"अलीराजपुर ज़िला": अवतरणों में अंतर

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'''अलिराजपुर''' मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले की एक तहसील है। पहले यह मध्यभारत के दक्षिण एजेंसी में मध्यभारत का एक राज्य था। उसके पहले यह झील या भोपावर एजेंसी का एक देशी राज्य था। उस समय इसका क्षेत्रफल 836 वर्ग मील था।


अलिराजपुर एक पहाड़ी प्रदेश है तथा यहाँ के आदिवासी 'भील' नाम से पुकारे जाते हैं। इसका अधिकतर भाग जंगल से ढका है और बाजरा तथा मक्का के अतिरिक्त विशेष रूप से और कुछ पैदा नहीं होता। अलिराजपुर नगर पहले अलिराजपुर राज्य की राजधानी था, परंतु इस समय झाबुआ जिले का प्रधान नगर है। 22° 11¢ उ.अ. तथा 74° 24¢ पू.दे. पर यह स्थित है। यहाँ नगर पालिका (म्यूनिसिपैलिटी) है।


इस नगर के पुराने इतिहास का ठीक पता नहीं चलता और कब किसके द्वारा यह स्थापित हुआ है इसका कोई प्रामाणिक उल्लेख कहीं नहीं मिलता है। पहाड़ों तथा जंगलों से घिरा होने के कारण इसपर आक्रमण कम हुए और इसलिए मराठों ने जब मालवा पर आक्रमण किया तब इसपर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। अंग्रेजों के अधीनस्थ होने के पूर्व मालवा के राणा प्रतापसिंह अलिराजपुर के प्रधान थे। इनके देहाँत के पश्चात्‌ मुसाफिर नामक इनके एक विश्वासी नौकर ने राज्य को संभाला तथा प्रतापसिंह के मरणोत्तर उत्पन्न पुत्र यशवंत सिंह को सिंहासन पर बैठाया गया। यशवंतसिंह का सन्‌ 1862 में देहाँत हुआ। मरने के पूर्व उन्होंने अपने दो पुत्रों को राज्य बाँट देने का निर्देश दिया; परंतु अंग्रेजों ने आसपास के कुछ प्रधानों से परामर्श करके इनके बड़े पुत्र गंगदेव को संपूर्ण राज्य का मालिक बनाया। गंगदेव योग्य राजा नहीं था और वह ठीक से राज्य नहीं चला सका। कुछ ही दिनों में विद्रोह की भावना प्रज्वलित हुई और अराजकता छा गई। इस कारण अंग्रेज सरकार ने कुछ दिनों के लिए इसे अपने हाथ में ले लिया। गंगदेव के देहाँत के बाद (1871 में) इनके भाई आदि ने इसपर राज्य किया। भारत स्वतंत्र होने के बाद यह राज्य भारतीय गणतंत्र में मिल गया और इस समय मध्यप्रदेश का एक भाग है। अलिराजपुर पर राज्य करनेवाले प्रधान राठौर राजपूतों के वंशज थे और महाराणा पद के अधिकारी थे। इनके सम्मानार्थ पहले नौ तोपों की सलामी दी जाती थी।
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==संबंधित लेख==
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08:05, 3 जून 2018 के समय का अवतरण

अलीराजपुर ज़िला
राज्य -
स्थापना -
जनसंख्या -
क्षेत्रफल -
भौगोलिक निर्देशांक -
तहसील -
मंडल -
खण्डों की सँख्या -
आदिवासी -
विधान सभा क्षेत्र -
लोकसभा -
नगर पालिका -
नगर निगम -
नगर -
क़स्बे -
कुल ग्राम -
विद्युतीकृत ग्राम -
मुख्य ऐतिहासिक स्थल -
मुख्य पर्यटन स्थल -
वनक्षेत्र -
बुआई क्षेत्र -
सिंचित क्षेत्र -
नगरीय जनसंख्या -
ग्रामीण जनसंख्या -
राजस्व ग्राम -
आबादी रहित ग्राम -
आबाद ग्राम -
नगर पंचायत -
ग्राम पंचायत -
जनपद पंचायत -
सीमा -
अनुसूचित जाति -
अनुसूचित जनजाति -
प्रसिद्धि -
लिंग अनुपात - ♂/♀
साक्षरता - %
· स्त्री - %
· पुरुष - %
ऊँचाई - समुद्रतल से
तापमान -
· ग्रीष्म -
· शरद -
वर्षा - मिमि
दूरभाष कोड -
वाहन पंजी. -
इस लेख का निर्माण जनगणना 2011 के 'सत्यापित आंकड़ों' के अभाव में लम्बित है। 2011 की जनगणना के अनुमानित आंकड़ों के उपयोग से यह लेख नहीं बनाया जाना चाहिए।

लेख का आधार बना दिया गया है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं।

अलिराजपुर मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले की एक तहसील है। पहले यह मध्यभारत के दक्षिण एजेंसी में मध्यभारत का एक राज्य था। उसके पहले यह झील या भोपावर एजेंसी का एक देशी राज्य था। उस समय इसका क्षेत्रफल 836 वर्ग मील था।

अलिराजपुर एक पहाड़ी प्रदेश है तथा यहाँ के आदिवासी 'भील' नाम से पुकारे जाते हैं। इसका अधिकतर भाग जंगल से ढका है और बाजरा तथा मक्का के अतिरिक्त विशेष रूप से और कुछ पैदा नहीं होता। अलिराजपुर नगर पहले अलिराजपुर राज्य की राजधानी था, परंतु इस समय झाबुआ जिले का प्रधान नगर है। 22° 11¢ उ.अ. तथा 74° 24¢ पू.दे. पर यह स्थित है। यहाँ नगर पालिका (म्यूनिसिपैलिटी) है।

इस नगर के पुराने इतिहास का ठीक पता नहीं चलता और कब किसके द्वारा यह स्थापित हुआ है इसका कोई प्रामाणिक उल्लेख कहीं नहीं मिलता है। पहाड़ों तथा जंगलों से घिरा होने के कारण इसपर आक्रमण कम हुए और इसलिए मराठों ने जब मालवा पर आक्रमण किया तब इसपर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। अंग्रेजों के अधीनस्थ होने के पूर्व मालवा के राणा प्रतापसिंह अलिराजपुर के प्रधान थे। इनके देहाँत के पश्चात्‌ मुसाफिर नामक इनके एक विश्वासी नौकर ने राज्य को संभाला तथा प्रतापसिंह के मरणोत्तर उत्पन्न पुत्र यशवंत सिंह को सिंहासन पर बैठाया गया। यशवंतसिंह का सन्‌ 1862 में देहाँत हुआ। मरने के पूर्व उन्होंने अपने दो पुत्रों को राज्य बाँट देने का निर्देश दिया; परंतु अंग्रेजों ने आसपास के कुछ प्रधानों से परामर्श करके इनके बड़े पुत्र गंगदेव को संपूर्ण राज्य का मालिक बनाया। गंगदेव योग्य राजा नहीं था और वह ठीक से राज्य नहीं चला सका। कुछ ही दिनों में विद्रोह की भावना प्रज्वलित हुई और अराजकता छा गई। इस कारण अंग्रेज सरकार ने कुछ दिनों के लिए इसे अपने हाथ में ले लिया। गंगदेव के देहाँत के बाद (1871 में) इनके भाई आदि ने इसपर राज्य किया। भारत स्वतंत्र होने के बाद यह राज्य भारतीय गणतंत्र में मिल गया और इस समय मध्यप्रदेश का एक भाग है। अलिराजपुर पर राज्य करनेवाले प्रधान राठौर राजपूतों के वंशज थे और महाराणा पद के अधिकारी थे। इनके सम्मानार्थ पहले नौ तोपों की सलामी दी जाती थी।

अलिराजपुर नगर का सबसे आकर्षक भवन इसका भव्य राजप्रसाद है जो इसके मुख्य बाजार के निकट ही बना है। राज्यव्यवस्था करने वाले अधिकारियों के निवासस्थान भी इसी में हैं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 257 |

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