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'''नित्यानंद स्वामी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Nityanand Swami'', जन्म: [[27 दिसम्बर]] [[1927]] - मृत्यु: [[12 दिसम्बर]], [[2012]]) [[उत्तराखंड]] के पहले [[मुख्यमंत्री]] और [[भारतीय जनता पार्टी]] के वयोवृद्ध नेता थे।  
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==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
27 दिसंबर 1927 को नारनौल [[हरियाणा]] में जन्मे नित्यानंद स्वामी का अधिकांश जीवन [[देहरादून]] में ही बीता। उनके पिता वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून में तैनात थे। उनका विवाह चंद्रकांता से हुआ, दोनों की चार पुत्रियां हैं। दिवंगत स्वामी एक कुशल व्यक्तित्व के धनी थे। यही कारण रहा कि उन्हें 1950 में डीएवी कालेज के अध्यक्ष चुने गए। 50-60 के दशक में वह जनसंघ के सक्रिय कार्यकर्ता रहे और विभिन्न मज़दूर यूनियन के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने वकालत को अपना पेशा बनाया। शुरुआत में वह [[कांग्रेस]] से जुड़े रहे और बाद में [[भाजपा]] से जुड़ गए।
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====परिवार====
====परिवार====
नित्यानंद स्वामी की चार बेटियां हैं। दो बेटियों की शादी एक ही घर में हुई है। ये बेटियां देहरादून के कांवली रोड स्थित आवास पर रहती हैं। नित्यानंद स्वामी भी अपनी इन्हीं दो बेटियों के साथ रहते थे।  
नित्यानंद स्वामी की चार बेटियां हैं। दो बेटियों की शादी एक ही घर में हुई है। ये बेटियां देहरादून के कांवली रोड स्थित आवास पर रहती हैं। नित्यानंद स्वामी भी अपनी इन्हीं दो बेटियों के साथ रहते थे।  
==राजनीतिक सफ़र==
==राजनीतिक सफ़र==
जब [[9 नवंबर]] [[2000]] को [[उत्तर प्रदेश]] से उत्तराखंड को अलग किया गया तो उस वक्त भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी। संवैधानिक प्रक्रिया के तहत भारतीय जनता पार्टी के ही किसी वरिष्ठ नेता को अगले चुनाव तक मुख्यमंत्री बनाया जाना था। इसी क्रम में सबसे ऊपर नाम था नित्यानंद स्वामी का। नित्यानंद स्वामी उत्तराखंड के पहले मनोनित मुख्यमंत्री बने। 9 नंबवर 2000 से [[29 अक्टूबर]] [[2001]] तक वे प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उनका कुल कार्यकाल 11 महीने 20 दिन रहा। इससे पहले वह वर्ष 1991 में उत्तर प्रदेश में [[विधान परिषद]] के उपसभापति रहे और 1992 में सभापति बने। सक्रिय राजनीतिक जीवन के आरंभ में दिवंगत स्वामी वर्ष 1969 में अविभाजित उत्तर प्रदेश राज्य में देहरादून विधानसभा क्षेत्र से विधान परिषद से सदस्य निर्वाचित हुए।
जब [[9 नवंबर]] [[2000]] को [[उत्तर प्रदेश]] से उत्तराखंड को अलग किया गया तो उस वक्त भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी। संवैधानिक प्रक्रिया के तहत भारतीय जनता पार्टी के ही किसी वरिष्ठ नेता को अगले चुनाव तक मुख्यमंत्री बनाया जाना था। इसी क्रम में सबसे ऊपर नाम था नित्यानंद स्वामी का। नित्यानंद स्वामी उत्तराखंड के पहले मनोनित मुख्यमंत्री बने। 9 नंबवर 2000 से [[29 अक्टूबर]] [[2001]] तक वे प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उनका कुल कार्यकाल 11 महीने 20 दिन रहा। इससे पहले वह वर्ष 1991 में उत्तर प्रदेश में [[विधान परिषद]] के उपसभापति रहे और 1992 में सभापति बने। सक्रिय राजनीतिक जीवन के आरंभ में दिवंगत स्वामी वर्ष 1969 में अविभाजित उत्तर प्रदेश राज्य में देहरादून विधानसभा क्षेत्र से विधान परिषद से सदस्य निर्वाचित हुए।
==निधन==
12 दिसम्बर 2012, [[बुधवार]] को सुबह सीएमआई अस्पताल देहरादून में नौ बजकर 35 मिनट पर उन्होंने अंतिम सांस ली। वह 84 वर्ष के थे। मंगलवार रात को अचानक स्वास्थ्य खराब होने पर उन्हें सीएमआई अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां चिकित्सीय परीक्षण के लिए उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। बुधवार सुबह उन्होंने दम तोड़ दिया।


==निधन==
12 दिसम्बर 2012, [[बुधवार]] को सुबह सीएमआई अस्पताल देहरादून में नौ बजकर 35 मिनट पर उन्होंने अंतिम सांस ली। वह 84 वर्ष के थे। मंगलवार रात को अचानक स्वास्थ्य खराब होने पर उन्हें सीएमआई अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां चिकित्सीय परीक्षण के लिए उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। बुधवार सुबह उन्होंने दम तोड़ दिया।


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05:41, 12 दिसम्बर 2017 का अवतरण

नित्यानंद स्वामी (राजनीतिज्ञ)
नित्यानंद स्वामी
नित्यानंद स्वामी
पूरा नाम नित्यानंद स्वामी
जन्म 27 दिसम्बर 1927
जन्म भूमि नारनौल, हरियाणा
मृत्यु 12 दिसम्बर, 2012
मृत्यु स्थान देहरादून, उत्तराखंड
पति/पत्नी चंद्रकांता
संतान चार पुत्रियां
नागरिकता भारतीय
पार्टी कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी
पद उत्तराखंड के पहले मुख्यमंत्री
कार्य काल 9 नवंबर 2000 से 29 अक्टूबर 2001 तक
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नित्यानंद स्वामी (अंग्रेज़ी: Nityanand Swami, जन्म: 27 दिसम्बर 1927; मृत्यु: 12 दिसम्बर, 2012) उत्तराखंड के पहले मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वयोवृद्ध नेता थे।

जीवन परिचय

27 दिसंबर 1927 को नारनौल हरियाणा में जन्मे नित्यानंद स्वामी का अधिकांश जीवन देहरादून में ही बीता। उनके पिता वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून में तैनात थे। उनका विवाह चंद्रकांता से हुआ, दोनों की चार पुत्रियां हैं। दिवंगत स्वामी एक कुशल व्यक्तित्व के धनी थे। यही कारण रहा कि उन्हें 1950 में डीएवी कालेज के अध्यक्ष चुने गए। 50-60 के दशक में वह जनसंघ के सक्रिय कार्यकर्ता रहे और विभिन्न मज़दूर यूनियन के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने वकालत को अपना पेशा बनाया। शुरुआत में वह कांग्रेस से जुड़े रहे और बाद में भाजपा से जुड़ गए।

परिवार

नित्यानंद स्वामी की चार बेटियां हैं। दो बेटियों की शादी एक ही घर में हुई है। ये बेटियां देहरादून के कांवली रोड स्थित आवास पर रहती हैं। नित्यानंद स्वामी भी अपनी इन्हीं दो बेटियों के साथ रहते थे।

राजनीतिक सफ़र

जब 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड को अलग किया गया तो उस वक्त भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी। संवैधानिक प्रक्रिया के तहत भारतीय जनता पार्टी के ही किसी वरिष्ठ नेता को अगले चुनाव तक मुख्यमंत्री बनाया जाना था। इसी क्रम में सबसे ऊपर नाम था नित्यानंद स्वामी का। नित्यानंद स्वामी उत्तराखंड के पहले मनोनित मुख्यमंत्री बने। 9 नंबवर 2000 से 29 अक्टूबर 2001 तक वे प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उनका कुल कार्यकाल 11 महीने 20 दिन रहा। इससे पहले वह वर्ष 1991 में उत्तर प्रदेश में विधान परिषद के उपसभापति रहे और 1992 में सभापति बने। सक्रिय राजनीतिक जीवन के आरंभ में दिवंगत स्वामी वर्ष 1969 में अविभाजित उत्तर प्रदेश राज्य में देहरादून विधानसभा क्षेत्र से विधान परिषद से सदस्य निर्वाचित हुए।

निधन

12 दिसम्बर 2012, बुधवार को सुबह सीएमआई अस्पताल देहरादून में नौ बजकर 35 मिनट पर उन्होंने अंतिम सांस ली। वह 84 वर्ष के थे। मंगलवार रात को अचानक स्वास्थ्य खराब होने पर उन्हें सीएमआई अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां चिकित्सीय परीक्षण के लिए उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। बुधवार सुबह उन्होंने दम तोड़ दिया।


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