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||[[माद्री]] मद्रराज [[शल्य]] की बहन व [[पाण्डु|राजा पाण्डु]] की दूसरी पत्नी थीं। वन में एक बार राजा पाण्डु [[वसंत ऋतु]] में माद्री को एकांत में पा उसकी सुन्दरता पर रीझ-उसके बार-बार ऋषि के शाप की याद दिला-दिलाकर रोकने पर भी कामासक्त हो गये। इस घटना के होते ही उनके प्राण-पखेरू उड़ गये। माद्री रोती-चिल्लाती रह गई। रोना-चिल्लाना सुनकर वहाँ [[कुंती]] पहुँची। उन्होंने इस काम के लिए माद्री की भर्त्सना की। उसने कुंती से कहा कि आप जिस प्रकार बिना पक्षपात के बच्चों का पालन कर लेंगी उस प्रकार कदाचित मैं न कर | ||[[माद्री]] मद्रराज [[शल्य]] की बहन व [[पाण्डु|राजा पाण्डु]] की दूसरी पत्नी थीं। वन में एक बार राजा पाण्डु [[वसंत ऋतु]] में माद्री को एकांत में पा उसकी सुन्दरता पर रीझ-उसके बार-बार ऋषि के शाप की याद दिला-दिलाकर रोकने पर भी कामासक्त हो गये। इस घटना के होते ही उनके प्राण-पखेरू उड़ गये। माद्री रोती-चिल्लाती रह गई। रोना-चिल्लाना सुनकर वहाँ [[कुंती]] पहुँची। उन्होंने इस काम के लिए माद्री की भर्त्सना की। उसने कुंती से कहा कि आप जिस प्रकार बिना पक्षपात के बच्चों का पालन कर लेंगी उस प्रकार कदाचित मैं न कर सकूँगी, इससे मैं अपने बच्चे आप ही को सौंपकर सुख से मर सकूँगी। अंत में वह पाण्डु के साथ सती हुई।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[माद्री]] | ||
{[[युधिष्ठिर]] को [[राजसूय यज्ञ]] करने की सलाह किसने दी थी? | {[[युधिष्ठिर]] को [[राजसूय यज्ञ]] करने की सलाह किसने दी थी? | ||
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-[[अम्बिका]] | -[[अम्बिका]] | ||
+[[सत्यवती]] | +[[सत्यवती]] | ||
||[[सत्यवती]] एक [[निषाद]] कन्या थी। ऋषि [[पराशर]] से इनके एक पुत्र थे, जिनका नाम [[व्यास]] था। ये साँवले रंग के थे तथा [[यमुना]] के बीच स्थित एक द्वीप में उत्पन्न हुए थे। अतएव ये साँवले रंग के कारण 'कृष्ण' तथा जन्मस्थान के कारण 'द्वैपायन' कहलाये। सत्यवती ने बाद में [[शान्तनु]] से [[विवाह]] किया, जिनसे उनके दो पुत्र हुए, जिनमें बड़ा [[चित्रांगद]] युद्ध में मारा गया और छोटा [[विचित्रवीर्य]] संतानहीन मर गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[सत्यवती]], [[विचित्रवीर्य]] | |||
{[[विराट|राजा विराट]] के महल में [[अर्जुन]] का क्या नाम था? | {[[विराट|राजा विराट]] के महल में [[अर्जुन]] का क्या नाम था? | ||
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-[[बल्लव]] | -[[बल्लव]] | ||
-[[तन्तिपाल]] | -[[तन्तिपाल]] | ||
||[[महाभारत]] में [[पांडव|पांडवों]] के वनवास में एक वर्ष का [[अज्ञातवास]] भी था, जो उन्होंने [[विराट नगर]] में बिताया। विराट नगर में पांडव अपना नाम और पहचान छुपाकर रहे। इन्होंने [[विराट|राजा विराट]] के यहाँ सेवक बनकर एक [[वर्ष]] बिताया। इस प्रसंग में [[अर्जुन]] को '''षण्ढक और बृहन्नला''' कहा है। इन्द्रपुरी में [[अप्सरा]] [[उर्वशी]] इन पर मोहित हो गई थी। पर उसकी इच्छा पूर्ति न करने के कारण इन्हें एक वर्ष तक नपुंसक रहकर [[बृहन्नला]] के रूप में [[विराट]] की कन्या [[उत्तरा]] को नृत्य की शिक्षा देनी पड़ी थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[अर्जुन]], [[बृहन्नला]] | |||
{[[अम्बा]] किस राज्य की राजकुमारी थी? | {[[अम्बा]] किस राज्य की राजकुमारी थी? | ||
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+[[काशी]] | +[[काशी]] | ||
-[[कौशल महाजनपद|कोसल]] | -[[कौशल महाजनपद|कोसल]] | ||
||काशीराज [[इन्द्रद्युम्न]] की तीन कन्याओं में ज्येष्ठ कन्या [[अम्बा]] थी। [[भीष्म]] ने अपने दो सौतले छोटे भाईयों- [[विचित्रवीर्य]] और [[चित्रांगद]] के [[विवाह]] के लिए काशीराज की पुत्रियों का अपहरण किया था। अम्बा [[भीष्म]] के पराक्रम के कारण उन पर मुग्ध थी और उनसे विवाह करना चाहती थी। किन्तु भीष्म आजीवन [[ब्रह्मचर्य]] की प्रतिज्ञा कर चुके थे, अत: यह विवाह सम्पन्न न हो सका। इस प्रतिशोध की भावना से प्रेरित होकर अम्बा ने कठिन तपस्या की और [[शिव]] का वरदान प्राप्त कर आगामी जन्म में [[शिखण्डी]] के रूप में अवतीर्ण होकर [[अर्जुन]] के द्वारा भीष्म को जर्जर कराकर बदला लिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[अम्बा]] | |||
{[[बर्बरीक]] के [[पिता]] का क्या नाम था? | {[[बर्बरीक]] के [[पिता]] का क्या नाम था? | ||
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-[[बकासुर]] | -[[बकासुर]] | ||
-[[अघासुर]] | -[[अघासुर]] | ||
||[[बर्बरीक]] महान् [[पाण्डव]] [[भीम (पांडव)|भीम]] के पुत्र [[घटोत्कच]] और नाग कन्या अहिलवती के पुत्र थे। कहीं-कहीं पर मुर दैत्य की पुत्री 'कामकंटकटा' के उदर से भी इनके जन्म होने की बात कही गई है। इनके जन्म से ही बर्बराकार घुंघराले केश थे, अत: इनका नाम बर्बरीक रखा गया। वह [[दुर्गा]] का उपासक था। [[कृष्ण]] की सलाह पर इसने गुप्त क्षेत्र तीर्थस्थल में दुर्गा की आराधना की। उसने आराधना में विघ्न डालने वाले पलासी आदि दैत्यों का संहार किया। एक बार वह अपने पितामह [[भीम]] से भी भिड़ गया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[बर्बरीक]] | |||
{[[महाभारत]] में [[राज्य]] के कितने महत्त्वपूर्ण अंग बताये गए हैं? | {[[महाभारत]] में [[राज्य]] के कितने महत्त्वपूर्ण अंग बताये गए हैं? | ||
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+[[अश्वत्थामा]] | +[[अश्वत्थामा]] | ||
-[[भूरिश्रवा]] | -[[भूरिश्रवा]] | ||
||महाराज [[द्रुपद]] ने [[द्रोणाचार्य]] से अपने अपमान का बदला लेने के लिये संतान-प्राप्ति के उद्देश्य से यज्ञ किया। यज्ञ की पूर्णाहुति के समय यज्ञकुण्ड से मुकुट, [[कुण्डल]], कवच, त्रोण तथा धनुष धारण किये हुए एक कुमार प्रकट हुआ। इस कुमार का नाम [[धृष्टद्युम्न]] रखा गया। [[महाभारत]] के युद्ध में [[पांडव सेना|पाण्डव पक्ष]] का यही कुमार सेनापति रहा। ये द्रुपद का पुत्र तथा [[द्रौपदी]] का भाई था, जिसने द्रोणाचार्य का वध किया था। अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए [[अश्वत्थामा]] ने द्रौपदी के पुत्रों सहित इसका भी वध कर दिया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[धृष्टद्युम्न]], [[अश्वत्थामा]] | |||
{[[महाभारत]] में [[अंजनपर्वा]] का वध किसने किया? | {[[महाभारत]] में [[अंजनपर्वा]] का वध किसने किया? | ||
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-[[कर्ण]] | -[[कर्ण]] | ||
-[[वृषसेन (कर्ण पुत्र)|वृषसेन]] | -[[वृषसेन (कर्ण पुत्र)|वृषसेन]] | ||
||[[अंजनपर्वा]] महाबली [[पांडव]] [[भीम|भीमसेन]] का [[पौत्र]] तथा [[घटोत्कच]] का पुत्र था। [[महाभारत]] के युद्ध में अंजनपर्वा ने [[पाण्डव|पाण्डवों]] को सहयोग प्रदान किया था। [[अश्वत्थामा]] से युद्ध करते हुए वह कभी आकाश से पत्थर, पेड़ों की वर्षा करता तो कभी माया का प्रसार करता और कभी आमने-सामने रथ पर चढ़कर प्रसार युद्ध करता। अंत में वह अश्वत्थामा द्वारा वीरगति को प्राप्त हुआ।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[अंजनपर्वा]] | |||
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12:16, 28 दिसम्बर 2017 का अवतरण
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