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| <quiz display=simple> | | <quiz display=simple> |
| {[[अर्जुन]] ने [[द्रोणाचार्य]] के किस मित्र को परास्त किया था? | | {[[महाभारत]] के [[महाभारत युद्ध अठारहवाँ दिन|अठारहवें दिन]] के युद्ध का [[कौरव सेना]] का सेनापत्तित्व किसने किया था? |
| |type="()"}
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| -[[कृपाचार्य]]
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| +[[द्रुपद]]
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| -[[परशुराम]]
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| -इनमें से कोई नहीं
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| ||[[द्रुपद]] [[पांचाल]] के राजा और परिशत के पुत्र थे। ये [[शिखंडी]], [[धृष्टद्युम्न]] व [[द्रौपदी]] के पिता थे। द्रुपद [[परशुराम]] के शिष्य थे। शिक्षा काल में द्रुपद और द्रोण की गहरी मित्रता थी। द्रोण ग़रीब होने के कारण प्राय: दुखी रहते थे तो द्रुपद ने उन्हें राजा बनने पर आधा राज्य देने का वचन दिया परंतु कालांतर में वे अपने वचन से न केवल मुकर गए वरन् उन्होंने द्रोण का अपमान भी किया। फिर द्रुपद ने अर्जुन आदि को शिक्षा दी और गुरु दीक्षा में द्रोपद को बंदी बनाने का आदेश दिया। तब अर्जुन ने द्रुपद को परास्त कर बंदी बना लिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[द्रुपद]], [[अर्जुन]], [[द्रोणाचार्य]] | |
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| {[[महाभारत]] युद्ध में जिस [[हाथी]] को [[भीम]] ने मारा था, उसका नाम क्या था?
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| |type="()"} | | |type="()"} |
| -[[कुवलयापीड़]] | | -[[शल्य]] और [[कर्ण]] |
| +[[अश्वत्थामा हाथी|अश्वत्थामा]]
| | -[[कर्ण]] और [[शल्य]] |
| -[[ऐरावत]] | | +[[शल्य]]-[[अश्वत्थामा]] |
| -[[सुप्रतीक]]
| | -[[अश्वत्थामा]] और [[कर्ण]] |
| ||[[अश्वत्थामा हाथी]] [[महाभारत]] में मालवनरेश [[इन्द्रवर्मा]] के हाथी का नाम था। [[श्रीकृष्ण]] के कहने पर [[भीम]] ने अश्वत्थामा नाम के [[हाथी]] का वध कर दिया और [[द्रोणाचार्य]] को यह सूचना दी कि उनका पुत्र [[अश्वत्थामा]] मारा गया। [[युधिष्ठिर]] के मुख से भी पुत्र की मृत्यु का समाचार सुनकर द्रोणाचार्य ने अपने [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्र-शस्त्र]] त्याग दिये और इसी समय [[धृष्टद्युम्न|धृष्टद्युम्न]] ने उनका वध कर दिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[अश्वत्थामा हाथी]], [[धृष्टद्युम्न]], [[द्रोणाचार्य]]
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| {[[अश्वत्थामा]] द्वारा छोड़े गये [[ब्रह्मास्त्र]] को किसने शांत किया था? | | {[[महाभारत]] युद्ध के अंत में निम्न में से कौन जीवित बचा था? |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| +[[व्यास]] | | +[[कृपाचार्य]] |
| -[[कृष्ण]] | | -[[शल्य]] |
| -[[अर्जुन]] | | -[[भगदत्त (नरकासुर पुत्र)]] |
| -[[नारद]] | | -[[धृष्टद्युम्न]] |
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| {[[गांधारी]] ने कितनी बार अपने आँखों की पट्टी खोली थी? | | {[[महाभारत]] के अनुसार निम्न में से कौन सी स्त्री सती हुई थी? |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -1 | | -[[कुंती]] |
| +2
| | -[[गांधारी]] |
| -3
| | +[[माद्री]] |
| -4
| | -[[सत्यवती]] |
| ||[[गांधारी]] [[शिव|भगवान शिव]] की आराधना से सौ पुत्रों की माता बनने का वरदान पा चुकी थीं। [[भीष्म]] की प्रेरणा से [[धृतराष्ट्र]] का विवाह गांधारी के साथ किया गया। गांधारी ने जब सुना कि उसका भावी पति अंधा है तो उसने भी अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली, जिससे कि पतिव्रत धर्म का पालन कर पाये। ऐसा माना जाता है कि गांधारी ने अपनी आँखों से पट्टी दो बार खोली थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[गांधारी]]
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| {[[द्रौपदी]] का महान कार्य क्या था? | | {युधिष्ठिर को राजसूय यज्ञ करने की सलाह किसने दी थी →नारद |
| |type="()"}
| | महाभारत ग्रंथ में कुल श्लोकों की संख्या कितनी है →एक लाख |
| -पाँचों पांडवों के साथ विवाह करना
| | Ø कुन्ती पुत्र अर्जुन के पोते का नाम क्या था→परीक्षित |
| +[[अश्वत्थामा]] को क्षमा करना।
| | Ø श्रीमद्भगवद गीता में कुल कितने अध्याय हैं →18 |
| -पांडवों के साथ वन जाना
| | Ø विचित्रवीर्य की माता का नाम क्या था →सत्यवती |
| -इनमें से कोई नहीं
| | Ø राजा विराट के महल में अर्जुन किस नाम से जाने गये →बृहन्नला |
| | Ø राजा विराट की कन्या का क्या नाम था, जिससे अभिमन्यु का विवाह हुआ →उत्तरा |
| | Ø कौरव सेना के प्रथम सेनापति कौन नियुक्त हुए थे →भीष्म |
| | Ø महाभारत युद्ध के उपरान्त कौरव सेना के कितने महारथी शेष बचे →3 |
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| {[[कृष्ण]] के वंश का नाश होने का मुख्य कारण क्या था?
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| |type="()"}
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| +[[गान्धारी]] का श्राप
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| -ऋषियों का श्राप
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| -कृष्ण का परमधाम जाना
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| -इनमें से कोई नहीं
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| ||[[महाभारत|महाभारत युद्ध]] के अंतिम समय में, जब [[भीम (पांडव)|भीम]] द्वारा [[दुर्योधन]] की जंघा तोड़ दी गई और वह भूमि पर पड़ा अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहा था, तब [[गांधारी]] ने अपनी आँखों की पट्टी को खोल दिया और वह [[कुरुक्षेत्र]] में दौड़ी आई। उन्होंने वहाँ महाभारत के महायुद्ध का विनाशकारी परिणाम देखा। [[पाण्डव]] तो किसी प्रकार [[श्रीकृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]] की कृपा से गांधारी के क्रोध से बच गये, किंतु भागीवश भगवान श्रीकृष्ण को उनके शाप को शिरोधार्य करना पड़ा और यदुवंश का परस्पर कलह के कारण महाविनाश हुआ।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[गांधारी]], [[यदुवंश का नाश]]
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| {[[युधिष्ठिर]] के [[स्वर्ग]] जाने पर कौन उनके साथ गया था?
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| -[[द्रौपदी]]
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| +[[कुत्ता]]
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| -[[अर्जुन]]
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| -[[भीम]]
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| ||[[कृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]] ने जब वन में उपदेश दिया, तब उसे सुनकर [[द्रौपदी]] सहित पांचों [[पांडव]] [[हिमालय]] जाते हैं। एक [[कुत्ता]] भी उनके साथ जाता है। द्रौपदी और चारों भाई गिर जाते हैं। [[इन्द्र]] रथ लेकर आते हैं और कहते हैं- "महाराज! रथ पर सवार होकर सदेह स्वर्ग पधारिये।" धर्मराज कहते हैं- "यह कुत्ता मेरे साथ आ रहा है, इसको भी साथ ले चलने की आज्ञा दे।" देवराज इन्द्र ने कहा- "धर्मराज ये मोह कैसा! आप सिद्धि और अमरत्व को प्राप्त हो चुके हैं, कुत्ते को छोडि़ये।" धर्मराज ने कहा- "देवराज! ऐसा करना आर्यों का धर्म नहीं है; जिस ऐश्वर्य के लिये अपने [[भक्त]] का त्याग करना पड़ता हो, वह मुझे नहीं चाहिये। स्वर्ग चाहे न मिले, इस भक्त कुत्ते को मैं नहीं त्याग सकता।" इतने में कुत्ता अदृश्य हो गया, साक्षात् धर्म प्रकट होकर बोले- "राजन! मैंने तुम्हारे सत्य और कर्तव्य निष्ठा को देखने के लिये ही ऐसा किया था। तुम परीक्षा में उत्तीण हुए।" इसके बाद धर्मराज साक्षात् धर्म और इन्द्र के साथ रथ में बैठकर स्वर्ग में जाते हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[युधिष्ठिर]]
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| {[[विराट]] के महल में [[कंक]] किसका नाम था?
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| |type="()"}
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| -[[अर्जुन]]
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| -[[भीम]]
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| +[[युधिष्ठिर]]
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| -[[सहदेव]]
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| ||बारह वर्ष बीत जाने पर [[पाण्डव|पाण्डवों]] को एक वर्ष छिपकर रहना था। इसके विषय में पाँचों भाइयों ने मिलकर सलाह की। उन लोगों ने निश्चय किया कि रूप बदलकर हम लोग मत्स्यराज [[विराट]] के यहाँ यह समय बिता देंगे। [[युधिष्ठिर]] ने कहा कि हम उक्त राजा दरबार में अक्षक्रीड़ा-कुशल [[ब्राह्मण]] बनकर रहेंगे। बस पाण्डव लोग भेष बदल-बदलकर राजा विराट के यहाँ जाकर रहने लगे। इस रूप में वहाँ युधिष्ठिर ने अपना नाम कंक रख लिया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[युधिष्ठिर]]
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| {[[भीम]] के पुत्र [[घटोत्कच]] को किसने मारा था?
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| |type="()"}
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| -[[दुर्योधन]]
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| +[[कर्ण]]
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| -[[द्रोणाचार्य]]
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| -[[अश्वत्थामा]]
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| ||[[कर्ण]]] की दानवीरता के भी अनेक सन्दर्भ मिलते हैं। उनकी दानशीलता की ख्याति सुनकर [[इन्द्र]] उनके पास [[कुण्डल]] और कवच माँगने गये थे। कर्ण ने अपने पिता [[सूर्य देवता|सूर्य]] के द्वारा इन्द्र की प्रवंचना का रहस्य जानते हुए भी उनको कुण्डल और कवच दे दिये। इन्द्र ने उसके बदले में एक बार प्रयोग के लिए अपनी अमोघ शक्ति दे दी थी। उससे किसी का वध अवश्यम्भावी था। कर्ण उस शक्ति का प्रयोग [[अर्जुन]] पर करना चाहते थे किन्तु [[दुर्योधन]] के निर्देश पर उन्होंने उसका प्रयोग [[भीम (पांडव)|भीम]] के पुत्र [[घटोत्कच]] पर किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[कर्ण]]
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| {[[हिडिंबा]] के पति का क्या नाम था?
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| |type="()"}
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| +[[भीम]]
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| -[[अर्जुन]]
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| -[[दुर्योधन]]
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| -[[दुशासन]]
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| ||[[महाभारत]] में [[हिडिंबा]] नामक एक राक्षस का उल्लेख मिलता है, जिसका वध [[भीम (पांडव)|भीम]] ने किया था। हिडिंबा इसी हिडिम्ब नामक राक्षस की बहन थी। हिडिम्ब की मृत्यु के अनन्तर इसने एक सुन्दरी का रूप धारण कर भीम से विवाह किया। हिडिम्बा से भीम के [[घटोत्कच]] नामक पुत्र उत्पन्न हुआ।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[हिडिंबा]]
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