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मुकुंदी लाल श्रीवास्तव ने [[काशी]] के दैनिक 'आज' के लिए 'नीतिशास्त्र की उत्पत्ति' पर एक लेख भेजा, जो उसके तत्कालीन सम्पादक श्रीप्रकाशजी को इतना पसन्द आया कि उन्होंने तुरंत आपको अपने साथ काम करने के लिए काशी बुला लिया। [[फ़रवरी]], [[1921]] से [[जुलाई]], 1921 ई. तक मुकुंदी लाल दैनिक 'आज' के सहायक सम्पादक रहे और इस बीच उन्होंने उसके लिए पचीसों अग्रलेख तथा कई टिप्पणियाँ लिखीं। इसके बाद ये रामदास गौड़ के हट जाने पर 'ज्ञानमण्डल प्रकाशन विभाग' के अध्यक्ष एवं प्रधान सम्पादक नियुक्त हुए। इसी समय उन्हें 'ज्ञानमण्डल ग्रंथमाला' के सम्पादन के साथ-साथ दो [[वर्ष]] तक आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं ऐतिहासिक विषयों के उच्चकोटि के मासिक पत्र 'स्वार्थ' का सम्पादन कार्य करना पड़ा। यह पत्र भी ज्ञानमण्डल से ही प्रकाशित होता था। | मुकुंदी लाल श्रीवास्तव ने [[काशी]] के दैनिक 'आज' के लिए 'नीतिशास्त्र की उत्पत्ति' पर एक लेख भेजा, जो उसके तत्कालीन सम्पादक श्रीप्रकाशजी को इतना पसन्द आया कि उन्होंने तुरंत आपको अपने साथ काम करने के लिए काशी बुला लिया। [[फ़रवरी]], [[1921]] से [[जुलाई]], 1921 ई. तक मुकुंदी लाल दैनिक 'आज' के सहायक सम्पादक रहे और इस बीच उन्होंने उसके लिए पचीसों अग्रलेख तथा कई टिप्पणियाँ लिखीं। इसके बाद ये रामदास गौड़ के हट जाने पर 'ज्ञानमण्डल प्रकाशन विभाग' के अध्यक्ष एवं प्रधान सम्पादक नियुक्त हुए। इसी समय उन्हें 'ज्ञानमण्डल ग्रंथमाला' के सम्पादन के साथ-साथ दो [[वर्ष]] तक आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं ऐतिहासिक विषयों के उच्चकोटि के मासिक पत्र 'स्वार्थ' का सम्पादन कार्य करना पड़ा। यह पत्र भी ज्ञानमण्डल से ही प्रकाशित होता था। | ||
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ग्रंथमाला के प्रकाशन का कार्य जब ज्ञानमण्डल में बन्द कर '[[काशी विद्यापीठ]]' के जिम्मे कर दिया गया, तब मुकुंदी लाल भी विद्यापीठ चले गये। वहाँ प्रकाशन कार्य के साथ-साथ आप [[हिन्दी]] के प्रधानाध्यापक का कार्य भी करते रहे। विद्यापीठ में आर्थिक कठिनाइयाँ उपस्थित हो जाने पर लगभग दस वर्षों के बाद, अन्य कई अध्यापकों के साथ आपको भी वहाँ से हटना पड़ा। [[जुलाई]], [[1937]] ई. में मुकुंदी लाल श्रीवास्तव पुन: 'आज' में साप्ताहिक संस्करण के सम्पादक बनकर आ गये। सन [[1943]] ई. के [[अक्टूबर]] में वे 'आज' से | ग्रंथमाला के प्रकाशन का कार्य जब ज्ञानमण्डल में बन्द कर '[[काशी विद्यापीठ]]' के जिम्मे कर दिया गया, तब मुकुंदी लाल भी विद्यापीठ चले गये। वहाँ प्रकाशन कार्य के साथ-साथ आप [[हिन्दी]] के प्रधानाध्यापक का कार्य भी करते रहे। विद्यापीठ में आर्थिक कठिनाइयाँ उपस्थित हो जाने पर लगभग दस वर्षों के बाद, अन्य कई अध्यापकों के साथ आपको भी वहाँ से हटना पड़ा। [[जुलाई]], [[1937]] ई. में मुकुंदी लाल श्रीवास्तव पुन: 'आज' में साप्ताहिक संस्करण के सम्पादक बनकर आ गये। सन [[1943]] ई. के [[अक्टूबर]] में वे 'आज' से पृथक् हो गये और शीघ्र ही 'संसार' साप्ताहिक के सम्पादक नियुक्त हुए। बाद में कोई डेढ़ [[वर्ष]] तक इन्हें दैनिक 'संसार' का सम्पादन भार भी सँभालना पड़ा और लगभग ढाई वर्ष तक वे वहीं से प्रकाशित 'युगधारा' मासिक पत्रिका के सम्पादक रहे। इसके बाद पुन: ज्ञानमण्डल के प्रकाशन विभाग में आ गये।<ref name="aa"/> | ||
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'ज्ञानमडण्ल' एवं 'काशी विज्ञापीठ' में रहकर लगभग 20 पुस्तकों का सम्पादन करने के अतिरिक्त मुकुंदी लाल श्रीवास्तव ने 'ग्रीस और रोम के महापुरुष' एवं 'पश्चिमी यूरोप' के द्वितीय भाग के अर्धांश का अनुवाद किया। इसमें राजवल्लभ सहाय का भी सहयोग इन्हें मिला था। इसके अतिरिक्त आपने तथा सहयोगी राजवल्लभ सहाय ने कई वर्षों के कठिन परीश्रम के बाद 'हिन्दी शब्द संग्रह' नामक एक बहुमूल्य कोश तैयार किया। इसमें आधुनिक हिन्दी के अतिरिक्त [[ब्रजभाषा]], [[अवधी भाषा|अवधी]], [[बुन्देली बोली|बुन्देलखण्डी]] आदि के उन बहुसंख्यक शब्दों का भी समावेश किया गया, जिनका प्रयोग [[हिन्दी]] के पुराने कवियों तथा लेखकों की रचनाओं में हुआ था। विभिन्न प्रामाणिक पुस्तकों से इसमें कोई आठ हजार उदाहरण भी दिये गये हैं। जब यह कोश प्रकाशित हुआ था, तब हिन्दी के अनेक विद्वानों ने मुक्त कण्ठ से इसकी प्रशंसा की थी। | 'ज्ञानमडण्ल' एवं 'काशी विज्ञापीठ' में रहकर लगभग 20 पुस्तकों का सम्पादन करने के अतिरिक्त मुकुंदी लाल श्रीवास्तव ने 'ग्रीस और रोम के महापुरुष' एवं 'पश्चिमी यूरोप' के द्वितीय भाग के अर्धांश का अनुवाद किया। इसमें राजवल्लभ सहाय का भी सहयोग इन्हें मिला था। इसके अतिरिक्त आपने तथा सहयोगी राजवल्लभ सहाय ने कई वर्षों के कठिन परीश्रम के बाद 'हिन्दी शब्द संग्रह' नामक एक बहुमूल्य कोश तैयार किया। इसमें आधुनिक हिन्दी के अतिरिक्त [[ब्रजभाषा]], [[अवधी भाषा|अवधी]], [[बुन्देली बोली|बुन्देलखण्डी]] आदि के उन बहुसंख्यक शब्दों का भी समावेश किया गया, जिनका प्रयोग [[हिन्दी]] के पुराने कवियों तथा लेखकों की रचनाओं में हुआ था। विभिन्न प्रामाणिक पुस्तकों से इसमें कोई आठ हजार उदाहरण भी दिये गये हैं। जब यह कोश प्रकाशित हुआ था, तब हिन्दी के अनेक विद्वानों ने मुक्त कण्ठ से इसकी प्रशंसा की थी। |
13:32, 1 अगस्त 2017 का अवतरण
मुकुंदी लाल श्रीवास्तव
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पूरा नाम | मुकुंदी लाल श्रीवास्तव |
जन्म | 25 अक्टूबर, 1896 |
जन्म भूमि | गोरझामर ग्राम, सागर ज़िला, मध्य प्रदेश |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | लेखन |
मुख्य रचनाएँ | 'अवनति क्यों हुई', 'रणधीर पराक्रम', 'हिन्दी शब्द संग्रह', 'साम्राज्यवाद', 'बृहत् हिन्दी कोश', 'ज्ञान शब्द कोश', 'पारिभाषिक शब्द कोश' आदि। |
भाषा | हिन्दी |
शिक्षा | बी.ए., एम.ए. (प्रीवियस)[1] |
प्रसिद्धि | साहित्यकार |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | मुकुंदी लाल तथा राजवल्लभ सहाय ने कई वर्षों के कठिन परीश्रम के बाद 'हिन्दी शब्द संग्रह' नामक एक बहुमूल्य कोश तैयार किया था। इसमें आधुनिक हिन्दी के अतिरिक्त ब्रजभाषा, अवधी, बुन्देलखण्डी आदि के कई बहुसंख्यक शब्दों का समावेश किया गया था। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
मुकुंदी लाल श्रीवास्तव (अंग्रेज़ी: Mukundi Lal Srivastava ; जन्म- 25 अक्टूबर, 1896, सागर ज़िला, मध्य प्रदेश) भारत के प्रसिद्ध साहित्यकार तथा लेखक थे। इनकी प्रथम रचना सन 1912 ई. के 'बाल हितैषी' (मेरठ) में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद इनके कई लेख और कविताएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। मुकुंदी लाल ने 'ज्ञानमण्डल' एवं 'काशी विद्यापीठ' में रहकर लगभग 20 पुस्तकों का सम्पादन करने के अतिरिक्त 'ग्रीस और रोम के महापुरुष' एवं 'पश्चिमी यूरोप' के द्वितीय भाग के अर्धांश का अनुवाद किया। इसमें राजवल्लभ सहाय का भी सहयोग इनको मिला था। इसके अतिरिक्त इन्होंने तथा राजवल्लभ सहाय ने कई वर्षों के कठिन परीश्रम के बाद 'हिन्दी शब्द संग्रह' नामक एक बहुमूल्य कोश भी तैयार किया।
जन्म
मुकुंदी लाल श्रीवास्तव का जन्म रविवार, 25 अक्टूबर, सन 1896 ई. में सागर ज़िले के 'गोरझामर' नामक ग्राम में अपने मामा के यहाँ हुआ था। ये जबलपुर, मध्य प्रदेश के निवासी थे।[2]
शिक्षा
मुकुंदी लाल श्रीवास्तव ने मैट्रिक तथा एफ.ए. में उत्तीर्ण छात्रों में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया था, जिस कारण राज्य की ओर से वे छात्रवृत्ति पाते रहे। इसके बाद बी.ए. में भी इनको सरकारी छात्रवृत्ति मिली। मुकुंदी लाल श्रीवास्तव की शिक्षा इनके मामा के यहाँ ही हुई थी। नवम्बर, 1917 ई. में मामा की मृत्यु हो जाने के कारण उनके परिवार के भरण-पोषण की आवश्यकता वश इन्होंने पढ़ाई छोड़कर स्टेट हाईस्कूल में नौकरी कर ली। बाद में बड़े मामा की नौकरी लग जाने पर ये अपने घर जबलपुर चले आये और 'राबर्टसन कालेज' से सन 1920 ई. में बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की।
बाद में मुकुंदी लाल 'दर्शनशास्त्र' में एम.ए. करने के विचार से नागपुर चले गये और वहाँ से सरकारी महाविद्यालय में प्रविष्ट हो गये। उसी वर्ष नागपुर में 'राष्ट्रीय महासभा' का अधिवेशन हुआ। उसमें स्वीकृत असहयोग के प्रस्ताव से प्रभावित होकर इन्होंने एम.ए. प्रीवियस की पढ़ाई समाप्त हो जाने पर कॉलेज छोड़ दिया।
साहित्यिक शुरुआत
मुकुंदी लाल श्रीवास्तव के साहित्यिक जीवन का आरम्भ वस्तुत: उसी समय हो गया था, जब वे 15 वर्ष के थे। इनकी पहली रचना जून, 1912 ई. के 'बाल हितैषी' (मेरठ) में प्रकाशित हुई थी। उसके बाद इनके कई लेख और कविताएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। जब मुकुंदी लाल एफ.ए. में पढ़ते थे, तब 'अवनति क्यों हुई' शीर्षक 40 पृष्ठों का एक निबन्ध लिखने के कारण निबन्ध प्रतियोगिता में 'यवतमाल' (बरार) के रामगोपाल कांजीरिया के ओर से इन्हें एक रजत पदक पुरस्कार में दिया गया।[2]
'रणधीर पराक्रम' की रचना
इसी तरह तृतीय वर्ष की शिक्षा प्राप्त करते समय भी उन्होंने मध्य प्रदेश के तीनों कॉलेजों की एक बड़ी प्रतियोगिता में भाग लिया और उसमें भी विजयी हुए। मुकुंदी लाल श्रीवास्तव ने लगभग एक ही महीने में 'रणधीर पराक्रम' नामक नाटक लिखकर 27 जुलाई, 1919 ई. को तीन सौ रुपये का नकद पुरस्कार प्राप्त किया। इस रकम से इनको बड़ी सहायता मिली और ये चतुर्थ वर्ष की पढ़ाई समाप्त कर बी.ए. की परीक्षा में सफलता प्राप्त कर सके।
प्रधान सम्पादक का पद
मुकुंदी लाल श्रीवास्तव ने काशी के दैनिक 'आज' के लिए 'नीतिशास्त्र की उत्पत्ति' पर एक लेख भेजा, जो उसके तत्कालीन सम्पादक श्रीप्रकाशजी को इतना पसन्द आया कि उन्होंने तुरंत आपको अपने साथ काम करने के लिए काशी बुला लिया। फ़रवरी, 1921 से जुलाई, 1921 ई. तक मुकुंदी लाल दैनिक 'आज' के सहायक सम्पादक रहे और इस बीच उन्होंने उसके लिए पचीसों अग्रलेख तथा कई टिप्पणियाँ लिखीं। इसके बाद ये रामदास गौड़ के हट जाने पर 'ज्ञानमण्डल प्रकाशन विभाग' के अध्यक्ष एवं प्रधान सम्पादक नियुक्त हुए। इसी समय उन्हें 'ज्ञानमण्डल ग्रंथमाला' के सम्पादन के साथ-साथ दो वर्ष तक आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं ऐतिहासिक विषयों के उच्चकोटि के मासिक पत्र 'स्वार्थ' का सम्पादन कार्य करना पड़ा। यह पत्र भी ज्ञानमण्डल से ही प्रकाशित होता था।
काशी विद्यापीठ में प्रधानाध्यापक
ग्रंथमाला के प्रकाशन का कार्य जब ज्ञानमण्डल में बन्द कर 'काशी विद्यापीठ' के जिम्मे कर दिया गया, तब मुकुंदी लाल भी विद्यापीठ चले गये। वहाँ प्रकाशन कार्य के साथ-साथ आप हिन्दी के प्रधानाध्यापक का कार्य भी करते रहे। विद्यापीठ में आर्थिक कठिनाइयाँ उपस्थित हो जाने पर लगभग दस वर्षों के बाद, अन्य कई अध्यापकों के साथ आपको भी वहाँ से हटना पड़ा। जुलाई, 1937 ई. में मुकुंदी लाल श्रीवास्तव पुन: 'आज' में साप्ताहिक संस्करण के सम्पादक बनकर आ गये। सन 1943 ई. के अक्टूबर में वे 'आज' से पृथक् हो गये और शीघ्र ही 'संसार' साप्ताहिक के सम्पादक नियुक्त हुए। बाद में कोई डेढ़ वर्ष तक इन्हें दैनिक 'संसार' का सम्पादन भार भी सँभालना पड़ा और लगभग ढाई वर्ष तक वे वहीं से प्रकाशित 'युगधारा' मासिक पत्रिका के सम्पादक रहे। इसके बाद पुन: ज्ञानमण्डल के प्रकाशन विभाग में आ गये।[2]
'हिन्दी शब्द संग्रह' कोश का निर्माण
'ज्ञानमडण्ल' एवं 'काशी विज्ञापीठ' में रहकर लगभग 20 पुस्तकों का सम्पादन करने के अतिरिक्त मुकुंदी लाल श्रीवास्तव ने 'ग्रीस और रोम के महापुरुष' एवं 'पश्चिमी यूरोप' के द्वितीय भाग के अर्धांश का अनुवाद किया। इसमें राजवल्लभ सहाय का भी सहयोग इन्हें मिला था। इसके अतिरिक्त आपने तथा सहयोगी राजवल्लभ सहाय ने कई वर्षों के कठिन परीश्रम के बाद 'हिन्दी शब्द संग्रह' नामक एक बहुमूल्य कोश तैयार किया। इसमें आधुनिक हिन्दी के अतिरिक्त ब्रजभाषा, अवधी, बुन्देलखण्डी आदि के उन बहुसंख्यक शब्दों का भी समावेश किया गया, जिनका प्रयोग हिन्दी के पुराने कवियों तथा लेखकों की रचनाओं में हुआ था। विभिन्न प्रामाणिक पुस्तकों से इसमें कोई आठ हजार उदाहरण भी दिये गये हैं। जब यह कोश प्रकाशित हुआ था, तब हिन्दी के अनेक विद्वानों ने मुक्त कण्ठ से इसकी प्रशंसा की थी।
अन्य महत्त्वपूर्ण रचनाएँ
इन रचनाओं के अतिरिक्त मुकुंदी लाल श्रीवास्तव ने 'साम्राज्यवाद' नामक एक और पुस्तक लिखी। हिन्दी में अंतर्राष्ट्रीय विषयक साहित्य की यह एक अमूल्य निधि है। 'साम्राज्यवाद' का अध्ययन करने वाले हिन्दी के पाठकों के लिए यह पुस्तक बड़े काम की चीज है। इसकी भूमिका जवाहर लाल नेहरू ने लिखी थी। सन 1951-1952 में राजवल्लभ सहाय के साथ मिलकर मुकुंदी लाल श्रीवास्तव ने 'ज्ञानमण्डल' द्वारा प्रकाशित 'बृहत् हिन्दी कोश' का सम्पादन किया। 1955 ई. में उन्होंने 'ज्ञान शब्द कोश', 'पारिभाषिक शब्द कोश' भी तैयार किये। फिर अंग्रेज़ी से अनुवाद कर 'भारतीय पत्रकार कला', 'मेरे बचपन की कहानी' तथा 'कुछ स्मरणीय मुकदमें' प्रस्तुत किये। इसके बाद एक वर्ष तक 'आज' में मुकुंदी लाल ने 'प्रतिदिन की समस्याएँ' नामक स्तम्भ चलाया, जो बहुत उपयोगी प्रमाणिक हुआ। मुकुंदी लाल श्रीवास्तव 'उत्तर प्रदेश सरकार' द्वारा संचालित 'हिन्दी समिति' के प्रधान सम्पादक भी रहे। इनके द्वारा लिखे गए लेखों की संख्या बारह-तेरह सौ से कम न होगी।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ नागपुर में 'राष्ट्रीय महासभा' का अधिवेशन हुआ था। उसमें स्वीकृत असहयोग के प्रस्ताव से प्रभावित होकर मुकुंदी लाल श्रीवास्तव ने एम.ए. प्रीवियस की पढ़ाई समाप्त हो जाने पर कॉलेज छोड़ दिया।
- ↑ 2.0 2.1 2.2 2.3 हिन्दी साहित्य कोश, भाग-2 |लेखक: डॉ. धीरेन्द्र वर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड |पृष्ठ संख्या: 451 |
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