"पंचाल महाजनपद": अवतरणों में अंतर
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पांचाल पौराणिक [[महाजनपद|16 महाजनपदों]] में से एक है। पश्चिमी [[उत्तर प्रदेश]] के [[बरेली]], [[बदायूँ]] और फर्रूख़ाबाद ज़िलों से परिवृत प्रदेश का प्राचीन नाम है। यह कानपुर से [[वाराणसी]] के बीच के [[गंगा नदी|गंगा]] के मैदान में फैला हुआ था। इसकी भी दो शाखाएँ थीं- | '''पांचाल''' पौराणिक [[महाजनपद|16 महाजनपदों]] में से एक है। पश्चिमी [[उत्तर प्रदेश]] के [[बरेली]], [[बदायूँ]] और फर्रूख़ाबाद ज़िलों से परिवृत प्रदेश का प्राचीन नाम है। यह कानपुर से [[वाराणसी]] के बीच के [[गंगा नदी|गंगा]] के मैदान में फैला हुआ था। इसकी भी दो शाखाएँ थीं- | ||
*पहली शाखा उत्तर पांचाल की राजधानी [[अहिच्छत्र]] | *पहली शाखा उत्तर पांचाल की राजधानी [[अहिच्छत्र]] थी। | ||
*दूसरी शाखा दक्षिण पांचाल की राजधानी [[कांपिल्य]] थी। | |||
[[पांडव|पांडवों]] की पत्नी | *दूसरी शाखा दक्षिण पांचाल की राजधानी [[कांपिल्य]] थी। | ||
*[[पांडव|पांडवों]] की पत्नी [[द्रौपदी]] को पंचाल की राजकुमारी होने के कारण पांचाली भी कहा गया। | |||
*[[कनिंघम]] के अनुसार वर्तमान [[रुहेलखंड]] उत्तर पंचाल और दोआबा दक्षिण पंचाल था। | |||
*पांचाल वर्तमान रुहेलखंड का प्राचीन नाम था। इसका यह नाम राजा हर्यश्व के पांच पुत्रों के कारण पड़ा था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक=राणा प्रसाद शर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=557, परिशिष्ट 'क'|url=}}</ref> | |||
*संहितोपनिषद ब्राह्मण में पंचाल के प्राच्य पंचाल भाग (पूर्वी भाग) का भी उल्लेख है। [[शतपथ ब्राह्मण]]<ref>शतपथ ब्राह्मण 13,5,4,7</ref> में पंचाल की परिवका या परिचका नामक नगरी का उल्लेख है जो वेबर के अनुसार [[महाभारत]] की एकचका है। | *संहितोपनिषद ब्राह्मण में पंचाल के प्राच्य पंचाल भाग (पूर्वी भाग) का भी उल्लेख है। [[शतपथ ब्राह्मण]]<ref>शतपथ ब्राह्मण 13,5,4,7</ref> में पंचाल की परिवका या परिचका नामक नगरी का उल्लेख है जो वेबर के अनुसार [[महाभारत]] की एकचका है। | ||
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श्री राय चौधरी का मत है कि पंचाल पाँच प्राचीन कुलों का सामूहिक नाम था। वे ये थे— | श्री राय चौधरी का मत है कि पंचाल पाँच प्राचीन कुलों का सामूहिक नाम था। वे ये थे— | ||
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ब्रह्मपुराण<ref>ब्रह्मपुराण 13,94</ref> तथा [[मत्स्य पुराण]]<ref>मत्स्य पुराण 50,3</ref> में इन्हें मुदगल सृंजय, बृहदिषु, यवीनर और कृमीलाश्व कहा गया है। पंचालों और [[कुरु महाजनपद|कुरु]] जनपदों में परस्पर लड़ाई-झगड़े चलते रहते थे। महाभारत के [[आदि पर्व महाभारत|आदिपर्व]] से ज्ञात होता है कि पांडवों के गुरु [[द्रोणाचार्य]] ने [[अर्जुन]] की सहायता से पंचालराज [[द्रुपद]] को हराकर उसके पास केवल दक्षिण पंचाल (जिसकी राजधानी [[कांपिल्य]] थी) रहने दिया और उत्तर पंचाल को हस्तगत कर लिया था <ref>‘अत: प्रयतितं राज्ये यज्ञसेन त्वया सह, राजासि दक्षिणे कूले भागीरथ्याहमुत्तरे’, महाभारत आदिपर्व 165,24</ref><br /> कि द्रोणाचार्य ने परास्त होने पर कैद में डाले हुए पंचाल राज द्रुपद से कहा—‘मैंने राज्य प्राप्ति के लिए तुम्हारे साथ युद्ध किया है। अब [[गंगा नदी|गंगा]] के उत्तरतटवर्ती प्रदेश का मैं, और दक्षिण तट के तुम राजा होंगे’। इस प्रकार महाभारत-काल में पंचाल, गंगा के उत्तरी और दक्षिण दोनों तटों पर बसा हुआ था। द्रुपद पहले [[अहिच्छत्र]] या छत्रवती नगरी में रहते थे<ref>‘पार्षतो द्रुपदो नामच्छत्रवत्यां नरेश्वर’ महाभारत आदिपर्व 165,21</ref>। इन्हें जीतने के लिए द्रोण ने [[कौरव|कौरवों]] और पांडवों को पंचाल भेजा था<ref>‘धार्तराष्ट्रैश्च सहिता पंचालान पांडवा ययु:’</ref> | ब्रह्मपुराण<ref>ब्रह्मपुराण 13,94</ref> तथा [[मत्स्य पुराण]]<ref>मत्स्य पुराण 50,3</ref> में इन्हें मुदगल सृंजय, बृहदिषु, यवीनर और कृमीलाश्व कहा गया है। पंचालों और [[कुरु महाजनपद|कुरु]] जनपदों में परस्पर लड़ाई-झगड़े चलते रहते थे। महाभारत के [[आदि पर्व महाभारत|आदिपर्व]] से ज्ञात होता है कि पांडवों के गुरु [[द्रोणाचार्य]] ने [[अर्जुन]] की सहायता से पंचालराज [[द्रुपद]] को हराकर उसके पास केवल दक्षिण पंचाल (जिसकी राजधानी [[कांपिल्य]] थी) रहने दिया और उत्तर पंचाल को हस्तगत कर लिया था <ref>‘अत: प्रयतितं राज्ये यज्ञसेन त्वया सह, राजासि दक्षिणे कूले भागीरथ्याहमुत्तरे’, महाभारत आदिपर्व 165,24</ref><br /> कि द्रोणाचार्य ने परास्त होने पर कैद में डाले हुए पंचाल राज द्रुपद से कहा—‘मैंने राज्य प्राप्ति के लिए तुम्हारे साथ युद्ध किया है। अब [[गंगा नदी|गंगा]] के उत्तरतटवर्ती प्रदेश का मैं, और दक्षिण तट के तुम राजा होंगे’। इस प्रकार महाभारत-काल में पंचाल, गंगा के उत्तरी और दक्षिण दोनों तटों पर बसा हुआ था। द्रुपद पहले [[अहिच्छत्र]] या छत्रवती नगरी में रहते थे<ref>‘पार्षतो द्रुपदो नामच्छत्रवत्यां नरेश्वर’ महाभारत आदिपर्व 165,21</ref>। इन्हें जीतने के लिए द्रोण ने [[कौरव|कौरवों]] और पांडवों को पंचाल भेजा था<ref>‘धार्तराष्ट्रैश्च सहिता पंचालान पांडवा ययु:’</ref> | ||
==द्रौपदी का स्वयंवर== | ==द्रौपदी का स्वयंवर== | ||
महाभारत आदिपर्व में वर्णित द्रौपदी का स्वयंवर कांपिल्य में हुआ था। दक्षिण पंचाल की सीमा [[गंगा नदी]] के दक्षिणी तट से लेकर [[चम्बल नदी]] या [[चर्मण्वती नदी]] तक थी<ref>‘सोऽघ्यवसद् दीनमना: कांपिल्य च पुरोत्तमम् दक्षिणांश्चापि पंचालान् यावच्चर्मण्वता नदी’,महाभारत आदिपर्व 137,76</ref>। विष्णु पुराण<ref>विष्णु पुराण 2,3,15</ref> में कुरु-पांचालों को मध्यदेशीय कहा गया है<ref>‘तास्विमे कुरुपांचाला मध्यदेशादयोजना:’</ref>। पंचाल निवासियों को भीमसेन ने अपनी पूर्व देश की दिग्विजय-यात्रा में अनेक प्रकार से समझा-बुझा कर वश में कर लिया था<ref>‘सगत्वा नरशार्दूल: पंचालानां पुरं महत् पंचालान् विविधोपाये: सांत्वयामास पांडव:', महाभारत सभापर्व 29,3-4</ref>। | महाभारत आदिपर्व में वर्णित द्रौपदी का स्वयंवर कांपिल्य में हुआ था। दक्षिण पंचाल की सीमा [[गंगा नदी]] के दक्षिणी तट से लेकर [[चम्बल नदी]] या [[चर्मण्वती नदी]] तक थी<ref>‘सोऽघ्यवसद् दीनमना: कांपिल्य च पुरोत्तमम् दक्षिणांश्चापि पंचालान् यावच्चर्मण्वता नदी’,महाभारत आदिपर्व 137,76</ref>। विष्णु पुराण<ref>विष्णु पुराण 2,3,15</ref> में कुरु-पांचालों को मध्यदेशीय कहा गया है<ref>‘तास्विमे कुरुपांचाला मध्यदेशादयोजना:’</ref>। पंचाल निवासियों को भीमसेन ने अपनी पूर्व देश की दिग्विजय-यात्रा में अनेक प्रकार से समझा-बुझा कर वश में कर लिया था<ref>‘सगत्वा नरशार्दूल: पंचालानां पुरं महत् पंचालान् विविधोपाये: सांत्वयामास पांडव:', महाभारत सभापर्व 29,3-4</ref>। | ||
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10:33, 23 मई 2018 के समय का अवतरण
पांचाल पौराणिक 16 महाजनपदों में से एक है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बरेली, बदायूँ और फर्रूख़ाबाद ज़िलों से परिवृत प्रदेश का प्राचीन नाम है। यह कानपुर से वाराणसी के बीच के गंगा के मैदान में फैला हुआ था। इसकी भी दो शाखाएँ थीं-
- पहली शाखा उत्तर पांचाल की राजधानी अहिच्छत्र थी।
- दूसरी शाखा दक्षिण पांचाल की राजधानी कांपिल्य थी।
- पांडवों की पत्नी द्रौपदी को पंचाल की राजकुमारी होने के कारण पांचाली भी कहा गया।
- कनिंघम के अनुसार वर्तमान रुहेलखंड उत्तर पंचाल और दोआबा दक्षिण पंचाल था।
- पांचाल वर्तमान रुहेलखंड का प्राचीन नाम था। इसका यह नाम राजा हर्यश्व के पांच पुत्रों के कारण पड़ा था।[1]
- संहितोपनिषद ब्राह्मण में पंचाल के प्राच्य पंचाल भाग (पूर्वी भाग) का भी उल्लेख है। शतपथ ब्राह्मण[2] में पंचाल की परिवका या परिचका नामक नगरी का उल्लेख है जो वेबर के अनुसार महाभारत की एकचका है।
श्री राय चौधरी का मत है कि पंचाल पाँच प्राचीन कुलों का सामूहिक नाम था। वे ये थे—
- किवि,
- केशी,
- सृंजय,
- तुर्वसस,
- सोमक।
ग्रंथों में उल्लेख
ब्रह्मपुराण[3] तथा मत्स्य पुराण[4] में इन्हें मुदगल सृंजय, बृहदिषु, यवीनर और कृमीलाश्व कहा गया है। पंचालों और कुरु जनपदों में परस्पर लड़ाई-झगड़े चलते रहते थे। महाभारत के आदिपर्व से ज्ञात होता है कि पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य ने अर्जुन की सहायता से पंचालराज द्रुपद को हराकर उसके पास केवल दक्षिण पंचाल (जिसकी राजधानी कांपिल्य थी) रहने दिया और उत्तर पंचाल को हस्तगत कर लिया था [5]
कि द्रोणाचार्य ने परास्त होने पर कैद में डाले हुए पंचाल राज द्रुपद से कहा—‘मैंने राज्य प्राप्ति के लिए तुम्हारे साथ युद्ध किया है। अब गंगा के उत्तरतटवर्ती प्रदेश का मैं, और दक्षिण तट के तुम राजा होंगे’। इस प्रकार महाभारत-काल में पंचाल, गंगा के उत्तरी और दक्षिण दोनों तटों पर बसा हुआ था। द्रुपद पहले अहिच्छत्र या छत्रवती नगरी में रहते थे[6]। इन्हें जीतने के लिए द्रोण ने कौरवों और पांडवों को पंचाल भेजा था[7]
द्रौपदी का स्वयंवर
महाभारत आदिपर्व में वर्णित द्रौपदी का स्वयंवर कांपिल्य में हुआ था। दक्षिण पंचाल की सीमा गंगा नदी के दक्षिणी तट से लेकर चम्बल नदी या चर्मण्वती नदी तक थी[8]। विष्णु पुराण[9] में कुरु-पांचालों को मध्यदेशीय कहा गया है[10]। पंचाल निवासियों को भीमसेन ने अपनी पूर्व देश की दिग्विजय-यात्रा में अनेक प्रकार से समझा-बुझा कर वश में कर लिया था[11]।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 557, परिशिष्ट 'क' |
- ↑ शतपथ ब्राह्मण 13,5,4,7
- ↑ ब्रह्मपुराण 13,94
- ↑ मत्स्य पुराण 50,3
- ↑ ‘अत: प्रयतितं राज्ये यज्ञसेन त्वया सह, राजासि दक्षिणे कूले भागीरथ्याहमुत्तरे’, महाभारत आदिपर्व 165,24
- ↑ ‘पार्षतो द्रुपदो नामच्छत्रवत्यां नरेश्वर’ महाभारत आदिपर्व 165,21
- ↑ ‘धार्तराष्ट्रैश्च सहिता पंचालान पांडवा ययु:’
- ↑ ‘सोऽघ्यवसद् दीनमना: कांपिल्य च पुरोत्तमम् दक्षिणांश्चापि पंचालान् यावच्चर्मण्वता नदी’,महाभारत आदिपर्व 137,76
- ↑ विष्णु पुराण 2,3,15
- ↑ ‘तास्विमे कुरुपांचाला मध्यदेशादयोजना:’
- ↑ ‘सगत्वा नरशार्दूल: पंचालानां पुरं महत् पंचालान् विविधोपाये: सांत्वयामास पांडव:', महाभारत सभापर्व 29,3-4