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||[[कृपाचार्य]] [[शरद्वान गौतम|महर्षि शरद्वान गौतम]] के पुत्र थे। इनकी बहन का नाम '[[कृपि]]' था, जिसका [[विवाह]] [[द्रोण]] से हुआ था, जो [[पाण्डव|पाण्डवों]] तथा [[कौरव|कौरवों]] के गुरु थे। [[महाभारत]] के युद्ध में कृपाचार्य [[भीष्म]] आदि के साथ ही [[दुर्योधन]] के पक्ष में युद्ध कर रहे थे। महाभारत युद्ध के बाद ये पाण्डवों से आ मिले और फिर [[अभिमन्यु]] के पुत्र [[परीक्षित]] को [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्र-शस्त्र]] की शिक्षा प्रदान की।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[कृपाचार्य]]
||[[कृपाचार्य]] [[शरद्वान गौतम|महर्षि शरद्वान गौतम]] के पुत्र थे। इनकी बहन का नाम '[[कृपि]]' था, जिसका [[विवाह]] [[द्रोण]] से हुआ था, जो [[पाण्डव|पाण्डवों]] तथा [[कौरव|कौरवों]] के गुरु थे। [[महाभारत]] के युद्ध में कृपाचार्य [[भीष्म]] आदि के साथ ही [[दुर्योधन]] के पक्ष में युद्ध कर रहे थे। महाभारत युद्ध के बाद ये पाण्डवों से आ मिले और फिर [[अभिमन्यु]] के पुत्र [[परीक्षित]] को [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्र-शस्त्र]] की शिक्षा प्रदान की।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[कृपाचार्य]]


{[[विराट|राजा विराट]] की कन्या का क्या नाम था?
|type="()"}
-[[सैरन्ध्री]]
+[[उत्तरा]]
-[[बृहन्नला]]
-[[सुदेष्णा]]
||[[विराट]] अर्जुनपुत्र [[अभिमन्यु]] की पत्नी [[उत्तरा]] के पिता थे। राजा विराट के ही नाम से [[विराट नगर]] महाभारत काल का एक प्रसिद्ध जनपद था। इस देश में विराट का राज था तथा वहाँ की राजधानी [[उपप्लव्य]] नामक नगर में थी। विराट नगर [[मत्स्य महाजनपद]] का दूसरा प्रमुख नगर था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[उत्तरा]], [[विराट]]
{[[महाभारत]] के अनुसार निम्न में से कौन सी स्त्री सती हुई थी?
|type="()"}
-[[कुंती]]
-[[गांधारी]]
+[[माद्री]]
-[[सत्यवती]]
||[[माद्री]] मद्रराज [[शल्य]] की बहन व [[पाण्डु|राजा पाण्डु]] की दूसरी पत्नी थीं। वन में एक बार राजा पाण्डु [[वसंत ऋतु]] में माद्री को एकांत में पा उसकी सुन्दरता पर रीझ-उसके बार-बार ऋषि के शाप की याद दिला-दिलाकर रोकने पर भी कामासक्त हो गये। इस घटना के होते ही उनके प्राण-पखेरू उड़ गये। माद्री रोती-चिल्लाती रह गई। रोना-चिल्लाना सुनकर वहाँ [[कुंती]] पहुँची। उन्होंने इस काम के लिए माद्री की भर्त्सना की। उसने कुंती से कहा कि आप जिस प्रकार बिना पक्षपात के बच्चों का पालन कर लेंगी उस प्रकार कदाचित मैं न कर सकूँगी, इससे मैं अपने बच्चे आप ही को सौंपकर सुख से मर सकूँगी। अंत में वह पाण्डु के साथ सती हुई।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[माद्री]]
{[[युधिष्ठिर]] को [[राजसूय यज्ञ]] करने की सलाह किसने दी थी?
|type="()"}
-[[व्यास]]
+[[नारद]]
-[[कृष्ण]]
-[[इंद्र]]
||[[मय दानव]] बड़ा होशियार शिल्पकार था। उसने [[अर्जुन]] के कहने से [[युधिष्ठिर]] के लिए राजधानी [[इन्द्रप्रस्थ]] में बड़ा सुन्दर सभा भवन बना दिया। इसके कुछ समय पीछे युधिष्ठिर ने [[राजसूय यज्ञ]] करने का विचार किया। [[श्रीकृष्ण]] ने उनके इस संकल्प का अनुमोदन किया। इधर तो इन्द्रप्रस्थ में धूमधाम से [[यज्ञ]] की तैयारी की जाने लगी और उधर चारों भाई नाना देशों में जा-जाकर राजाओं से कर वसूल करने लगे। उनके लौट आने पर यज्ञ किया गया। निमंत्रण पाकर प्रभृति कौरव भी यज्ञ में सम्मिलित हुए। ठीक समय पर ब्राह्मणों ने युधिष्ठिर को यज्ञ की दीक्षा दी। यज्ञ पूरा होने पर [[दुर्योधन]] आदि [[हस्तिनापुर]] लौट गये। वहाँ बेटों के मुँह से पाण्डवों के ऐश्वर्य का हाल सुनकर [[धृतराष्ट्र]] के मन में कुढ़न हुई।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[युधिष्ठिर]]
{[[विचित्रवीर्य]] की माता का नाम क्या था?
|type="()"}
-[[अम्बा]]
-[[अम्बालिका]]
-[[अम्बिका]]
+[[सत्यवती]]
||[[सत्यवती]] एक [[निषाद]] कन्या थी। ऋषि [[पराशर]] से इनके एक पुत्र थे, जिनका नाम [[व्यास]] था। ये साँवले रंग के थे तथा [[यमुना]] के बीच स्थित एक द्वीप में उत्पन्न हुए थे। अतएव ये साँवले रंग के कारण 'कृष्ण' तथा जन्मस्थान के कारण 'द्वैपायन' कहलाये। सत्यवती ने बाद में [[शान्तनु]] से [[विवाह]] किया, जिनसे उनके दो पुत्र हुए, जिनमें बड़ा [[चित्रांगद]] युद्ध में मारा गया और छोटा [[विचित्रवीर्य]] संतानहीन मर गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[सत्यवती]], [[विचित्रवीर्य]]
{[[विराट|राजा विराट]] के महल में [[अर्जुन]] का क्या नाम था?
|type="()"}
+[[बृहन्नला]]
-[[कंक]]
-[[बल्लव]]
-[[तन्तिपाल]]
||[[महाभारत]] में [[पांडव|पांडवों]] के वनवास में एक वर्ष का [[अज्ञातवास]] भी था, जो उन्होंने [[विराट नगर]] में बिताया। विराट नगर में पांडव अपना नाम और पहचान छुपाकर रहे। इन्होंने [[विराट|राजा विराट]] के यहाँ सेवक बनकर एक [[वर्ष]] बिताया। इस प्रसंग में [[अर्जुन]] को '''षण्ढक और बृहन्नला''' कहा है। इन्द्रपुरी में [[अप्सरा]] [[उर्वशी]] इन पर मोहित हो गई थी। पर उसकी इच्छा पूर्ति न करने के कारण इन्हें एक वर्ष तक नपुंसक रहकर [[बृहन्नला]] के रूप में [[विराट]] की कन्या [[उत्तरा]] को नृत्य की शिक्षा देनी पड़ी थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[अर्जुन]], [[बृहन्नला]]
{[[अम्बा]] किस राज्य की राजकुमारी थी?
|type="()"}
-[[विराट नगर]]
-[[मद्र]]
+[[काशी]]
-[[कौशल महाजनपद|कोसल]]
||काशीराज [[इन्द्रद्युम्न]] की तीन कन्याओं में ज्येष्ठ कन्या [[अम्बा]] थी। [[भीष्म]] ने अपने दो सौतले छोटे भाईयों- [[विचित्रवीर्य]] और [[चित्रांगद]] के [[विवाह]] के लिए काशीराज की पुत्रियों का अपहरण किया था। अम्बा [[भीष्म]] के पराक्रम के कारण उन पर मुग्ध थी और उनसे विवाह करना चाहती थी। किन्तु भीष्म आजीवन [[ब्रह्मचर्य]] की प्रतिज्ञा कर चुके थे, अत: यह विवाह सम्पन्न न हो सका। इस प्रतिशोध की भावना से प्रेरित होकर अम्बा ने कठिन तपस्या की और [[शिव]] का वरदान प्राप्त कर आगामी जन्म में [[शिखण्डी]] के रूप में अवतीर्ण होकर [[अर्जुन]] के द्वारा भीष्म को जर्जर कराकर बदला लिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[अम्बा]]
{[[बर्बरीक]] के [[पिता]] का क्या नाम था?
|type="()"}
+[[घटोत्कच]]
-[[हिडिम्ब]]
-[[बकासुर]]
-[[अघासुर]]
||[[बर्बरीक]] महान् [[पाण्डव]] [[भीम (पांडव)|भीम]] के पुत्र [[घटोत्कच]] और नाग कन्या अहिलवती के पुत्र थे। कहीं-कहीं पर मुर दैत्य की पुत्री 'कामकंटकटा' के उदर से भी इनके जन्म होने की बात कही गई है। इनके जन्म से ही बर्बराकार घुंघराले केश थे, अत: इनका नाम बर्बरीक रखा गया। वह [[दुर्गा]] का उपासक था। [[कृष्ण]] की सलाह पर इसने गुप्त क्षेत्र तीर्थस्थल में दुर्गा की आराधना की। उसने आराधना में विघ्न डालने वाले पलासी आदि दैत्यों का संहार किया। एक बार वह अपने पितामह [[भीम]] से भी भिड़ गया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[बर्बरीक]]
{[[महाभारत]] में [[राज्य]] के कितने महत्त्वपूर्ण अंग बताये गए हैं?
|type="()"}
-5
+7
-6
-8
{[[द्रौपदी]] के भाई [[धृष्टद्युम्न]] का वध किसने किया?
|type="()"}
-[[कृतवर्मा]]
-[[कृपाचार्य]]
+[[अश्वत्थामा]]
-[[भूरिश्रवा]]
||महाराज [[द्रुपद]] ने [[द्रोणाचार्य]] से अपने अपमान का बदला लेने के लिये संतान-प्राप्ति के उद्देश्य से यज्ञ किया। यज्ञ की पूर्णाहुति के समय यज्ञकुण्ड से मुकुट, [[कुण्डल]], कवच, त्रोण तथा धनुष धारण किये हुए एक कुमार प्रकट हुआ। इस कुमार का नाम [[धृष्टद्युम्न]] रखा गया। [[महाभारत]] के युद्ध में [[पांडव सेना|पाण्डव पक्ष]] का यही कुमार सेनापति रहा। ये द्रुपद का पुत्र तथा [[द्रौपदी]] का भाई था, जिसने द्रोणाचार्य का वध किया था। अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए [[अश्वत्थामा]] ने द्रौपदी के पुत्रों सहित इसका भी वध कर दिया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[धृष्टद्युम्न]], [[अश्वत्थामा]]
{[[महाभारत]] में [[अंजनपर्वा]] का वध किसने किया?
|type="()"}
+[[अश्वत्थामा]]
-[[भगदत्त (नरकासुर पुत्र)]]
-[[कर्ण]]
-[[वृषसेन (कर्ण पुत्र)|वृषसेन]]
||[[अंजनपर्वा]] महाबली [[पांडव]] [[भीम|भीमसेन]] का [[पौत्र]] तथा [[घटोत्कच]] का पुत्र था। [[महाभारत]] के युद्ध में अंजनपर्वा ने [[पाण्डव|पाण्डवों]] को सहयोग प्रदान किया था। [[अश्वत्थामा]] से युद्ध करते हुए वह कभी आकाश से पत्थर, पेड़ों की वर्षा करता तो कभी माया का प्रसार करता और कभी आमने-सामने रथ पर चढ़कर प्रसार युद्ध करता। अंत में वह अश्वत्थामा द्वारा वीरगति को प्राप्त हुआ।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[अंजनपर्वा]]
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12:31, 28 दिसम्बर 2017 का अवतरण

1 महाभारत के अठारहवें दिन के युद्ध का कौरव सेना का सेनापत्तित्व किसने किया था?

शल्य और कर्ण
कर्ण और शल्य
शल्य और अश्वत्थामा
अश्वत्थामा और कर्ण

2 महाभारत युद्ध के अंत में निम्न में से कौन जीवित बचा था?

कृपाचार्य
शल्य
भगदत्त (नरकासुर पुत्र)
धृष्टद्युम्न