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{'समुद्री जहाज' की दुर्घटना पर बनी पेंटिंग 'मेडुसा का बेड़ा' के कलाकार का क्या नाम था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-115,प्रश्न-10 | |||
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+[[थियोडोर जेरिकॉल्ट|जेरिकॉल्ट]] | |||
-एलग्रेको | |||
-ऍग्र | |||
-गोया | |||
||[[थियोडोर जेरिकॉल्ट|जीन-लुइस आंद्रे थियोडोर जेरिकॉल्ट]] फ़्राँसीसी चित्रकार एवं लिथोग्राफर थे। वे 'समुद्री जहाज' की दुर्घटना पर बनी पेंटिग 'मेडुसा का बेड़ा' (The Raft of the Medusa) नामक चित्रण के लिए जाने जाते हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) 'मेडुसा का बेड़ा' रोमांसवाद का सर्वप्रथम चित्र माना गया। (2) अपने चित्रों की [[रंग]] योजना पर जेरिकॉल्ट ने इटालियन चित्रकार काराद्ज्यो का अनुसरण किया है। | |||
{ | {'एविगनन सुंदरियां' चित्र किसने चित्रित किया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-126,प्रश्न-9 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[ | -मोदिग्लियानी | ||
-[[ | +[[पाब्लो पिकासो]] | ||
-लोत्रेक | |||
-[[ | -ज्वां ग्रीस | ||
||[[पाब्लो पिकासो]] व ब्राक ने घनवाद को विकसित किया। संभवत: घनवाद का उदय ([[1907]] ई.) पाब्लो पिकासो के सुविख्यात चित्र 'एविगनन की स्त्रियां' (सुंदरियां) ([[1907]] ई.) से हुआ जो कि घनवाद का प्रथम चित्र माना जाता है। यह चित्र एविगनन के वेश्यालय से संबंधित हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) पाब्लो पिकासो का चित्र 'बेंत की कुर्सी पर वस्तु समूह' ([[1912]]) घनवाद की प्रथम कोलाज कृति है। (2) आकारों के सामर्थ्य को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पाब्लो पिकासो ने चमकीले रंगों को छोड़कर [[भूरा रंग|भूरे रंगों]] का प्रयोग किया। (3) पाब्लो पिकासो ने चित्रकला के अतिरिक्त मूर्तिकला, एंग्रेविंग, लीथोग्राफी, सरैमिक्स, कोलाज आदि भिन्न माध्यमों से उत्कृष्ट कलाकृतियों का निर्माण किया। (4) मज़ाकिया, मुर्गा, धातु की रचना, बिल्ली, बकरी तथा भेड़वाला आदमी आदि पाब्लो पिकासो के मूर्ति शिल्प हैं। (5) पाब्लो पिकासो के प्रमुख चित्र हैं- वायलिन, माता व बालक (मैटरनिटी), युद्ध, शांति आदि। | |||
{ | {किस कलाकार ने अपने चित्रों में [[बाइबिल]] के विषयों को मानवतावादी दृष्टि से अनुदित किया था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-139,प्रश्न-9 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -रेम्ब्रां | ||
+ | +रूबेन्स | ||
-[[ | -वान आइक | ||
-[[ | -पाब्लो पिकासो | ||
||पीटर पॉल रूबेन्स ने [[बाइबिल]] के विषयों को मानवतावादी दृष्टि से अनूदित किया। रूबेन्स ने बाइबिल की कथाओं, घटनाओं और प्राकृतिक जीवन का चित्रण किया। इससे सम्बंधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) पीटर पॉल रूबेन्स का जन्म सन् 1577 में [[जर्मनी]] में हुआ था। (2) रूबेन्स ने 1612 ई. में 'ईसा का सूली से उतारा जाना' नामक चित्र बनाया जिसे उनकी सर्वोत्तम कृति मानी जाती है। (3) इन्होंने 1609-10 ई. में 'क्रॉस का खड़ा किया जाना' नामक चित्र बनाया यह भी इनकी अद्वितीय कृति थी। (4) रूबेन्स ने एण्टवर्प के टाउनहॉल हेतु 'मैजाइ की वंदना' नामक चित्र बनाया जिसमें मानवाकार की 28 आकृतियां हैं। (5) रूबेंस एक बैरोक चित्रकार (Flemish Baroque Painter) था। (6) पेरिस का निर्णय (The Judgement of paris) रूबेन्स की पेंटिंग है। | |||
{[[ | {[[अरस्तू]] ने [[कला]] को क्या कहा था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-152,प्रश्न-9 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+[[ | +[[प्रकृति]] की नकल | ||
- | -सत्य की अनुकृति | ||
- | -अंत:ज्ञान | ||
- | -भावों की अभिव्यक्ति | ||
||एरिस्टॉटल ([[अरस्तू]]) के अनुसार, अनुकृति करना [[कला]] का परम पावन [[धर्म]] है। मानव में बाल्यकाल से ही अनुकरण करने की प्रवृत्ति होती है। संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी सब कुछ नक़ल करके सीखता है। नकल में उसे आनंद आता है। उसने स्पष्ट लिखा है कि 'कला प्रकृति की अनुकृति करती है'। इससे सम्बंधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) प्लेटो ने भी अपनी पुस्तक The Republic में 'अनुकृति' सिद्धांत का वर्णन किया है। (2) [[होमी भाभा]] ने भी 'अनुकृति' सिद्धांत पर लिखा है। | |||
{[[भरत मुनि]] के 'रस तत्त्व' के आधारभूत विषय क्या हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-155,प्रश्न-9 | |||
|type="()"} | |||
-रस-कोटि | |||
-रस-चेतना | |||
-रस-चिंतन | |||
+नाट्य में [[रस]] की निष्पत्ति | |||
||'[[रस]]' उत्पत्ति को सबसे पहले परिभाषित करने का श्रेय [[भरत मुनि]] को जाता है। उन्होंने अपने '[[नाट्यशास्त्र]]' में आठ प्रकार के रसों का वर्णन किया है। रस की व्याख्या करते हुए भरतमुनि कहते हैं कि सब नाट्य उपकरणों द्वारा प्रस्तुत एक भाव मूलक कलात्मक अनुभूति है। रस का केंद्र रंगमंच है। भाव रस नहीं, उसका आधार है किंतु भरत ने स्थायी भाव को ही रस माना है। भरत मुनि ने लिखा है- 'विभावानुभावव्यभिचारी- संयोगद्रसनिष्पत्ति अर्थात विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। अत: भरतमुनि के 'रस तत्त्व' का आधारभूत विषय नाट्य में रस की निष्पत्ति है। इससे सम्बंधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) काव्य शास्त्र के मर्मज्ञ विद्वानों ने [[काव्य]] की आत्मा को ही रस माना है। (2) आचार्य धनंजय के अनुसार, 'विभाव, अनुभाव, सात्त्विक, साहित्य भाव और व्यभिचारी भावों के संयोग से आस्वाद्यमान स्थायी भाव ही रस है। (3) साहित्य दर्पणकार [[आचार्य विश्वनाथ]] ने रस की परिभाषा इस प्रकार दी है-"विभावेनानुभावेन व्यक्त: सच्चारिणा तथा। रसतामेति रत्यादि: स्थायिभाव: सचेतसाम्॥ (3) डॉ. विश्वम्भर नाथ कहते हैं, "भावों के छंदात्मक समन्वय का नाम ही रस है।" (4) [[श्यामसुंदर दास|आचार्य श्याम सुंदर दास]] के अनुसार, "स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव एवं संचारी भावों के योग से आस्वादन करने योग्य हो जाता है, तब सहृदय प्रेक्षक के हृदय में रस रूप में उसका आस्वादन होता है। (5) [[आचार्य रामचंद्र शुक्ल]] के अनुसार, जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञानदशा कहलाती है। उसी प्रकार हृदय की मुक्तावस्था रस दशा कहलाती है।" | |||
{[[लाल रंग]] किसका प्रतीक है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-158,प्रश्न-10 | |||
|type="()"} | |||
-घृणा | |||
-प्रेम | |||
-शांति | |||
+पराक्रम | |||
||प्रकाशयुक्तता एवं अक्ष-पटल की उत्तेजना के विचार से कुछ [[रंग|वर्ण]] गरम और शीतल माने जाते हैं। [[लाल रंग|लाल]] और [[नारंगी]] वर्ण उष्ण (गरम) हैं, [[नीला रंग|नीला]] एवं [[हरा रंग|हरा]] वर्ण शीतल (ठंडा)। [[पीला रंग|पीला]] एवं [[बैंगनी रंग|बैंगनी]] न उष्ण हैं, न शीतल। इससे सम्बंधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) लाल रंग सर्वाधिक उत्तेजक एवं आकर्षक है। यह सक्रिय और आक्रामकता का प्रतीक है। इस रंग से वीरता, पराक्रम, साहस, शृंगारिक, तीव्र और कामुक भावनाओं का अभिव्यक्तिकरण संभव हो जाता है। (2) नीला रंग, शांत, मधुर, निष्क्रिय, ईमानदारी, आशा, लगन आदि का प्रतीक है और हरा रंग, विकास, प्रजनन और समृद्धि का प्रतिनिधित्व करता है। (3) अफ़्रीका में लाल रंग शोक का प्रतीक है। (4) पश्चिमी संस्कृति में लाल रंग घातक पापों के क्रोध का प्रतीक है। (5) पीला रंग प्रसन्नता, दिव्यता तथा यश आदि का प्रतीक है। (6) [[श्वेत रंग]] प्रकाशयुक्त हल्का व कोमल होता है। स्वच्छता, पवित्रता एवं सत्य का प्रतीक है। | |||
{किसी संरचना के प्रमुख दो तत्त्व क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-167,प्रश्न-9 | |||
|type="()"} | |||
+रूप और स्थान | |||
-वर्ण एवं बनावट | |||
-रेखा एवं आकृति | |||
-छाया एवं प्रकाश | |||
||किसी संरचना के प्रमुख दो तत्त्व हैं रूप और स्थान। किसी संरचना से उसके बाह्य रूप और स्थान की प्रकृति का ज्ञान होता है जबकि [[रंग|वर्ण]] एवं बनावट, रेखा एवं आकृति तथा छाया एवं [[प्रकाश]] से कलाकृतियों की अनुभूति होती है। | |||
{वात्स्यायन रचित कामशास्त्र की व्याख्या या टीका में [[कला]] के षडंग का उल्लेख किसने किया है?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-178,प्रश्न-9 | |||
|type="()"} | |||
-[[कालिदास]] | |||
-[[बाणभट्ट]] | |||
+यशोधर | |||
-[[शूद्रक]] | |||
||ईसा पूर्व पहली शताब्दी के लगभग षडंग चित्रकला (छ: अंगों वाली कला) का विकास हुआ। यशोधर पंडित ने 'जयमंगला' नाम से टीका की। कामसूत्र के प्रथम अधिकरण के तीसरे अध्याय की टीका करते हुए पंडित यशोधर ने आलेख, चित्रकला के छ: अंग बताए हैं- रूपभेदा: प्रमाणिनि भावलावण्ययोजनम्। यादृश्यं वर्णिकाभंग इति चित्र षडंगकम्॥ अर्थात् रूपभेद, प्रमाण (सही नाप और संरचना आदि), भाव (भावना), लावण्ययोजना, सादृश्य विधान तथा वर्णिकाभंग ये छ: अंग हैं। | |||
{'फ़ादर ऑफ़ कंम्यूटर' कौन हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-182,प्रश्न-9 | |||
|type="()"} | |||
-हर्मन हालरिथ | |||
-बिल गेट्स | |||
-मार्क जुकरबर्ग | |||
+चार्ल्स बैबेज | |||
||चार्ल्स बैबेज को फ़ादर ऑफ़ कंम्यूटर कहा जाता है। इनका जन्म [[26 दिसंबर]], 1791 को [[लंदन]] में तथा मृत्यु [[18 अक्टूबर]], 1871 को हुई। | |||
{'[[संत रैदास]]' के गुरु का क्या नाम था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-188,प्रश्न-40 | |||
|type="()"} | |||
+[[रामचंद्र]] | |||
-[[कबीर दास]] | |||
-[[शंकर देव]] | |||
-इनमें से कोई नहीं | |||
||[[संत रैदास]] को विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। उन्हें [[रविदास]] भी कहा जाता है। इनका जन्म [[काशी]] (वाराणसी) के पास एक [[गांव]] में माना जाता है। इनके जन्म के समय का विभिन्न विद्वानों में मतभेद है। [[रविवार]] के दिन जन्म होने के कारण इनका नाम 'रविदास' रखा गया। रविदास को [[रामानंद]] का शिष्य माना जाता है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) रविदास का जन्म चर्मकार (चमार) कुल में हुआ था। (2) इनके पिता का नाम 'रग्घू' तथा माता का नाम 'घुरविनिया' था। (3) रविदास, [[राम]] और [[कृष्ण]] भक्त परंपरा के कवि और संत माने जाते हैं। (4) रविदास, [[कबीर]] के समकालीन थे। (5) [[हिंदी साहित्य]] में मध्यकाल, [[भक्तिकाल]] के नाम से प्रख्यात हैं। वे इसी काल के कवि माने जाते हैं। | |||
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11:55, 17 जनवरी 2018 का अवतरण
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