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'''कठी''' | '''कठी''' पाणिनिकालीन भारतवर्ष में प्रचलित एक शब्द था। | ||
*तत्कालीन समय में शिक्षा के क्षेत्र में भी स्त्रियों का सम्मानित स्थान था, यहां तक कि चरण संज्ञक वैदिक शिक्षा केंद्रों में भी वे प्रविष्ट होकर अध्ययन करती थीं। | |||
* सूत्र 4/1/63 (जातेरस्त्रीविषयादयोपधात) में जातिवादी स्त्री नामों में गोत्र और चरण वाची नामों का ग्रहण सब आचार्यों ने माना है। | |||
*काशिका में कठी और वह बह्वृची यह उदाहरण दिए गए हैं। | |||
*कृष्ण यजुर्वेद की प्रसिद्ध शाखा का एक चरण 'कठ' था। उसके संस्थापक [[कठ|आचार्य कठ]] सुप्रसिद्ध [[वैशंपायन|आचार्य वैशंपायन]] के अंतेवासी थे। कठ के चरण में विद्या अध्ययन करने वाली स्त्रियां ‘कठी’ कहलायीं।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पाणिनीकालीन भारत|लेखक=वासुदेवशरण अग्रवाल|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी-1|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=102|url=}}</ref> | |||
06:46, 10 अप्रैल 2018 का अवतरण
कठी पाणिनिकालीन भारतवर्ष में प्रचलित एक शब्द था।
- तत्कालीन समय में शिक्षा के क्षेत्र में भी स्त्रियों का सम्मानित स्थान था, यहां तक कि चरण संज्ञक वैदिक शिक्षा केंद्रों में भी वे प्रविष्ट होकर अध्ययन करती थीं।
- सूत्र 4/1/63 (जातेरस्त्रीविषयादयोपधात) में जातिवादी स्त्री नामों में गोत्र और चरण वाची नामों का ग्रहण सब आचार्यों ने माना है।
- काशिका में कठी और वह बह्वृची यह उदाहरण दिए गए हैं।
- कृष्ण यजुर्वेद की प्रसिद्ध शाखा का एक चरण 'कठ' था। उसके संस्थापक आचार्य कठ सुप्रसिद्ध आचार्य वैशंपायन के अंतेवासी थे। कठ के चरण में विद्या अध्ययन करने वाली स्त्रियां ‘कठी’ कहलायीं।[1]
इन्हें भी देखें: पाणिनि, अष्टाध्यायी एवं भारत का इतिहास
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पाणिनीकालीन भारत |लेखक: वासुदेवशरण अग्रवाल |प्रकाशक: चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी-1 |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 102 |