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| <quiz display=simple> | | <quiz display=simple> |
| {यह ज्ञात हो जाने पर कि [[कर्ण]] पाण्डवों का भाई था, [[युधिष्ठिर]] ने किसे शाप दिया?
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| |type="()"}
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| -[[कुन्ती]]
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| -[[कर्ण]]
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| -[[सूर्य देवता|सूर्य]]
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| +नारी जाति
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| ||[[महाभारत]] युद्ध की समाप्ति पर बचे हुए कौरवपक्षीय नर-नारी, जिनमें [[धृतराष्ट्र]] तथा [[गांधारी]] प्रमुख थे, तथा [[श्रीकृष्ण]], [[सात्यकि]] और [[पांडव|पांडवों]] सहित [[द्रौपदी]], [[कुन्ती]] तथा [[पांचाल]] विधवाएं [[कुरुक्षेत्र]] पहुंचे। वहां [[युधिष्ठिर]] ने मृत सैनिकों का (चाहे वे शत्रु वर्ग के हों अथवा मित्रवर्ग के) दाह-संस्कार एवं तर्पण किया। कर्ण को याद कर युधिष्ठिर बहुत विचलित हो उठे। माँ से बार-बार कहते रहे- "काश, कि तुमने हमें पहले बता दिया होता कि कर्ण हमारे भाई हैं।" अंत में हताश, निराश और दुखी होकर उन्होंने नारी-जाति को शाप दिया कि वे भविष्य में कभी भी कोई गुह्य रहस्य नहीं छिपा पायेंगी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[युधिष्ठिर]]
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| {[[धृतराष्ट्र]] का जन्म किसके गर्भ से हुआ था?
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| +[[अम्बिका]]
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| -[[अम्बा]]
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| -[[अम्बालिका]]
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| -[[सत्यवती]]
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| ||[[अम्बिका]] [[महाभारत]] में [[काशी]] के महाराज [[इन्द्रद्युम्न]] की पुत्री थी। इसका [[विवाह]] [[शांतनु]] और [[सत्यवती]] के पुत्र [[विचित्रवीर्य]] के साथ सम्पन्न हुआ था। विचित्रवीर्य संतानहीन ही मृत्यु को प्राप्त हो गये थे। उनकी मृत्यु के पश्चात हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी कोई नहीं था। तब सत्यवती के कहने पर महर्षि व्यास द्वारा अम्बिका के गर्भ से धृतराष्ट्र जन्म हुआ था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[धृतराष्ट्र]], [[अम्बिका]]
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| {निम्नलिखित में से कौन [[पांडव|पाण्डवों]] के महाप्रयाण के बाद राजगद्दी पर बैठा?
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| +[[परीक्षित]]
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| -[[वज्रनाभ]]
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| -[[जनमेजय]]
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| -[[शतानीक]]
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| ||[[पाण्डव|पाण्डवों]] के महाप्रयाण के बाद भगवान के परम भक्त महाराज परीक्षित श्रेष्ठ ब्राह्मणों की शिक्षा के अनुसार [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] का शासन करने लगे। उन्होंने उत्तर की पुत्री [[इरावती]] से विवाह किया। उससे उन्हें [[जनमेजय]] आदि चार पुत्र उत्पन्न हुए। उन्होंने [[कृपाचार्य]] को आचार्य बनाकर [[गंगा नदी|गंगा]] के तट पर तीन [[अश्वमेध यज्ञ]] किये। उनके राज्य में प्रजा को किसी प्रकार का कष्ट नहीं था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[परीक्षित]]
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| {निम्न में से कौन [[निषाद|निषाद जाति]] से सम्बन्धित था?
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| |type="()"}
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| +[[एकलव्य]]
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| -[[कर्ण]]
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| -[[धृष्टद्युम्न]]
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| -[[संजय]]
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| ||[[एकलव्य]] एक [[निषाद]] बालक था, जो कि अद्भुत धर्नुधर बन गया था। वह [[द्रोणाचार्य]] को अपना इष्ट गुरु मानता था और उनकी मूर्ति बनाकर उसके सामने अभ्यास कर धर्नुविद्या में पारंगत हो गया था। [[अर्जुन]] के समकक्ष कोई ना हो जाए इस कारण द्रोणाचार्य ने एकलव्य से गुरु दक्षिणा के रूप में दाहिने हाथ का अँगूठा माँग लिया। एकलव्य ने हँसते हँसते अँगूठा दे दिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[एकलव्य]]
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| {[[लाक्षागृह]] से जीवित बच निकलने के बाद [[पांडव]] किस नगरी में जाकर रहे थे?
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| |type="()"}
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| +[[एकचक्रा]]
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| -[[खांडव वन]]
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| -[[विराट नगर]]
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| -[[काम्यक वन]]
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| ||[[एकचक्रा]] नगरी को [[महाभारत]] में [[पंचाल महाजनपद|पंचालदेश]] में स्थित बताया गया है। [[महाभारत]] में [[दुर्योधन]] बड़ी खोटी बुद्धि का मनुष्य था। उसने लाक्षा के बने हुए घर में [[पाण्डव|पाण्डवों]] को रखकर आग लगाकर, उन्हें जलाने का प्रयत्न किया, किन्तु पाँचों पाण्डव अपनी माता के साथ उस जलते हुए घर से बाहर निकल गये। वहाँ से एकचक्रा नगरी में जाकर वे [[मुनि]] के वेष में एक [[ब्राह्मण]] के घर में निवास करने लगे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[एकचक्रा]]
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| {[[महाभारत]] युद्ध में [[भूरिश्रवा]] का दाहिना हाथ किसने काटा?
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| |type="()"}
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| +[[अर्जुन]]
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| -[[सात्यकि]]
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| -[[भीम]]
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| -[[धृष्टद्युम्न]]
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| ||[[भूरिश्रवा]] [[सोमदत्त]] का पुत्र था। [[महाभारत]] के युद्ध में भूरिश्रवा की [[सात्यकि]] के साथ अनेक बार मुठभेड़ हुई थीं। युद्ध के पांचवें दिन भूरिश्रवा ने सात्यकि के दस पुत्रों को मार डाला। युद्ध के चौदहवें दिन [[जयद्रथ]] को मारने के लिए गये हुए [[अर्जुन]] को ढूँढता हुआ तथा [[कौरव|कौरवों]] की सेना में उथल-पुथल मचाता हुआ सात्यकि, भूरिश्रवा से पुन: जूझने लगा था। सात्यकि का रथ खण्डित हो गया था। वह मल्ल युद्ध में व्यस्त था। सात्यकि प्रात:काल से युद्ध करने के कारण बहुत थक गया था। भूरिश्रवा ने उसे उठाकर धरती पर पटक दिया तथा उसकी चोटी को पकड़कर तलवार निकाल ली। जिस समय भूरिश्रवा सात्यकि का वध करने वाला था, तभी अर्जुन ने [[कृष्ण]] की प्रेरणा से भूरिश्रवा की बांह पर ऐसा प्रहार किया कि वह कटकर, तलवार सहित अलग जा गिरी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[भूरिश्रवा]]
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| {[[एकचक्रा|एकचक्रा नगरी]] में [[भीम]] ने किस [[राक्षस]] का वध किया था?
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| |type="()"}
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| +[[बकासुर]]
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| -[[अघासुर]]
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| -[[अलम्बुष]]
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| -[[हिडिम्ब]]
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| ||[[एकचक्रा]] नगरी को [[महाभारत]] में [[पंचाल महाजनपद|पंचालदेश]] में स्थित बताया गया है। [[महाभारत]] में [[दुर्योधन]] बड़ी खोटी बुद्धि का मनुष्य था। उसने लाक्षा के बने हुए घर में [[पाण्डव|पाण्डवों]] को रखकर आग लगाकर, उन्हें जलाने का प्रयत्न किया, किन्तु पाँचों पाण्डव अपनी माता के साथ उस जलते हुए घर से बाहर निकल गये। वहाँ से एकचक्रा नगरी में जाकर वे [[मुनि]] के वेष में एक [[ब्राह्मण]] के घर में निवास करने लगे। फिर वहाँ [[भीम]] ने [[बकासुर]] नामक एक राक्षस का वध किया। कुछ समय पश्चात् पाण्डव पांचाल राज्य में, जहाँ [[द्रौपदी]] का स्वयंवर होने वाला था, गये।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[एकचक्रा]]
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| {निम्न में से किस [[अप्सरा]] ने [[अर्जुन]] को नपुंसक होने का शाप दिया था?
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| |type="()"}
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| +[[उर्वशी]]
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| -[[मेनका]]
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| -[[घृताची]]
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| -[[रम्भा]]
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| ||[[महाभारत]] की एक कथा के अनुसार सुरलोक की सर्वश्रेष्ठ नर्तकी [[उर्वशी]] को [[इन्द्र]] बहुत चाहते थे। एक दिन जब [[चित्रसेन गन्धर्व|चित्रसेन]] [[अर्जुन]] को संगीत और नृत्य की शिक्षा दे रहे थे, वहाँ पर इन्द्र की अप्सरा उर्वशी आई और अर्जुन पर मोहित हो गई। अवसर पाकर उर्वशी ने अर्जुन से कहा, 'हे अर्जुन! आपको देखकर मेरी काम-वासना जागृत हो गई है, अतः आप कृपया मेरे साथ विहार करके मेरी काम-वासना को शांत करें।' उर्वशी के वचन सुनकर अर्जुन बोले, 'हे देवि! पुरु वंश की जननी होने के नाते आप हमारी माता के तुल्य हैं। देवि! मैं आपको प्रणाम करता हूँ।' अर्जुन की बातों से उर्वशी के मन में बड़ा क्षोभ उत्पन्न हुआ और उसने अर्जुन से कहा, 'तुमने नपुंसकों जैसे वचन कहे हैं, अतः मैं तुम्हें [[शाप]] देती हूँ कि तुम एक [[वर्ष]] तक पुंसत्वहीन रहोगे।'{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[उर्वशी]]
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| {निम्न में से कौन [[विराट|राजा विराट]] की पत्नी थीं?
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| |type="()"}
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| -[[अपाला]]
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| -[[कामा]]
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| +[[सुदेष्णा]]
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| -[[रूमा]]
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| ||[[सुदेष्णा]] [[महाभारत]] युद्ध में भाग लेने वाले राजा [[विराट]] की पत्नी तथा वीर [[अभिमन्यु]] की पत्नी [[उत्तरा]] की माता थीं। अपने [[अज्ञातवास]] के समय राजा विराट के महल में [[भीम]] द्वारा मारा गया [[कीचक]] सुदेष्णा का ही भाई था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[सुदेष्णा]]
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| {[[विराट नगर]] में [[नकुल]] का परिवर्तित नाम क्या था?
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| |type="()"}
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| -[[बल्लव]]
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| +[[ग्रन्थिक]]
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| -[[तन्तिपाल]]
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| -[[कंक]]
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| ||[[महाभारत]] में [[पांडव|पांडवों]] के वनवास में एक वर्ष का [[अज्ञातवास]] भी था, जो उन्होंने [[विराट नगर]] में बिताया। विराट नगर में पांडव अपना नाम और पहचान छुपाकर रहे। इन्होंने [[विराट|राजा विराट]] के यहाँ सेवक बनकर एक वर्ष बिताया। [[नकुल]] ने अपना नाम [[ग्रन्थिक]] बताया और अपने को अश्वों का अधिकारी कहा है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[ग्रन्थिक]]
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| {[[महाभारत]] में [[कीचक वध]] किस पर्व के अंतर्गत आता है?
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| |type="()"}
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| +[[विराट पर्व महाभारत|विराट पर्व]]
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| -[[अनुशासन पर्व महाभारत|अनुशासन पर्व]]
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| -[[आदि पर्व महाभारत |आदि पर्व]]
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| -[[वन पर्व महाभारत|वन पर्व]]
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| ||[[विराट पर्व महाभारत|विराट पर्व]] में [[अज्ञातवास]] की अवधि में [[विराट नगर]] में रहने के लिए गुप्तमन्त्रणा, धौम्य द्वारा उचित आचरण का निर्देश, [[युधिष्ठिर]] द्वारा भावी कार्यक्रम का निर्देश, विभिन्न नाम और रूप से विराट के यहाँ निवास, [[भीमसेन]] द्वारा जीमूत नामक मल्ल तथा [[कीचक]] और उपकीचकों का वध, [[दुर्योधन]] के गुप्तचरों द्वारा [[पाण्डव|पाण्डवों]] की खोज तथा लौटकर [[कीचक वध]] की जानकारी देना, त्रिगर्तों और [[कौरव|कौरवों]] द्वारा [[मत्स्य]] देश पर आक्रमण, कौरवों द्वारा [[विराट]] की गायों का हरण, पाण्डवों का कौरव-सेना से युद्ध, [[अर्जुन]] द्वारा विशेष रूप से युद्ध और कौरवों की पराजय, अर्जुन और कुमार उत्तर का लौटकर विराट की सभा में आना, विराट का युधिष्ठिरादि पाण्डवों से परिचय तथा अर्जुन द्वारा [[उत्तरा]] को पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करना वर्णित है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[विराट पर्व महाभारत]], [[कीचक वध]]
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| {[[महाभारत]] युद्ध में कौन-से दिन [[श्रीकृष्ण]] ने [[शस्त्र]] न उठाने की अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ा?
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| |type="()"}
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| [[महाभारत युद्ध आठवाँ दिन|आठवें दिन]]
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| -[[महाभारत युद्ध दसवाँ दिन|दसवें दिन]]
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| -[[महाभारत युद्ध ग्यारहवाँ दिन|ग्यारहवें दिन]]
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| +[[महाभारत युद्ध नौवाँ दिन|नौवें दिन]]
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| ||[[महाभारत युद्ध नौवाँ दिन|नौवें दिन]] के युद्ध में [[भीष्म]] के [[बाण अस्त्र|बाणों]] से [[अर्जुन]] घायल हो गए। भीष्म की भीषण बाण-वर्षा से [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] के अंग भी जर्जर हो गए। तब श्रीकृष्ण अपनी प्रतिज्ञा भूलकर रथ का एक चक्र उठाकर भीष्म को मारने के लिए दौड़े। अर्जुन भी रथ से कूदे और कृष्ण के पैरों से लिपट पड़े। वे श्रीकृष्ण को अपनी प्रतिज्ञा का स्मरण दिलाते हैं कि वे युद्ध में [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्र-शस्त्र]] नहीं उठायेंगे।
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