये शिव-उपासना तथा प्रवाल रत्न धारण करने का विधान है।
- दान में ताँबा, सोना, गेहूँ, लाल वस्त्र, गुड़, लाल चन्दन, लाल पुष्प, केशर, कस्तूरी, लाल बृषभ, मसूर की दाल तथा भूमि देना चाहिये।
- मंगलवार को व्रत करना चाहिये तथा हनुमानचालीसा का पाठ करना चाहिये।
- इनकी महादशा सात वर्षों तक रहती है। यह मेष तथा वृश्चिक राशि के स्वामी हैं।
वैदिक मन्त्र
इनकी शान्ति के लिये वैदिक मन्त्र-'ॐ अग्निर्मूर्धा दिव: ककुत्पति: पृथिव्या अयम् अपाँरेताँ सि जिन्वति॥',
पौराणिक मन्त्र
'धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणमाम्यहम्॥',
बीज मन्त्र
बीज मन्त्र 'ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:', तथा
सामान्य मन्त्र
सामान्य मन्त्र- 'ॐ अं अंगारकाय नम:' है। इनमें से किसी का श्रद्धानुसार नित्य एक निश्चित संख्या में जप करना चाहिये। कुल जप-संख्या 10000 तथा समय प्रात: आठ बचे है। विशेष परिस्थिति में विद्वान् ब्राह्मण का सहयोग लेना चाहिये।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ब्रह्मवैवर्त पुराण 2।8।29 से 43