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इनकी लता का रंग मालामिश्रित लाल तथा इसके पत्ते तीन चार अंगुल लंबे, जामुन के पत्तों के आकार के होते हैं, पर श्वेत लकीरों वाले होते हैं। इनके तोड़ने पर एक प्रकार का [[दूध]] जैसा द्रव निकलता है। इस बेल में सफेद छोटे फूल लगे होते हैं, इन पर फलियाँ लगती हैं। इसकी जड़ गहरी लाल तथा सुगंध वाली होती हैं। यह सुगंध एक उड़नशील सुगंधित द्रव्य के कारण होती है, जिस पर इस औषधि के समस्त गुण अवलंबित प्रतीत होते हैं। अनंतमूल बेल की जड़ें औषधि बनाने के काम में आती हैं।<ref name="cc"/> | इनकी लता का रंग मालामिश्रित लाल तथा इसके पत्ते तीन चार अंगुल लंबे, जामुन के पत्तों के आकार के होते हैं, पर श्वेत लकीरों वाले होते हैं। इनके तोड़ने पर एक प्रकार का [[दूध]] जैसा द्रव निकलता है। इस बेल में सफेद छोटे फूल लगे होते हैं, इन पर फलियाँ लगती हैं। इसकी जड़ गहरी लाल तथा सुगंध वाली होती हैं। यह सुगंध एक उड़नशील सुगंधित द्रव्य के कारण होती है, जिस पर इस औषधि के समस्त गुण अवलंबित प्रतीत होते हैं। अनंतमूल बेल की जड़ें औषधि बनाने के काम में आती हैं।<ref name="cc"/> | ||
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इस बेल को [[संस्कृत|संस्कृत भाषा]] में 'सारिवा', [[गुजराती|गुजराती भाषा]] में 'उपलसरि', 'कावर बेल' इत्यादि, [[हिंदी भाषा]] में, [[बांग्ला भाषा]] में और [[मराठी भाषा]] में अनंतमूल तथा [[अंग्रेज़ी]] में 'इंडियन सार्सापरिला' कहते हैं।<ref name="cc">{{cite web |url=http:// | इस बेल को [[संस्कृत|संस्कृत भाषा]] में 'सारिवा', [[गुजराती|गुजराती भाषा]] में 'उपलसरि', 'कावर बेल' इत्यादि, [[हिंदी भाषा]] में, [[बांग्ला भाषा]] में और [[मराठी भाषा]] में अनंतमूल तथा [[अंग्रेज़ी]] में 'इंडियन सार्सापरिला' कहते हैं।<ref name="cc">{{cite web |url=http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%B2 |title=अनंतमूल|accessmonthday=10 अगस्त|accessyear=2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतकोश|language=हिंदी }}</ref> | ||
==औषधियों मे प्रयोग== | ==औषधियों मे प्रयोग== | ||
आयर्वैदिक रक्तशोशक औषधियों में इसी का प्रयोग किया जाता हैं। काढ़े या पाक के रूप में अनंतमूल दिया जाता है। [[आयुर्वेद]] के मतानुसार यह सूजन कम करती है, मूत्ररेचक है, अग्निमांद्य, ज्वर, रक्तदोष, उपदंश, [[कुष्ठ]], गठिया, सर्पदंश, वृश्चिकदंश इत्यादि में उपयोगी हैं। | आयर्वैदिक रक्तशोशक औषधियों में इसी का प्रयोग किया जाता हैं। काढ़े या पाक के रूप में अनंतमूल दिया जाता है। [[आयुर्वेद]] के मतानुसार यह सूजन कम करती है, मूत्ररेचक है, अग्निमांद्य, ज्वर, रक्तदोष, उपदंश, [[कुष्ठ]], गठिया, सर्पदंश, वृश्चिकदंश इत्यादि में उपयोगी हैं। |
12:27, 25 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
अनंतमूल
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जगत | पादप |
गण | जेंटियानेलिस (Gentianales) |
कुल | एपोसाइनेसी (Apocynaceae) |
जाति | एच. इण्डिकस (H. indicus) |
प्रजाति | हेमिडेसमस (Hemidesmus) |
द्विपद नाम | हेमिडेसमस इण्डिकस (Hemidesmus indicus) |
अन्य जानकारी | अनंतमूल की लता का रंग मालामिश्रित लाल तथा इसके पत्ते तीन चार अंगुल लंबे, जामुन के पत्तों के आकार के होते हैं, पर श्वेत लकीरों वाले होते हैं। |
अनंतमूल (अंग्रेज़ी: Indian Sarsaparilla, वानस्पतिक नाम- Hemidesmus indicus) एक बेल है, जो लगभग सारे भारतवर्ष में पाई जाती है। इनमें सुगंध एक उड़नशील सुगंधित द्रव्य के कारण होती है, जिस पर इस औषधि के समस्त गुण अवलंबित प्रतीत होते हैं। इनकी जडें औषधि बनाने के काम में आती हैं।
आकार एवं गुण
इनकी लता का रंग मालामिश्रित लाल तथा इसके पत्ते तीन चार अंगुल लंबे, जामुन के पत्तों के आकार के होते हैं, पर श्वेत लकीरों वाले होते हैं। इनके तोड़ने पर एक प्रकार का दूध जैसा द्रव निकलता है। इस बेल में सफेद छोटे फूल लगे होते हैं, इन पर फलियाँ लगती हैं। इसकी जड़ गहरी लाल तथा सुगंध वाली होती हैं। यह सुगंध एक उड़नशील सुगंधित द्रव्य के कारण होती है, जिस पर इस औषधि के समस्त गुण अवलंबित प्रतीत होते हैं। अनंतमूल बेल की जड़ें औषधि बनाने के काम में आती हैं।[1]
अन्य नाम
इस बेल को संस्कृत भाषा में 'सारिवा', गुजराती भाषा में 'उपलसरि', 'कावर बेल' इत्यादि, हिंदी भाषा में, बांग्ला भाषा में और मराठी भाषा में अनंतमूल तथा अंग्रेज़ी में 'इंडियन सार्सापरिला' कहते हैं।[1]
औषधियों मे प्रयोग
आयर्वैदिक रक्तशोशक औषधियों में इसी का प्रयोग किया जाता हैं। काढ़े या पाक के रूप में अनंतमूल दिया जाता है। आयुर्वेद के मतानुसार यह सूजन कम करती है, मूत्ररेचक है, अग्निमांद्य, ज्वर, रक्तदोष, उपदंश, कुष्ठ, गठिया, सर्पदंश, वृश्चिकदंश इत्यादि में उपयोगी हैं।
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