"आर्मस्ट्रांग": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
(''''आर्मस्ट्रांग''' विलियम जार्ज आर्मस्ट्रांग बैरन (1810-...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
No edit summary
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
[[Category:आविष्कारक]][[Category:विज्ञान कोश]]
[[Category:आविष्कारक]][[Category:वैज्ञानिक]][[Category:विज्ञान कोश]]
[[Category:हिन्दी विश्वकोश]]
[[Category:हिन्दी विश्वकोश]]
__INDEX__
__INDEX__

05:25, 19 जून 2018 के समय का अवतरण

आर्मस्ट्रांग विलियम जार्ज आर्मस्ट्रांग बैरन (1810-1900), अंग्रेज आविष्कारक तथा तोप आदि बनाने के कारखाने का मालिक था। सन्‌ 1833 से 1840 तक वह वक़ील था, परंतु उसका मन यांत्रिक और वैज्ञानिक खोजों में लगा रहता था। सन्‌ 1841-43 में उसने कई खोजपत्र प्रकाशित किए जिनमें बर्तनों से निकली भाप की विद्युत्‌ पर अन्वेषण किया गया था। इसका ध्यान इस ओर आकर्षित होने का कारण यह था कि उससे एक इंजन चालक ने पूछा कि भाप में हाथ रखकर बायलर को छूने से झटका क्यों लगता है। पीछे उसने समुद्रतट पर जहाजों से भारी माल उठाने के लिए जलचालित क्रेन का आविष्कार किया। आर्मस्ट्रांग ने एल्स्विक का कारखाना इसी यंत्र के निर्माण के लिए स्थापित किया, परंतु शीघ्र ही उसका ध्यान तोप बनाने की ओर आकर्षित हुआ। उसकी बनाई तोपों में विशेषता यह थी कि पुष्टता लाने के लिए इस्पात के नल के ऊपर धातु के तप्त छल्ले चढ़ाए जाते थे, जो ठंडे होने पर सिकुड़ कर भीतर की नाल को खूब दबाए रहते थे, जिससे नाल फटने नहीं पाती थी। नाल के भीतर पेच कटा रहता था और गोल गोलों के बदले इसमें आधुनिक ढंग के लंबे गोले दागे जाते थे जो नाल के पेच के कारण अपनी धुरी पर तीव्रता से नाचते हुए निकलते थे। इससे गोला दूर तक पहुँचता था और लक्ष्य पर सच्चा जा बैठता था। इन गुणों के अतिरिक्त तोप में गोला मुंह की ओर से न डालकर पीछे से डाला जाता था। इन सब सुविधाओं के कारण आर्मस्ट्रांग की तोपें खूब चलीं, यद्यपि बीच में कुछ वर्षों तक ब्रिटिश सेना ने इनको अयोग्य ठहरा दिया था। सन्‌ 1887 में ब्रिटिश सरकार ने आर्मस्ट्रांग को बैरन की पदवी प्रदान करके सम्मानित किया। अपने खोजपत्रों के अतिरिक्त आर्मस्ट्रांग ने दो पुस्तकें भी लिखीं हैं: ए विज़ट टु ईजिप्ट और इलेक्ट्रिक मूवमेंट्स इन एअर ऐंड वाटर।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 437 |

संबंधित लेख