"जसवंत सिंह द्वितीय": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
छो (Text replacement - "शृंगार" to "श्रृंगार")
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
*इनके पुस्तकालय में [[संस्कृत]] और [[भाषा]] के बहुत से ग्रंथ थे।  
*इनके पुस्तकालय में [[संस्कृत]] और [[भाषा]] के बहुत से ग्रंथ थे।  
*इनका कविता काल संवत 1856 अनुमान किया गया है।  
*इनका कविता काल संवत 1856 अनुमान किया गया है।  
*इन्होंने दो ग्रंथ लिखे एक 'शालिहोत्रा' और दूसरा 'शृंगारशिरोमणि'।  
*इन्होंने दो ग्रंथ लिखे एक 'शालिहोत्रा' और दूसरा 'श्रृंगारशिरोमणि'।  
*इनका दूसरा ग्रंथ शृंगाररस का एक बड़ा ग्रंथ है। कविता साधारण है।  
*इनका दूसरा ग्रंथ श्रृंगाररस का एक बड़ा ग्रंथ है। कविता साधारण है।  
<poem>घनन के घोर, सोर चारों ओर मोरन के,
<poem>घनन के घोर, सोर चारों ओर मोरन के,
अति चितचोर तैसे अंकुर मुनै रहैं।
अति चितचोर तैसे अंकुर मुनै रहैं।

07:56, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

जसवंत सिंह एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- जसवंत सिंह (बहुविकल्पी)
  • जसवंत सिंह द्वितीय बघेल क्षत्रिय और तेरवाँ, कन्नौज के पास, के राजा थे और बहुत अधिक विद्याप्रेमी थे।
  • इनके पुस्तकालय में संस्कृत और भाषा के बहुत से ग्रंथ थे।
  • इनका कविता काल संवत 1856 अनुमान किया गया है।
  • इन्होंने दो ग्रंथ लिखे एक 'शालिहोत्रा' और दूसरा 'श्रृंगारशिरोमणि'।
  • इनका दूसरा ग्रंथ श्रृंगाररस का एक बड़ा ग्रंथ है। कविता साधारण है।

घनन के घोर, सोर चारों ओर मोरन के,
अति चितचोर तैसे अंकुर मुनै रहैं।
कोकिलन कूक हूक होति बिरहीन हिय,
लूक से लगत चीर चारन चुनै रहैं
झिल्ली झनकार तैसो पिकन पुकार डारी,
मारि डारी डारी दु्रम अंकुर सु नै रहैं।
लुनै रहैं प्रान प्रानप्यारे जसवंत बिनु,
कारे पीरे लाल ऊदे बादर उनै रहैं


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख