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||[[जरासंध]] बृहद्रथ-वंश का सबसे प्रतापी शासक था, जो [[बृहद्रथ]] का पुत्र था। वह अत्यन्त पराक्रमी एवं साम्राज्यवादी प्रवृत्ति का शासक था। [[हरिवंश पुराण]] से ज्ञात होता है कि उसने [[काशी]], [[कोशल]], [[चेदि]], [[मालवा]], [[विदेह]], [[अंग महाजनपद|अंग]], [[वंग]], [[कलिंग]], | ||[[जरासंध]] बृहद्रथ-वंश का सबसे प्रतापी शासक था, जो [[बृहद्रथ]] का पुत्र था। वह अत्यन्त पराक्रमी एवं साम्राज्यवादी प्रवृत्ति का शासक था। [[हरिवंश पुराण]] से ज्ञात होता है कि उसने [[काशी]], [[कोशल]], [[चेदि]], [[मालवा]], [[विदेह]], [[अंग महाजनपद|अंग]], [[वंग]], [[कलिंग]], पांडय, सौबिर, [[मद्र]], [[काश्मीर]] और [[गांधार]] के राजाओं को परास्त किया। [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार जरासंध ने अठारह बार [[मथुरा]] पर चढ़ाई की। सत्रह बार यह असफल रहा। अंतिम चढ़ाई में उसने एक विदेशी शक्तिशाली शासन [[कालयवन]] को भी मथुरा पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[जरासंध]] | ||
{[[दुशासन]] की छाती का रक्त पीने का प्रण किस [[पाण्डव]] ने किया था? | {[[दुशासन]] की छाती का रक्त पीने का प्रण किस [[पाण्डव]] ने किया था? | ||
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-[[सहदेव]] | -[[सहदेव]] | ||
-[[नकुल]] | -[[नकुल]] | ||
|| | ||[[मय दानव]] बड़ा होशियार शिल्पकार था। उसने अर्जुन के कहने से [[युधिष्ठिर]] के लिए राजधानी [[इन्द्रप्रस्थ]] में बड़ा सुन्दर सभा भवन बना दिया। इसके कुछ समय पीछे युधिष्ठिर ने [[राजसूय यज्ञ]] करने का विचार किया। [[श्रीकृष्ण]] ने उनके इस संकल्प का अनुमोदन किया। इधर तो इन्द्रप्रस्थ में धूमधाम से [[यज्ञ]] की तैयारी की जाने लगी और उधर चारों भाई नाना देशों में जा-जाकर राजाओं से कर वसूल करने लगे। उनके लौट आने पर यज्ञ किया गया। निमंत्रण पाकर प्रभृति [[कौरव]] भी यज्ञ में सम्मिलित हुए। उस यज्ञ में ब्राह्मणों के चरण धोने का कार्य स्वयं श्रीकृष्ण ने किया था | ||
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11:11, 6 जनवरी 2018 का अवतरण
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