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||[[चित्र:Rajendranath-Lahiri.jpg|100px|right|राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी]]'राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी' [[भारत]] के शहीद क्रांतिकारियों में से एक थे। इन्होंने [[9 अगस्त]], [[1925]] को [[लखनऊ]] के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी पैसेन्जर ट्रेन को चेन खींच कर रोका और क्रान्तिकारी [[रामप्रसाद बिस्मिल]] के नेतृत्व में [[अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ]], [[चन्द्रशेखर आज़ाद]] व छ: अन्य सहयोगियों की मदद से सरकारी खजाना लूट लिया। गिरफ़्तारी के बाद जेल में [[राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी]] अध्ययन और व्यायाम में अपना सारा समय व्यतीत करते थे। अन्य क्रांतिकारियों से दो दिन पूर्व ही [[17 दिसम्बर]], [[1927]] को उन्हें फांसी दी गई। शहीद राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने हंसते-हंसते फांसी का फन्दा चूमने के पहले 'वन्देमातरम' की जोरदार हुंकार भरकर जयघोष करते हुए कहा- "मैं मर नहीं रहा हूँ, बल्कि स्वतंत्र भारत में पुर्नजन्म लेने जा रहा हूँ।" क्रांतिकारी की इस जुनून भरी हुंकार को सुनकर [[अंग्रेज़]] ठिठक गये थे। उन्हें लग गया था कि इस धरती के सपूत उन्हें अब चैन से नहीं जीने देंगे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी]]
||[[चित्र:Rajendranath-Lahiri.jpg|100px|right|राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी]]'राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी' [[भारत]] के शहीद क्रांतिकारियों में से एक थे। इन्होंने [[9 अगस्त]], [[1925]] को [[लखनऊ]] के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी पैसेन्जर ट्रेन को चेन खींच कर रोका और क्रान्तिकारी [[रामप्रसाद बिस्मिल]] के नेतृत्व में [[अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ]], [[चन्द्रशेखर आज़ाद]] व छ: अन्य सहयोगियों की मदद से सरकारी खजाना लूट लिया। गिरफ़्तारी के बाद जेल में [[राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी]] अध्ययन और व्यायाम में अपना सारा समय व्यतीत करते थे। अन्य क्रांतिकारियों से दो दिन पूर्व ही [[17 दिसम्बर]], [[1927]] को उन्हें फाँसी दी गई। शहीद राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने हंसते-हंसते फाँसी का फन्दा चूमने के पहले 'वन्देमातरम' की जोरदार हुंकार भरकर जयघोष करते हुए कहा- "मैं मर नहीं रहा हूँ, बल्कि स्वतंत्र भारत में पुर्नजन्म लेने जा रहा हूँ।" क्रांतिकारी की इस जुनून भरी हुंकार को सुनकर [[अंग्रेज़]] ठिठक गये थे। उन्हें लग गया था कि इस धरती के सपूत उन्हें अब चैन से नहीं जीने देंगे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी]]
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10:42, 2 जनवरी 2018 के समय का अवतरण

"मैं मर नहीं रहा हूँ, बल्कि स्वतंत्र भारत में पुर्नजन्म लेने जा रहा हूँ।" यह कथन किस प्रसिद्ध क्रांतिकारी का है?

राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी
रामप्रसाद बिस्मिल
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ
ठाकुर रोशन सिंह



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