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-[[सत्येन्द्रनाथ ठाकुर]]
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||[[चित्र:Debendranath-tagore.gif|right|150px|border|देवेन्द्रनाथ ठाकुर]]'देवेन्द्रनाथ ठाकुर' [[कलकत्ता]] निवासी [[द्वारकानाथ ठाकुर|श्री द्वारकानाथ ठाकुर]] के पुत्र थे, जो प्रख्यात विद्वान और धार्मिक नेता थे। अपनी दानशीलता के कारण उन्होंने 'प्रिंस' की उपाधि प्राप्त की थी। [[देवेन्द्रनाथ ठाकुर]] ने [[पिता]] से ऊँची सामाजिक प्रतिष्ठा तथा ऋण उत्तराधिकार में प्राप्त किया था। '[[नोबेल पुरस्कार]]' विजेता [[रबीन्द्रनाथ ठाकुर]] देवेंद्रनाथ ठाकुर के पुत्र थे। वे '[[ब्रह्म समाज]]' के प्रमुख सदस्य थे, जिसका 1843 ई. से उन्होंने बड़ी सफलता के साथ नेतृत्व किया। 1843 ई. में देवेन्द्रनाथ ने 'तत्वबोधिनी पत्रिका' प्रकाशित की, जिसके माध्यम से उन्होंने देशवासियों को गम्भीर चिन्तन हृदयगत भावों के प्रकाशन के लिए प्रेरित किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[देवेन्द्रनाथ ठाकुर]]
||[[चित्र:Debendranath-tagore.gif|right|150px|border|देवेन्द्रनाथ ठाकुर]]'देवेन्द्रनाथ ठाकुर' [[कलकत्ता]] निवासी [[द्वारकानाथ ठाकुर|श्री द्वारकानाथ ठाकुर]] के पुत्र थे, जो प्रख्यात विद्वान् और धार्मिक नेता थे। अपनी दानशीलता के कारण उन्होंने 'प्रिंस' की उपाधि प्राप्त की थी। [[देवेन्द्रनाथ ठाकुर]] ने [[पिता]] से ऊँची सामाजिक प्रतिष्ठा तथा ऋण उत्तराधिकार में प्राप्त किया था। '[[नोबेल पुरस्कार]]' विजेता [[रबीन्द्रनाथ ठाकुर]] देवेंद्रनाथ ठाकुर के पुत्र थे। वे '[[ब्रह्म समाज]]' के प्रमुख सदस्य थे, जिसका 1843 ई. से उन्होंने बड़ी सफलता के साथ नेतृत्व किया। 1843 ई. में देवेन्द्रनाथ ने 'तत्वबोधिनी पत्रिका' प्रकाशित की, जिसके माध्यम से उन्होंने देशवासियों को गम्भीर चिन्तन हृदयगत भावों के प्रकाशन के लिए प्रेरित किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[देवेन्द्रनाथ ठाकुर]]
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