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||[[चित्र:Jain-Symbol.jpg|right|border|80px|जैन धर्म का प्रतीक चिह्न]]'स्यादवाद' या 'अनेकांतवाद' या 'सप्तभंगी का सिद्धान्त' [[जैन धर्म]] में मान्य सिद्धांतों में से एक है। [[स्यादवाद]] का अर्थ 'सापेक्षतावाद' होता है। यह जैन दर्शन के अंतर्गत किसी वस्तु के गुण को समझने, समझाने और अभिव्यक्त करने का सापेक्षिक सिद्धांत है। 'सापेक्षता' | ||[[चित्र:Jain-Symbol.jpg|right|border|80px|जैन धर्म का प्रतीक चिह्न]]'स्यादवाद' या 'अनेकांतवाद' या 'सप्तभंगी का सिद्धान्त' [[जैन धर्म]] में मान्य सिद्धांतों में से एक है। [[स्यादवाद]] का अर्थ 'सापेक्षतावाद' होता है। यह जैन दर्शन के अंतर्गत किसी वस्तु के गुण को समझने, समझाने और अभिव्यक्त करने का सापेक्षिक सिद्धांत है। 'सापेक्षता' अर्थात् 'किसी अपेक्षा से'। अपेक्षा के विचारों से कोई भी चीज सत् भी हो सकती है और असत् भी। इसी को 'सत्तभंगी नय' से समझाया जाता है। इसी का नाम 'स्यादवाद' है। विचारों को तार्किक रूप से अभिव्यक्त करने और ज्ञान की सापेक्षता का महत्व दर्शाने के लिए ही [[जैन दर्शन]] ने 'स्यादवाद' या 'सत्तभंगी नय' का सिद्धांत प्रतिपादित किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[स्यादवाद]] | ||
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07:48, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
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