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'''बसन्त बहार''' ([[अंग्रेज़ी]]: Basant Bahar) वर्ष [[1956]] में प्रदर्शित संगीत-प्रधान फ़िल्म थी। जिसके संगीतकार [[शंकर]]-[[जयकिशन |जयकिशन]] थे। राग आधारित गीतों की रचना फ़िल्म के कथानक की माँग भी थी और उस दौर में इस संगीतकार जोड़ी के लिए चुनौती भी। शंकर-जयकिशन ने [[शास्त्रीय संगीत]] के दो दिग्गजों- [[पण्डित भीमसेन जोशी]] और [[सारंगी]] के सरताज पण्डित रामनारायण को यह ज़िम्मेदारी सौंपी। पण्डित भीमसेन जोशी ने फ़िल्म के गीतकार [[शैलेन्द्र]] को राग बसन्त की एक पारम्परिक बन्दिश गाकर सुनाई और शैलेन्द्र ने 12 मात्रा के ताल पर शब्द रचे।
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'''रेखा गनेशन''' ([[अंग्रेज़ी]]:Rekha Ganeshan) (जन्म- [[10 अक्टूबर]] [[1954]] [[तमिलनाडु]]) [[हिन्दी]] फ़िल्मों की सुप्रसिद्ध अभिनेत्री हैं। अपनी वर्सटैलिटी और [[हिन्दी फ़िल्म|हिन्दी फ़िल्मों]] की बेहतरीन अभिनेत्री मानी जाने वाली रेखा ने अपने करियर की शुरूआत [[1966]] में बाल कलाकार के तौर पर तेलगु फ़िल्म रंगुला रतलाम सेे की थी।
पण्डित जी के साथ पार्श्वगायक मन्ना डे को भी गाना था। [[मन्ना डे]] ने जब यह सुना तो पहले उन्होने मना किया, लेकिन बाद में राजी हुए। इस प्रकार भारतीय फ़िल्म संगीत के इतिहास में एक अविस्मरणीय गीत दर्ज़ हुआ। [[शंकर]] [[जयकिशन]] के संगीत निर्देशन में फ़िल्म के शीर्षक के अनुरूप यह गीत राग 'बसन्त बहार' पर आधारित है। गीतकार [[शैलेन्द्र]] की यह रचना है। इस फ़िल्म में उस समय के सर्वाधिक चर्चित और सफल [[अभिनेता]] भारतभूषण [[नायक]] थे और निर्माता थे आर. चन्द्रा। संगीतकार शंकर-जयकिशन ने फ़िल्म के अधिकतर गीत शास्त्रीय रागों पर आधारित रखे थे। इससे पूर्व भारतभूषण की कई फ़िल्मों में [[मोहम्मद रफ़ी]] उनके लिए सफल गायन कर चुके थे। शशि भारतभूषण के भाई शशिभूषण इस फ़िल्म में [[मोहम्मद रफ़ी]] को ही लेने का आग्रह कर रहे थे, जबकि फ़िल्म निर्देशक मयप्पन [[मुकेश]] से गवाना चाहते थे। यह बात जब शंकर जी को मालूम हुआ तो उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि राग आधारित इन गीतों को [[मन्ना डे]] के अलावा और कोई गा ही नहीं सकता। यह विवाद इतना बढ़ गया कि शंकर-जयकिशन को इस फ़िल्म से हटने की धमकी तक देनी पड़ी। अन्ततः मन्ना डे के नाम पर सहमति बनी। फ़िल्म 'बसन्त बहार' में मन्ना डे के गाये गीत 'मील के पत्थर' सिद्ध हुए। इस फ़िल्म का एक गीत ‘केतकी गुलाब जुही चम्पक बन फूले...’। यह गीत पण्डित [[भीमसेन जोशी]] और [[मन्ना डे]] की आवाज में है।
==जीवन परिचय==
रेखा का पूरा नाम भानुरेखा गणेशन है। इनका जन्म [[10 अक्टूबर]] [[1954]] को [[तमिलनाडु]] में हुआ। कहा जाता है रेखा ने जब फ़िल्मी जीवन की शुरुआत की थी तब वो काफी मोटी थी। उस समय किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि एक मोटी सी लड़की आगे जाकर बॉलीवुड की सदाबहार अभिनेत्री बन जाएगी। रेखा ने सिर्फ व्यावसायिक फ़िल्में की हैं। बल्कि कलात्मक फ़िल्मों से भी उन्होंने अपने अभिनय की छाप छोड़ी है।
रेखा [[1966]] में फ़िल्मों में आ गईं थी। इन्होंने अपनी पहली तेलुगु फ़िल्म 'रंगुला रतलाम' जिसमें एक बाल कलाकार के रूप में भूमिका निभाई थी, लेकिन [[हिंदी सिनेमा]] में उनकी शुरुआत [[1970]] में आई फ़िल्म सावन भादों से हुई।
रेखा ने अपने 40 सालों के लंबे करियर में लगभग 180 से उपर फ़िल्मों में काम किया है। अपने करियर के दौरान उन्होंने कई दमदार रोल किए और कई मजबूत फीमेल किरदार को पर्दे पर बेहतरीन तरीके से पेश किया और मुख्यधारा के सिनेमा के अलावा उन्होंने कई आर्ट फ़िल्मों मे भी काम किया जिसे [[भारत]] में पैरलल सिनेमा कहा जाता हैै। उन्हें तीन बार फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिल चुका है, दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का और एक बार सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री का जिसमें क्रमशः खूबसूरत, खून भरी मांग और खिलाडि़यों का खिलाड़ी जैसी फ़िल्में शामिल हैं। उमराव जान के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का [[राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार]] भी मिल चुका है। उनके करियर का ग्राफ कई बार नीचे भी गिरा लेकिन के उन्होंने अपने को कई बार इससे उबारा और स्टेटस को बरकरार रखने के लिए उनकी क्षमता ने सभी का दिल जीता। [[2010]] में उन्हें [[भारत सरकार]] की ओर से पद्मश्री सम्मान से भी नवाजा गया।
====परिवार====
रेखा का जन्म [[चेन्नई]] में [[तमिल]] अभिनेता जेमिनी गनेशन और तेलगु अभिनेत्री पुष्पावली के यहां हुआ था। उनके पिता अभिनेता के तौर पर काफी सफल हुए और रेखा भी उन्हीं के पदचिन्हों पर चलीं। वे तेलगु को अपनी मातृभाषा मानती हैं। वे [[हिन्दी]], [[तमिल]] और इंग्लिश भी अच्छे से बोल लेती हैं।
====शिक्षा====
रेखा पापुलर चर्च पार्क कान्वेंट, चेन्नई की एल्युंमिनाई रहीं है। रेखा ने अभिनय क्षेत्र में करियर बनाने के लिए पढ़ाई छोड़ दी। उनकी इस लाइन में आने की कोई व्यक्तिगत इच्छा नहीं थी लेकिन परिवार में आर्थिक समस्या होने की वजह से उन्होंने यह कदम उठाया।
====विवाह====
[[1990]] में दिल्ली के कारोबारी मुकेश अग्रवाल से शादी कर ली। अफवाह यह भी उड़ी कि उन्होंने [[1973]] में अभिनेता विनोद मेहरा से शादी की लेकिन [[2004]] में सिमी ग्रेवाल के टीवी इंटरव्यू में मुकेश के साथ उनकी शादी का खंडन किया और उन्हें अपना वेलविशर बताया। वे अभी [[मुंबई]] के बांद्रा इलाके में रहती हैं।
====फ़िल्मी करियर====
वे बाल कलाकार के तौर पर तेलगु फ़िल्म रंगुला रतलाम में दिखाई दीं जिसमें उनका नाम बेबी भानुरेखा बताया गया। [[1969]] में हीरोइन के रूप में उन्होंने अपना डेब्यू सफल कन्नड़ फ़िल्म आॅपरेशन जैकपाट नल्ली सीआईडी 999 से किया था जिसमें उनके हीरो राजकुमार थे। उसी सालद उनकी पहली हिन्दी फ़िल्म अंजाना सफर रिलीज हुई थी। फ़िल्म के एक किसिंग सीन के विवाद के चलते यह फ़िल्म नहीं रिलीज हो पाई। बाद में इस फ़िल्म को दो शिकारी के नाम से रिलीज किया गया।
उनका अभिनय में कोई इंट्रेस्ट नहीं था लेकिन आर्थिक तंगी होने की वजह से उन्होंने यह किया। यह उनके जीवन का कठिन समय था।
[[1970]] में उनकी दो फ़िल्में रिलीज हुईं-तेलगु फ़िल्म अम्मा कोसम और हिन्दी फ़िल्म सावन भादो जो कि उनकी बाॅलीवुड में अभिनेत्री के तौर पर डेब्यू फ़िल्म मानी जाती है। सावन भादो हिट रही और रेखा रातों रात स्टार बन गईं। बाद में उन्हें कई फ़िल्मों में रोल मिलने लगे लेकिन वे एक ग्लैमर गर्ल से ज्यादा कुछ नहीं थे। उस समय उन्होंने रामपुर का लक्ष्मण, कहानी किस्मत की, प्राण जाए पर वचन ना जाए जैसी फ़िल्मों में काम किया। इन सबने अच्छा कारोबार किया। उनकी पहली फ़िल्म जिसमें उनकी परफाॅर्मेंस को सराहा गया, वह थी [[अमिताभ बच्चन]] के साथ दो अंजाने जिसमें उन्होंने अमिताभ की लालची बीवी का किरदार निभाया था। इस फ़िल्म को दर्शकों और आलोचकों की तरफ से ठीक ठाक रेस्पांस मिला। फ़िल्म ‘घर’ उनके करियर का टर्निंग प्वाइंट रही। यह फ़िल्म उनके करियर का माइलटोन रही और फ़िल्म में उनके अभिनय को आलोचकों और जनता दोनों ने काफी सराहा। इस फ़िल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के तौर पर पहली बार फ़िल्मफेेयर पुरस्कार में नामांकित किया गया।
उसी साल आई फ़िल्म मुकद्दर का सिंकंदर में वे एक बार फिर [[अमिताभ बच्चन]] के साथ दिखाई दीं। यह फ़िल्म उस साल की बड़ी हिट रही और रेखा उस समय की सबसे सफल अभिनेत्रियों में शुमार हो गईं। फ़िल्म की काफी तारीफ हुई और रेखा को सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री का के तौर पर फ़िल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया।
 
[[1980]] में वे काॅमेडी फ़िल्म खूबसूरत में दिखाई दीं जिसके निर्देशक [[ऋषिकेश मुखर्जी]] थे जिनके साथ रेखा का पिता-बेटी का रिश्ता बन चुका था। यह फ़िल्म भी सफल हुई और और रेखा को उनकी काॅमिक टाइमिंग के लिए सराहा गया। इसे फ़िल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का पुरस्कार तो मिला ही, साथ ही साथ रेखा को पहली बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला। इसके बाद से अग्रणी फ़िल्म निर्देशकों ने रेखा को और नोटिस किया और अपनी फ़िल्मों मे उन्हें कास्ट करने की खासी रूचि दिखाई। उनकी [[अमिताभ बच्चन]] के साथ आई ज्यादातर फ़िल्में हिट हुईं। उनका अमिताभ के साथ अफेयर मीडिया में काफी चर्चा का विषय भी बना रहा क्योंकि अमिताभ पहले से शादीशुदा थे। इसके बाद आई यश चोपड़ा की फ़िल्म सिलसिला में वे अमिताभ और जया भादुड़ी के साथ नजर आईं। फ़िल्म में रेखा ने अमिताभ की प्रेमिका की भूमिका निभाई तो वहीं जया ने अमिताभ की पत्नी की भूमिका निभाई। इस दौरान उन्होंने अपनी हिन्दी को भी काफी सुधारा जिसके लिए मीडिया में उनकी काफी तारीफ हुई।
[[1981]] में आई उनकी उमराव जान। यह फ़िल्म उनके करियर की बेस्ट फ़िल्मों में से एक रही और इस फ़िल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार भी दिया गया। इसके बाद भी उनकी कई फ़िल्में आई जो कि काफी हिट हुईं।
 
[[1990]] के दौरान रेखा की सफलता में गिरावट हुई। उन्होंने कई ऐसी फ़िल्मों में काम किया जो कि खास कारोबार भी नहीं कर पाईं और आलोचकों से भी अच्छी प्रतिक्रियाएं नहीं मिलीं। इस दौरान श्रीदेवी और माधुरी दीक्षित जैसी अभिनेत्रियां भी चर्चित हो गईं। इसके बाद उन्होंने कामसूत्रः ए टेल आॅफ लव और खिलाडि़यों का खिलाड़ी जैसी फ़िल्मों में काम किया। खिलाडि़यों का खिलाड़ी ने काफी अच्छा कारोबार किया और फ़िल्म उस साल की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फ़िल्मों में से एक रही। इस फ़िल्म में पहली बार रेखा ने मैडम माया का निगेटिव किरदार निभाया था। फ़िल्म में [[अक्षय कुमार]] और रवीना टंडन भी थे।
 
[[2000]] आते आते उन्होंने फ़िल्में कम कर दीं और कुछ ही फ़िल्मों में दिखाई दीं। इस दौरान वे फ़िल्म बुलंदी में दिखाई दीं। 2001 में वे फ़िल्म लज्जा में दिखाई दीं। फिर वे राकेश रोशन की फ़िल्म कोई मिल गया में रितिक की मां के किरदार में पर्दे पर आईं तो वहीं फ़िल्म परिणीता में एक आइटम नंबर भी करती हुई नजर आईं।

12:55, 2 अगस्त 2017 का अवतरण

बसन्त बहार (अंग्रेज़ी: Basant Bahar) वर्ष 1956 में प्रदर्शित संगीत-प्रधान फ़िल्म थी। जिसके संगीतकार शंकर-जयकिशन थे। राग आधारित गीतों की रचना फ़िल्म के कथानक की माँग भी थी और उस दौर में इस संगीतकार जोड़ी के लिए चुनौती भी। शंकर-जयकिशन ने शास्त्रीय संगीत के दो दिग्गजों- पण्डित भीमसेन जोशी और सारंगी के सरताज पण्डित रामनारायण को यह ज़िम्मेदारी सौंपी। पण्डित भीमसेन जोशी ने फ़िल्म के गीतकार शैलेन्द्र को राग बसन्त की एक पारम्परिक बन्दिश गाकर सुनाई और शैलेन्द्र ने 12 मात्रा के ताल पर शब्द रचे।

पण्डित जी के साथ पार्श्वगायक मन्ना डे को भी गाना था। मन्ना डे ने जब यह सुना तो पहले उन्होने मना किया, लेकिन बाद में राजी हुए। इस प्रकार भारतीय फ़िल्म संगीत के इतिहास में एक अविस्मरणीय गीत दर्ज़ हुआ। शंकर जयकिशन के संगीत निर्देशन में फ़िल्म के शीर्षक के अनुरूप यह गीत राग 'बसन्त बहार' पर आधारित है। गीतकार शैलेन्द्र की यह रचना है। इस फ़िल्म में उस समय के सर्वाधिक चर्चित और सफल अभिनेता भारतभूषण नायक थे और निर्माता थे आर. चन्द्रा। संगीतकार शंकर-जयकिशन ने फ़िल्म के अधिकतर गीत शास्त्रीय रागों पर आधारित रखे थे। इससे पूर्व भारतभूषण की कई फ़िल्मों में मोहम्मद रफ़ी उनके लिए सफल गायन कर चुके थे। शशि भारतभूषण के भाई शशिभूषण इस फ़िल्म में मोहम्मद रफ़ी को ही लेने का आग्रह कर रहे थे, जबकि फ़िल्म निर्देशक मयप्पन मुकेश से गवाना चाहते थे। यह बात जब शंकर जी को मालूम हुआ तो उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि राग आधारित इन गीतों को मन्ना डे के अलावा और कोई गा ही नहीं सकता। यह विवाद इतना बढ़ गया कि शंकर-जयकिशन को इस फ़िल्म से हटने की धमकी तक देनी पड़ी। अन्ततः मन्ना डे के नाम पर सहमति बनी। फ़िल्म 'बसन्त बहार' में मन्ना डे के गाये गीत 'मील के पत्थर' सिद्ध हुए। इस फ़िल्म का एक गीत ‘केतकी गुलाब जुही चम्पक बन फूले...’। यह गीत पण्डित भीमसेन जोशी और मन्ना डे की आवाज में है।