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||[[मालवा]] ज्वालामुखी के उद्गार से बना [[पश्चिमी भारत]] का एक अंचल है जो वर्तमान में [[मध्य प्रदेश]] प्रांत के पश्चिमी भाग में स्थित है। इसे प्राचीनकाल में मालवा या मालव के नाम से जाना जाता था। मालव 'देवी [[लक्ष्मी]] के आवास का हिस्सा' कहलाता है। समुद्र तल से इसकी औसत ऊँचाई 496 मीटर है। [[आकरअवंति]] पूर्व तथा पश्चिम मालवा का संयुक्त नाम है। यह [[कर्क रेखा]] द्वारा दो हिस्सों में विभाजित है। इस क्षेत्र में [[इंदौर]], [[भोपाल]], [[ग्वालियर]] व [[जबलपुर]] संभागों के लगभग 18 ज़िले और [[महाराष्ट्र]] व [[राजस्थान]] के कुछ हिस्से शामिल हैं।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मालवा]]
||[[मालवा]] ज्वालामुखी के उद्गार से बना [[पश्चिमी भारत]] का एक अंचल है जो वर्तमान में [[मध्य प्रदेश]] प्रांत के पश्चिमी भाग में स्थित है। इसे प्राचीनकाल में मालवा या मालव के नाम से जाना जाता था। मालव 'देवी [[लक्ष्मी]] के आवास का हिस्सा' कहलाता है। समुद्र तल से इसकी औसत ऊँचाई 496 मीटर है। [[आकरअवंति]] पूर्व तथा पश्चिम मालवा का संयुक्त नाम है। यह [[कर्क रेखा]] द्वारा दो हिस्सों में विभाजित है। इस क्षेत्र में [[इंदौर]], [[भोपाल]], [[ग्वालियर]] व [[जबलपुर]] संभागों के लगभग 18 ज़िले और [[महाराष्ट्र]] व [[राजस्थान]] के कुछ हिस्से शामिल हैं।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[मालवा]]




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+[[अभिज्ञान शाकुंतलम्|अभिज्ञान शाकुंतलम]]
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-[[मेघदूत]]
-[[मेघदूत]]
||[[अभिज्ञान शाकुन्तलम्]] न केवल [[संस्कृत साहित्य]] का, अपितु विश्वसाहित्य का सर्वोत्कृष्ट नाटक है। यह [[कालिदास]] की अन्तिम रचना है। इसके सात अंकों में [[दुष्यन्त|राजा दुष्यन्त]] और [[शकुन्तला]] की प्रणय-कथा का वर्णन है। इसका कथानक [[महाभारत]] के [[आदि पर्व महाभारत|आदि पर्व]] के शकुन्तलोपाख्यान से लिया गया है। [[कण्व]] के माध्यम से एक पिता का पुत्री को दिया गया उपदेश आज 2,000 वर्षों के बाद भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना उस समय में था। {{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अभिज्ञान शाकुन्तलम्]]
||[[अभिज्ञान शाकुन्तलम्]] न केवल [[संस्कृत साहित्य]] का, अपितु विश्वसाहित्य का सर्वोत्कृष्ट नाटक है। यह [[कालिदास]] की अन्तिम रचना है। इसके सात अंकों में [[दुष्यन्त|राजा दुष्यन्त]] और [[शकुन्तला]] की प्रणय-कथा का वर्णन है। इसका कथानक [[महाभारत]] के [[आदि पर्व महाभारत|आदि पर्व]] के शकुन्तलोपाख्यान से लिया गया है। [[कण्व]] के माध्यम से एक पिता का पुत्री को दिया गया उपदेश आज 2,000 वर्षों के बाद भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना उस समय में था। {{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[अभिज्ञान शाकुन्तलम्]]


{आरम्भिक तमिल लेखों पर किन [[भाषा|भाषाओं]] का प्रभाव नहीं था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-228,प्रश्न-915
{आरम्भिक तमिल लेखों पर किन [[भाषा|भाषाओं]] का प्रभाव नहीं था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-228,प्रश्न-915
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-[[पालि भाषा|पालि]]
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+[[कन्नड़]]
+[[कन्नड़]]
||[[कन्नड़ भाषा]] कन्नड़ी भी कहलाती है। दक्षिण-पश्चिम [[भारत]] के [[कर्नाटक|कर्नाटक राज्य]] की राजभाषा, जो दक्षिण द्रविड़ शाखा से सम्बद्ध है और साहित्यिक परम्परा वाली चार प्रधान द्रविड़ भाषाओं में दूसरी सबसे प्राचीन [[भाषा]] है। हालमिदी स्थित पहला कन्नड़ अभिलेख 450 ई. का है।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कन्नड़]]
||[[कन्नड़ भाषा]] कन्नड़ी भी कहलाती है। दक्षिण-पश्चिम [[भारत]] के [[कर्नाटक|कर्नाटक राज्य]] की राजभाषा, जो दक्षिण द्रविड़ शाखा से सम्बद्ध है और साहित्यिक परम्परा वाली चार प्रधान द्रविड़ भाषाओं में दूसरी सबसे प्राचीन [[भाषा]] है। हालमिदी स्थित पहला कन्नड़ अभिलेख 450 ई. का है।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[कन्नड़]]


{[[गुप्तोत्तर काल|गुप्तोत्तरकालीन]] भूमि व्यवस्था के बारे में कौन-सा कथन सत्य है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-234,प्रश्न-1002
{[[गुप्तोत्तर काल|गुप्तोत्तरकालीन]] भूमि व्यवस्था के बारे में कौन-सा कथन सत्य है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-234,प्रश्न-1002
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-इसका आशय एक स्वर्ण सिक्के से था।
-इसका आशय एक स्वर्ण सिक्के से था।
-इसका आशय [[गुप्तकाल]] में प्रचालित एक सिक्के से था।
-इसका आशय [[गुप्तकाल]] में प्रचालित एक सिक्के से था।
-इसका प्रयोग केवल भूमि के क्रय-विकेय के लिए होता था।
-इसका प्रयोग केवल भूमि के क्रय-विक्रय के लिए होता था।
+उपर्युक्त सभी
+उपर्युक्त सभी
||[[दीनार]] स्वर्ण का सिक्का, जो प्राचीन समय में [[एशिया]] तथा [[यूरोप]] में प्रमुखता से चलता था। [[संस्कृत]] में दीनार का उल्लेख 'दीनारः' के रूप में मिलता है। [[कुषाण काल|कुषाण शासन काल]] के सोने के सिक्के का वज़न 124 ग्रेन होता था, जबकि [[गुप्त काल]] में इस सिक्के का वज़न 144 ग्रेन था। यह [[कुषाण]] के सिक्कों पर आधारित था। अपने रोमन रूप में दीनार का मूल्य क़रीब साढ़े चार ग्राम स्वर्ण के बराबर था। आज दुनिया के तमाम मुल्कों में दीनार [[धातु]] की मुद्रा की बजाय [[काग़ज़]] के नोट के रूप में डटी हुई है।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[दीनार]]


{[[चोल|चोलो]] ने निम्न में से किसके सिक्के चलवाये? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-243,प्रश्न-1125
{[[चोल|चोलों]] ने निम्न में से किसके सिक्के चलवाये? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-243,प्रश्न-1125
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+[[सोना]], [[चाँदी]], [[ताँबा]]
+[[सोना]], [[चाँदी]], [[ताँबा]]
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-चाँदी, राँगा, ताँबा
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-[[सीसा]], [[सोना]], [[चाँदी]]
-[[सीसा]], [[सोना]], [[चाँदी]]
||[[चोल साम्राज्य]] का अभ्युदय नौवीं शताब्दी में हुआ और दक्षिण प्राय:द्वीप का अधिकांश भाग इसके अधिकार में था। [[चोल राजवंश|चोल शासकों]] ने [[श्रीलंका]] पर भी विजय प्राप्त कर ली थी और [[मालदीव|मालदीव द्वीपों]] पर भी इनका अधिकार था। कुछ समय तक इनका प्रभाव [[कलिंग]] और [[तुंगभद्रा नदी|तुंगभद्र]] [[दोआब]] पर भी छाया था। इनके पास शक्तिशाली नौसेना थी और ये दक्षिण पूर्वी एशिया में अपना प्रभाव क़ायम करने में सफल हो सके।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[चोल साम्राज्य]]


{[[पाल वंश|पालों]] एवं [[प्रतिहार साम्राज्य|प्रतिहारों]] के अंतर्गत '[[पट्टला]]' से आशय क्या था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-247,प्रश्न-1169
{[[पाल वंश|पालों]] एवं [[प्रतिहार साम्राज्य|प्रतिहारों]] के अंतर्गत '[[पट्टला]]' से आशय क्या था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-247,प्रश्न-1169
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-मंडल से छोटे एकाश
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-इनमें से कोई नहीं
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||[[उत्तर भारत]] में 'प्राचीन भारतीय कृषिजन्य व्यवस्था एवं राजस्व संबंधी पारिभाषिक शब्दावली' के अनुसार [[पट्टला]] का अर्थ एक जनपद का उपखंड है।


{[[बुद्ध]] के अनुसार सभी मानवीय दु:खों का कारण तृष्णा है, जिसका अर्थ है- (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-202,प्रश्न-486
{[[बुद्ध]] के अनुसार सभी मानवीय दु:खों का कारण तृष्णा है, जिसका अर्थ है- (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-202,प्रश्न-486
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-मन की अतिशय क्रियाशीलता
-मन की अतिशय क्रियाशीलता


{[[मौर्य काल|मौर्य]] शासन-व्यवस्था में रूपदर्शक अधिकारी था- (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-212,प्रश्न-654
{[[मौर्य काल|मौर्य]] शासन-व्यवस्था में [[रूपदर्शक]] अधिकारी था- (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-212,प्रश्न-654
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-[[चाँदी]] तथा अन्य धातुओं का परीक्षा
-[[चाँदी]] तथा अन्य धातुओं का परीक्षा
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-[[रंगमंच]] का प्रबन्धक
-[[रंगमंच]] का प्रबन्धक
+सिक्कों का प्रबन्धक
+सिक्कों का प्रबन्धक
||[[उत्तर भारत]] में 'प्राचीन भारतीय कृषिजन्य व्यवस्था एवं राजस्व संबंधी पारिभाषिक शब्दावली' के अनुसार [[रूपदर्शक]] का अर्थ है टकसाल अधीक्षक के निर्देशन में सिक्कों का परीक्षण।
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11:44, 11 नवम्बर 2017 का अवतरण

1 भारत में हिन्द-यूनानी शासन की स्थापना से पूर्व सिक्कों का प्रसारण किसके द्वारा किया जाता था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-218,प्रश्न-759

शासकों
व्यक्तिगत व्यापारियों
व्यापारिक निगमों
उपर्युक्त सभी

2 गुप्तकालीन जनपदों की सूची में प्रथम जनपद का सम्मान निम्न में से किसे दिया गया? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-230,प्रश्न-944

मालवा
मगध
प्रयाग
उपर्युक्त में से कोई नहीं

3 कालिदास के किस ग्रंथ में प्रत्यभिज्ञा दर्शन का निरूपण हुआ है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-225,प्रश्न-861

रघुवंश
कुमारसम्भव
अभिज्ञान शाकुंतलम
मेघदूत

4 आरम्भिक तमिल लेखों पर किन भाषाओं का प्रभाव नहीं था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-228,प्रश्न-915

संस्कृत
प्राकृत
पालि
कन्नड़

5 गुप्तोत्तरकालीन भूमि व्यवस्था के बारे में कौन-सा कथन सत्य है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-234,प्रश्न-1002

अर्थव्यवस्था कृषि मूलक थी।
राज सत्ता भू-सम्पत्ति से घनिष्ठ रूप से संबद्ध हो गयी।
अभिलेखों में सामूहिक स्वामित्व के साक्ष्य प्राप्त होते हैं।
उपर्युक्त सभी

6 दीनार के विषय में निम्नलिखित कथनों में से कौन सही है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-239,प्रश्न-1074

इसका आशय एक स्वर्ण सिक्के से था।
इसका आशय गुप्तकाल में प्रचालित एक सिक्के से था।
इसका प्रयोग केवल भूमि के क्रय-विक्रय के लिए होता था।
उपर्युक्त सभी

7 चोलों ने निम्न में से किसके सिक्के चलवाये? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-243,प्रश्न-1125

सोना, चाँदी, ताँबा
सोना, चाँदी, राँगा
चाँदी, राँगा, ताँबा
सीसा, सोना, चाँदी

8 पालों एवं प्रतिहारों के अंतर्गत 'पट्टला' से आशय क्या था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-247,प्रश्न-1169

विषय से छोटे एकाश
भुक्ति से छोटे एकाश
मंडल से छोटे एकाश
इनमें से कोई नहीं

9 बुद्ध के अनुसार सभी मानवीय दु:खों का कारण तृष्णा है, जिसका अर्थ है- (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-202,प्रश्न-486

सांसारिक वस्तुओं की इच्छा
भौतिक सुखों एवं सांसारिक भोग-विलास की इच्छा
सांसारिक या भौतिक अनुरक्ति
मन की अतिशय क्रियाशीलता

10 मौर्य शासन-व्यवस्था में रूपदर्शक अधिकारी था- (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-212,प्रश्न-654

चाँदी तथा अन्य धातुओं का परीक्षा
गणिकाओं का अध्यक्ष
रंगमंच का प्रबन्धक
सिक्कों का प्रबन्धक