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-[[स्वामी श्रद्धानन्द]]
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+[[गुरु घासीदास]]
+[[गुरु घासीदास]]
||[[चित्र:Guru-Ghasidas.jpg|150px|right|गुरु घासीदास]]'गुरु घासीदास' [[भारत]] के [[छत्तीसगढ़|छत्तीसगढ़ राज्य]] की संत परंपरा में सर्वोपरि हैं। बाल्याकाल से ही [[गुरु घासीदास|घासीदास]] के हृदय में वैराग्य का भाव प्रस्फुटित हो चुका था। समाज में व्याप्त पशुबलि तथा अन्य कुप्रथाओं का ये बचपन से ही विरोध करते रहे। समाज को नई दिशा प्रदान करने में इन्होंने अतुलनीय योगदान दिया था। घासीदास की सत्य के प्रति अटूट आस्था की वजह से ही इन्होंने बचपन में कई चमत्कार दिखाए, जिसका लोगों पर काफ़ी प्रभाव पड़ा। इस प्रभाव के चलते भारी संख्या में हज़ारों-लाखों लोग उनके अनुयायी हो गए। इस प्रकार छत्तीसगढ़ में 'सतनाम पंथ' की स्थापना हुई। इस संप्रदाय के लोग गुरु घासीदास को अवतारी पुरुष के रूप में मानते हैं। इनके सात वचन सतनाम पंथ के सप्त सिद्धांत के रूप में प्रतिष्ठित हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गुरु घासीदास]]
||[[चित्र:Guru-Ghasidas.jpg|100px|right|गुरु घासीदास]]'गुरु घासीदास' [[भारत]] के [[छत्तीसगढ़|छत्तीसगढ़ राज्य]] की संत परंपरा में सर्वोपरि हैं। बाल्याकाल से ही [[गुरु घासीदास|घासीदास]] के हृदय में वैराग्य का भाव प्रस्फुटित हो चुका था। समाज में व्याप्त पशुबलि तथा अन्य कुप्रथाओं का ये बचपन से ही विरोध करते रहे। समाज को नई दिशा प्रदान करने में इन्होंने अतुलनीय योगदान दिया था। घासीदास की सत्य के प्रति अटूट आस्था की वजह से ही इन्होंने बचपन में कई चमत्कार दिखाए, जिसका लोगों पर काफ़ी प्रभाव पड़ा। इस प्रभाव के चलते भारी संख्या में हज़ारों-लाखों लोग उनके अनुयायी हो गए। इस प्रकार छत्तीसगढ़ में 'सतनाम पंथ' की स्थापना हुई। इस संप्रदाय के लोग गुरु घासीदास को अवतारी पुरुष के रूप में मानते हैं। इनके सात वचन सतनाम पंथ के सप्त सिद्धांत के रूप में प्रतिष्ठित हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गुरु घासीदास]]
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