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||[[असहयोग आन्दोलन]] का संचालन स्वराज की माँग को लेकर किया गया। इसका उद्देश्य सरकार के साथ सहयोग न करके कार्यवाही में बाधा उपस्थित करना था। असहयोग आन्दोलन [[गांधी जी]] ने [[1 अगस्त]], [[1920]] को आरम्भ किया। [[5 फ़रवरी]], [[1922]] को [[देवरिया]] ज़िले के [[चौरी चौरा]] नामक स्थान पर पुलिस ने जबरन एक जुलूस को रोकना चाहा, इसके फलस्वरूप जनता ने क्रोध में आकर थाने में आग लगा दी, जिसमें एक थानेदार एवं 21 सिपाहियों की मृत्यु हो गई। इस घटना से गांधी जी स्तब्ध रह गए। [[12 फ़रवरी]], 1922 को बारदोली में हुई [[कांग्रेस]] की बैठक में असहयोग आन्दोलन को समाप्त करने के निर्णय के बारे में गांधी जी ने 'यंग इण्डिया' में लिखा था कि, "आन्दोलन को हिंसक होने से बचाने के लिए मैं हर एक अपमान, हर एक यातनापूर्ण बहिष्कार, यहाँ तक की मौत भी सहने को तैयार हूँ।" अब गांधी जी ने रचनात्मक कार्यों पर ज़ोर दिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[असहयोग आन्दोलन]], [[चौरी चौरा]] | ||[[असहयोग आन्दोलन]] का संचालन स्वराज की माँग को लेकर किया गया। इसका उद्देश्य सरकार के साथ सहयोग न करके कार्यवाही में बाधा उपस्थित करना था। असहयोग आन्दोलन [[गांधी जी]] ने [[1 अगस्त]], [[1920]] को आरम्भ किया। [[5 फ़रवरी]], [[1922]] को [[देवरिया]] ज़िले के [[चौरी चौरा]] नामक स्थान पर पुलिस ने जबरन एक जुलूस को रोकना चाहा, इसके फलस्वरूप जनता ने क्रोध में आकर थाने में आग लगा दी, जिसमें एक थानेदार एवं 21 सिपाहियों की मृत्यु हो गई। इस घटना से गांधी जी स्तब्ध रह गए। [[12 फ़रवरी]], 1922 को बारदोली में हुई [[कांग्रेस]] की बैठक में असहयोग आन्दोलन को समाप्त करने के निर्णय के बारे में गांधी जी ने 'यंग इण्डिया' में लिखा था कि, "आन्दोलन को हिंसक होने से बचाने के लिए मैं हर एक अपमान, हर एक यातनापूर्ण बहिष्कार, यहाँ तक की मौत भी सहने को तैयार हूँ।" अब गांधी जी ने रचनात्मक कार्यों पर ज़ोर दिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[असहयोग आन्दोलन]], [[चौरी चौरा]] | ||
{[[20 सितम्बर]], [[1932]] को | {[[20 सितम्बर]], [[1932]] को [[यरवदा जेल]] में [[महात्मा गाँधी]] ने आमरण अनशन किसके विरोध में किया? (लुसेंट सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-102,प्रश्न-23 | ||
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-सत्याग्रहियों पर ब्रिटिश दमन के विरुद्ध | -सत्याग्रहियों पर ब्रिटिश दमन के विरुद्ध | ||
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-[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] का दूसरा अधिवेशन [[दादाभाई नौरोजी]] की अध्यक्षता में हुआ। | -[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] का दूसरा अधिवेशन [[दादाभाई नौरोजी]] की अध्यक्षता में हुआ। | ||
-[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] तथा [[मुस्लिम लीग]], दोनों ने [[लखनऊ]] में [[1916]] में अधिवेशन किया तथा [[लखनऊ समझौता]] सम्पन्न हुआ। | -[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] तथा [[मुस्लिम लीग]], दोनों ने [[लखनऊ]] में [[1916]] में अधिवेशन किया तथा [[लखनऊ समझौता]] सम्पन्न हुआ। | ||
+उपर्युक्त दोनों | +उपर्युक्त दोनों सही हैं। | ||
-इनमें से कोई | -इनमें से कोई सही नहीं। | ||
{[[भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन]] के [[1905]]-[[1917]] की अवधि को क्या कहा जाता है?(लुसेंट सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-98,प्रश्न-1 | {[[भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन]] के [[1905]]-[[1917]] की अवधि को क्या कहा जाता है?(लुसेंट सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-98,प्रश्न-1 | ||
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-कांग्रेस समाजवादियों को | -कांग्रेस समाजवादियों को | ||
-[[आज़ाद हिंद फ़ौज]] के सदस्यों को | -[[आज़ाद हिंद फ़ौज]] के सदस्यों को | ||
+खुदाई | +खुदाई ख़िदमतगारों को | ||
-रानी गौडिनल्यू द्वारा नीत लोगों को | -[[रानी गाइदिनल्यू|रानी गौडिनल्यू]] द्वारा नीत लोगों को | ||
{प्रसिद्ध मुस्लिम शासिका [[चाँद बीबी]], जिसने [[बरार]] को [[अकबर]] को सौंपा निम्नलिखित में से किस [[राज्य]] से सबंधित थी? (लुसेंट सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-54,प्रश्न-10 | {प्रसिद्ध मुस्लिम शासिका [[चाँद बीबी]], जिसने [[बरार]] को [[अकबर]] को सौंपा, निम्नलिखित में से किस [[राज्य]] से सबंधित थी? (लुसेंट सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-54,प्रश्न-10 | ||
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-[[बीजापुर]] | -[[बीजापुर]] | ||
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-क्रमश: मनसबदार के पद एवं उसके अधीन मनसब का | -क्रमश: मनसबदार के पद एवं उसके अधीन मनसब का | ||
-क्रमश: मनसबदार के अधीन मनसब एवं उसके पद का | -क्रमश: मनसबदार के अधीन मनसब एवं उसके पद का | ||
||[[मनसबदार]], [[मुग़ल]] शासनकाल में बादशाह [[अकबर]] के समय में उसे कहते थे, जिसे कोई [[मनसब]] अथवा ओहदा मिलता था। किसी भी मनसबदार को उसके मनसब के हिसाब से ही वेतन दिया जाता था। मनसबदार को राज्य की सेवा के लिये निश्चित संख्या में घुड़सवार तथा [[हाथी]] आदि देने पड़ते थे। [[मुग़ल साम्राज्य]] में मनसबदार नियुक्त होने के लिये किसी विशेष योग्यता की आवश्यकता नहीं थी। राज्य में ऊँचे मनसबदार शाही परिवार के ही लोग हुआ करते थे। | ||[[मनसबदार]], [[मुग़ल]] शासनकाल में बादशाह [[अकबर]] के समय में उसे कहते थे, जिसे कोई [[मनसब]] अथवा ओहदा मिलता था। किसी भी मनसबदार को उसके मनसब के हिसाब से ही वेतन दिया जाता था। मनसबदार को राज्य की सेवा के लिये निश्चित संख्या में घुड़सवार तथा [[हाथी]] आदि देने पड़ते थे। [[मुग़ल साम्राज्य]] में मनसबदार नियुक्त होने के लिये किसी विशेष योग्यता की आवश्यकता नहीं थी। [[राज्य]] में ऊँचे मनसबदार शाही परिवार के ही लोग हुआ करते थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मनसबदार]] | ||
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12:32, 23 नवम्बर 2017 का अवतरण
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