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{[[असहयोग आंदोलन]] ([[1920]]-[[1922]]) को क्यों निलंबित किया गया? (लुसेंट सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-102,प्रश्न-12 | |||
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-[[गांधी जी]] की अस्वस्थता के कारण | |||
-[[हिन्दू|हिन्दुओं]] और [[मुसलमान|मुसलमानों]] के बीच मतभेदों के कारण | |||
-नेतागणों के बीच मतभेदों के कारण | |||
+[[चौरी चौरा]] में हुई हिंसक घटना के कारण | |||
||[[असहयोग आन्दोलन]] का संचालन स्वराज की माँग को लेकर किया गया। इसका उद्देश्य सरकार के साथ सहयोग न करके कार्यवाही में बाधा उपस्थित करना था। असहयोग आन्दोलन [[गांधी जी]] ने [[1 अगस्त]], [[1920]] को आरम्भ किया। [[5 फ़रवरी]], [[1922]] को [[देवरिया]] ज़िले के [[चौरी चौरा]] नामक स्थान पर पुलिस ने जबरन एक जुलूस को रोकना चाहा, इसके फलस्वरूप जनता ने क्रोध में आकर थाने में आग लगा दी, जिसमें एक थानेदार एवं 21 सिपाहियों की मृत्यु हो गई। इस घटना से गांधी जी स्तब्ध रह गए। [[12 फ़रवरी]], 1922 को बारदोली में हुई [[कांग्रेस]] की बैठक में असहयोग आन्दोलन को समाप्त करने के निर्णय के बारे में गांधी जी ने 'यंग इण्डिया' में लिखा था कि, "आन्दोलन को हिंसक होने से बचाने के लिए मैं हर एक अपमान, हर एक यातनापूर्ण बहिष्कार, यहाँ तक की मौत भी सहने को तैयार हूँ।" अब गांधी जी ने रचनात्मक कार्यों पर ज़ोर दिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[असहयोग आन्दोलन]], [[चौरी चौरा]] | |||
{[[20 सितम्बर]], [[1932]] को यर्वदा जेल में [[महात्मा गाँधी]] ने आमरण अनशन किसके विरोध में किया? (लुसेंट सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-102,प्रश्न-23 | |||
|type="()"} | |||
-सत्याग्रहियों पर ब्रिटिश दमन के विरुद्ध | |||
-[[गांधी-इरविन समझौता|गांधी-इरविन पैक्ट]] के उल्लंघन के विरुद्ध | |||
+रैम्से मैकडोनाल्ड के सांप्रदायिक पंचाट (Communal Award) के विरुद्ध | |||
-[[कलकत्ता]] में सांप्रदायिक दंगे के विरुद्ध | |||
{[[मुस्लिम लीग]] ने 'मुक्ति दिवस' किस [[वर्ष]] मनाया था? (लुसेंट सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-105,प्रश्न-102 | |||
|type="()"} | |||
+[[1939]] | |||
-[[1942]] | |||
-[[1946]] | |||
-[[1947]] | |||
{निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-(लुसेंट सामान्य ज्ञान,) | |||
|type="()"} | |||
-[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] का दूसरा अधिवेशन [[दादाभाई नौरोजी]] की अध्यक्षता में हुआ। | |||
-[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] तथा [[मुस्लिम लीग]], दोनों ने [[लखनऊ]] में [[1916]] में अधिवेशन किया तथा [[लखनऊ समझौता]] सम्पन्न हुआ। | |||
+उपर्युक्त दोनों | |||
-इनमें से कोई नहीं | |||
{[[भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन]] के [[1905]]-[[1917]] की अवधि को क्या कहा जाता है?(लुसेंट सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-98,प्रश्न-1 | |||
|type="()"} | |||
-उदारवादी चरण | |||
+उग्रवादी चरण | |||
-[[गांधी युग]] | |||
-इनमें से कोई नहीं | |||
{भारतीय परिषद अधिनियम, [[1909]] का सर्वग्राह्य नाम है- (लुसेंट सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-98,प्रश्न-11 | |||
|type="()"} | |||
-संसद अधिनियम | |||
-माण्टेग्यू-चेम्सफ़ोर्ड सुधार | |||
+[[मॉर्ले-मिण्टो सुधार]] | |||
-न्यायपालिका अधिनियम | |||
||[[मॉर्ले मिण्टो सुधार]] को [[1909]] ई. का 'भारतीय परिषद अधिनियम' भी कहा जाता है। [[ब्रिटेन]] में [[1906]] ई. में लिबरल पार्टी की चुनावी जीत के साथ ही [[भारत]] के लिए सुधारों का एक नया युग शुरू हुआ। [[वाइसराय]] के कार्यभार से बंधे होने के कारण [[लॉर्ड मिन्टो द्वितीय|लॉर्ड मिण्टो]] और भारत का राज्य सचिव [[जॉन मार्ले]] ब्रिटिश भारत सरकार के वैधानिक एवं प्रशासनिक तंत्र में कई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन करने में सफल रहे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मॉर्ले मिण्टो सुधार]] | |||
{किसे लोकप्रिय नाम 'लाल कुर्ती' (कमीजों) के रूप में जाना जाता है? (लुसेंट सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-103,प्रश्न-53 | |||
|type="()"} | |||
-कांग्रेस समाजवादियों को | |||
-[[आज़ाद हिंद फ़ौज]] के सदस्यों को | |||
+खुदाई खिदमतगारों को | |||
-रानी गौडिनल्यू द्वारा नीत लोगों को | |||
{प्रसिद्ध मुस्लिम शासिका [[चाँद बीबी]], जिसने [[बरार]] को [[अकबर]] को सौंपा निम्नलिखित में से किस [[राज्य]] से सबंधित थी? (लुसेंट सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-54,प्रश्न-10 | |||
|type="()"} | |||
-[[बीजापुर]] | |||
-[[गोलकुंडा]] | |||
+[[अहमदनगर]] | |||
-[[बरार]] | |||
||[[चाँद बीबी]] [[अहमदनगर]] के तीसरे शासक [[हुसैन निज़ामशाह प्रथम]] की पुत्री थी, जिसका [[विवाह]] [[बीजापुर]] के पाँचवें सुल्तान [[अली आदिलशाह प्रथम|अली आदिलशाह]] (1557-80 ई.) के साथ हुआ था। 1580 ई. में पति की मृत्यु हो जाने पर वह अपने नाबालिग बेटे [[इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय]] (बीजापुर के पाँचवें सुल्तान) की अभिभाविका बन गयी। बीजापुर का प्रशासन मंत्रियों के द्वारा चलाया जाता रहा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चाँद बीबी]] | |||
{[[दारा शिकोह]] एवं [[औरंगज़ेब]] के मध्य हुए उत्तराधिकार युद्धों में सबसे निर्णायक युद्ध कौन-सा माना जाता है? (लुसेंट सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-60,प्रश्न-179 | |||
|type="()"} | |||
-[[धरमत का युद्ध]] | |||
+[[सामूगढ़ का युद्ध]] | |||
-देवराई का युद्ध | |||
-इनमें से कोई नहीं | |||
||[[सामूगढ़ का युद्ध]] [[29 मई]], 1658 ई. को [[मुग़ल]] बादशाह [[शाहजहाँ]] के पुत्रों, [[दारा शिकोह]] और [[औरंगज़ेब]] तथा [[मुराद बख़्श]] की संयुक्त सेनाओं के मध्य लड़ा गया था। इस युद्ध में दारा शिकोह को [[हाथी]] पर बैठा हुआ न देखकर उसकी शेष सेना में भगदड़ मच गई और जिसके कारण दारा युद्ध हार गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सामूगढ़ का युद्ध]] | |||
{[[मुग़लकाल|मुग़लकालीन]] [[मनसबदार|मनसबदारी व्यवस्था]] में 'जात' एवं 'सवार' किसका बोधक था? (लुसेंट सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-60,प्रश्न-191 | |||
|type="()"} | |||
+क्रमश: मनसबदार के पद एवं उसके सैनिक दायित्वों का | |||
-क्रमश: मनसबदार के सैनिक दायित्व एवं उसके पद का | |||
-क्रमश: मनसबदार के पद एवं उसके अधीन मनसब का | |||
-क्रमश: मनसबदार के अधीन मनसब एवं उसके पद का | |||
||[[मनसबदार]], [[मुग़ल]] शासनकाल में बादशाह [[अकबर]] के समय में उसे कहते थे, जिसे कोई [[मनसब]] अथवा ओहदा मिलता था। किसी भी मनसबदार को उसके मनसब के हिसाब से ही वेतन दिया जाता था। मनसबदार को राज्य की सेवा के लिये निश्चित संख्या में घुड़सवार तथा [[हाथी]] आदि देने पड़ते थे। [[मुग़ल साम्राज्य]] में मनसबदार नियुक्त होने के लिये किसी विशेष योग्यता की आवश्यकता नहीं थी। राज्य में ऊँचे मनसबदार शाही परिवार के ही लोग हुआ करते थे। | |||
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12:14, 23 नवम्बर 2017 का अवतरण
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