"प्रलयतत्त्व": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (Text replacement - "विद्वान " to "विद्वान् ")
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
'''प्रलय''' से अभिप्राय है कि भूखण्ड या [[ब्रह्माण्ड]] का मिट जाना, नष्ट हो जाना। पुराणों में वर्णित [[ऋषि]] मान्यता के अनुसार [[कलियुग]] में [[पृथ्वी ग्रह|पृथ्वी]] अधर्मियों-म्लेच्छों से भर जायेगी। तब नारायण [[विष्णु]] यशा नामक [[ब्राह्मण]] के घर [[कल्कि अवतार|कल्कि]] रूप में पुत्रवत् जन्म लेंगे। वे हाथ में [[खड्ग शस्त्र|खड्ग]] धारण कर घोड़े पर सवार होकर तीन रात्रि में पृथ्वी को अधर्मियों और म्लेच्छों से विहीन कर अंतर्धान हो जायेंगे। [[दस्यु]] ग्रस्त पृथ्वी प्रलय स्थिति में स्थूलतावश डूब जायेगी। बारह सूर्य उदित होकर [[जल]] प्रलय के पानी को सुखा देंगे। [[सतयुग]] का पुन: श्री गणेश हो जायेगा।<ref>(मिथक हो या विज्ञान सृष्टि चक्र में कुछ भी सम्भव है, ऐसा विद्वान मानते हैं।)दे.भा., 9/8/53-59</ref>
'''प्रलय''' से अभिप्राय है कि भूखण्ड या [[ब्रह्माण्ड]] का मिट जाना, नष्ट हो जाना। पुराणों में वर्णित [[ऋषि]] मान्यता के अनुसार [[कलियुग]] में [[पृथ्वी ग्रह|पृथ्वी]] अधर्मियों-म्लेच्छों से भर जायेगी। तब नारायण [[विष्णु]] यशा नामक [[ब्राह्मण]] के घर [[कल्कि अवतार|कल्कि]] रूप में पुत्रवत् जन्म लेंगे। वे हाथ में [[खड्ग शस्त्र|खड्ग]] धारण कर घोड़े पर सवार होकर तीन रात्रि में पृथ्वी को अधर्मियों और म्लेच्छों से विहीन कर अंतर्धान हो जायेंगे। [[दस्यु]] ग्रस्त पृथ्वी प्रलय स्थिति में स्थूलतावश डूब जायेगी। बारह सूर्य उदित होकर [[जल]] प्रलय के पानी को सुखा देंगे। [[सतयुग]] का पुन: श्री गणेश हो जायेगा।<ref>(मिथक हो या विज्ञान सृष्टि चक्र में कुछ भी सम्भव है, ऐसा विद्वान् मानते हैं।)दे.भा., 9/8/53-59</ref>
==प्रकार==
==प्रकार==
प्रलय के चार प्रकार मुख्य रूप से माने गये हैं-
प्रलय के चार प्रकार मुख्य रूप से माने गये हैं-

14:54, 6 जुलाई 2017 का अवतरण

प्रलय से अभिप्राय है कि भूखण्ड या ब्रह्माण्ड का मिट जाना, नष्ट हो जाना। पुराणों में वर्णित ऋषि मान्यता के अनुसार कलियुग में पृथ्वी अधर्मियों-म्लेच्छों से भर जायेगी। तब नारायण विष्णु यशा नामक ब्राह्मण के घर कल्कि रूप में पुत्रवत् जन्म लेंगे। वे हाथ में खड्ग धारण कर घोड़े पर सवार होकर तीन रात्रि में पृथ्वी को अधर्मियों और म्लेच्छों से विहीन कर अंतर्धान हो जायेंगे। दस्यु ग्रस्त पृथ्वी प्रलय स्थिति में स्थूलतावश डूब जायेगी। बारह सूर्य उदित होकर जल प्रलय के पानी को सुखा देंगे। सतयुग का पुन: श्री गणेश हो जायेगा।[1]

प्रकार

प्रलय के चार प्रकार मुख्य रूप से माने गये हैं-

नैमित्तिक प्रलय

ब्रह्मा जी का एक दिन समाप्त हो जाने पर रात्रि के प्रारम्भ काल में होता है, उसे नैमित्तिक प्रलय कहते हैं।

प्राकृतिक प्रलय

प्राकृतिक प्रलय तब होता है, जब ब्रह्माण्ड महाप्रकृति में विलीन हो जाता है।

आत्यन्तिक प्रलय

आत्यन्तिक प्रलय योगीजन ज्ञान के द्वारा ब्रह्मा में लीन हो जाने को कहते हैं।

नित्य प्रलय

उत्पन्न पदार्थों का जो अहर्निश क्षय होता रहता है, उसे नित्य प्रलय के नाम से व्यवहृत करते हैं।

इन चतुर्विध प्रलयों में से नैमित्तिक एवं प्राकृतिक महाप्रलय ब्रह्माण्डों से सम्बन्धित होते हैं तथा शेष दो प्रलय देहधारियों से सम्बन्धित हैं।

विष्णु पुराण का मत

नैमित्तिक प्रलय के सम्बन्ध में विष्णु पुराण का मत निम्नलिखित है-

ब्रह्मा की जाग्रदवस्था में उनकी प्राणशक्ति की प्रेरणा से ब्रह्माण्डचक्र प्रचलित रहता है, किन्तु उनकी निद्रावस्था में समस्त ब्रह्माण्ड निश्चेष्ट हो जाता है और उसकी स्थिति जल-भुनकर नष्ट हो जाती है। नैमित्तिक प्रलय को ब्रह्मा प्रलय भी कहते हैं। उसमें ब्रह्माजी, विष्णु के साथ योगनिद्रा में प्रसुप्त हो जाते हैं। इस समय प्रलय में भी रहने की शक्ति रखने वाले कुछ योगिगण जनलोक में अपने को जीवित रखते हुए ध्यानपरायण रहते हैं। ऐसे योगियों के द्वारा चिन्त्यमान कमलयोनि ब्रह्मा ब्रह्मरात्रि को व्यतीत कर ब्राह्म दिवस के उदय में प्रबुद्ध हो जाते हैं और पुन: समस्त ब्रह्माण्ड की रचना करते हैं। इस प्रकार ब्रह्माजी के सौ वर्ष पूर्ण होने के अनन्तर ब्रह्मा भी परब्रह्म में लीन हो जाते हैं, उस समय प्राकृतिक महाप्रलय का उदय होता है।

महाप्रलय

इसी क्रम में ब्रह्माण्ड प्रकृति अनादि काल से महाकाल के महान चक्र में परिभ्रमणशील रहती आती है। इन प्रलयों के विस्तृत विवरण विष्णुपुराणस्थ प्रलयवर्णन में द्रष्टव्य है। अव्याकृत प्रकृति तथा उसके प्रेरक ईश्वर की विलीनता के प्रश्न को विष्णुपुराण सरल तरीक़े से स्पष्ट कर देता है।  

प्रकृतिर्या मयाख्याता व्यक्ताव्यक्तस्वरूपिणी।
पुरुषश्चाप्युभावेतौ लीयेते परमात्मनि।।

  अर्थात- व्यक्त एवं अव्यक्त, प्रकृति और ईश्वर ये दोनों ही निर्गुण एवं निष्क्रिय ब्रह्मतत्व में विलीन हो जाते हैं। यही आधिदैवी सृष्टिरूप महाप्रलय है।

जितने समय तक ब्रह्माण्डप्रकृति में सृष्टि-स्थिति-लीला का विस्तार प्रवर्तमान रहता है, ठीक उतने ही समय तक महाप्रलयगर्भ में भी ब्रह्माण्डसृष्टि पूर्ण रूप से विलीन रहती है। इस समय जीवों की अनन्त कर्मराशियाँ उस महाकाश के आश्रित रहती हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

हिन्दू धर्मकोश |लेखक: डॉ. राजबली पाण्डेय |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 425-426 |

  1. (मिथक हो या विज्ञान सृष्टि चक्र में कुछ भी सम्भव है, ऐसा विद्वान् मानते हैं।)दे.भा., 9/8/53-59