"कला-संस्कृति और धर्म सामान्य ज्ञान 431": अवतरणों में अंतर
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+वर द्वारा वधु का दायाँ हाथ अपने दायँ हाथ में लेना। | +वर द्वारा वधु का दायाँ हाथ अपने दायँ हाथ में लेना। | ||
-पत्थर पर चलना। | -पत्थर पर चलना। | ||
||[[चित्र:Marriage.jpg|right|border|80px|विवाह संस्कार]][[हिन्दू धर्म]] में [[विवाह]] को सोलह संस्कारों में से एक [[संस्कार]] माना गया है। विवाह दो शब्दों से मिलकर बना है- 'वि' + 'वाह'। अत: इसका शाब्दिक अर्थ है- "विशेष रूप से (उत्तरदायित्व का) वहन करना"। 'पाणिग्रहण संस्कार' को सामान्य रूप से हिन्दू विवाह के नाम से जाना जाता है। अन्य धर्मों में विवाह पति और पत्नी के बीच एक प्रकार का करार होता है, जिसे विशेष परिस्थितियों में तोड़ा भी जा सकता है। परंतु [[हिन्दू धर्म]] [[विवाह]] पति और पत्नी के बीच जन्म-जन्मांतरों का सम्बंध होता है, जिसे किसी भी परिस्थिति में नहीं तोड़ा जा सकता।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[विवाह संस्कार]] | |||
{गोदधि में किस [[देवता]] का निवास माना जाता है? | {[[दही|गोदधि]] में किस [[देवता]] का निवास माना जाता है? | ||
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-[[वरुण देवता|वरुण]] | -[[वरुण देवता|वरुण]] | ||
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+[[वायु देव|वायु]] | +[[वायु देव|वायु]] | ||
-[[सूर्य देवता|सूर्य]] | -[[सूर्य देवता|सूर्य]] | ||
||[[चित्र:Vayu.gif|right|border|80px|वायु देव]]'वायु देव' हवा के [[देवता]] को कहा जाता है। वेदोंं में इनका कई बार वर्णन आया है। इन्हें [[भीम]] का [[पिता]] माना जाता है और [[हनुमान]] के आध्यात्मिक पिता कहा गया है। इन्हें वात देव अथवा पवन देव के नाम से भी जाना जाता है। कभी-कभी इन्हें प्राण देव भी कहा जाता है। [[वायु देव]] को गंधर्वलोक का राजा भी कहा जाता है। वायु देव पर्वतों के राजा हैंं। वह गति के [[देवता]] हैंं। इस बात का उल्लेख [[हिन्दू]] धार्मिक ग्रंथों में मिलता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[वायु देव]] | |||
{वह कौन-सा [[युग]] था, जिसमें [[महाभारत]] का युद्ध हुआ था? | {वह कौन-सा [[युग]] था, जिसमें [[महाभारत]] का युद्ध हुआ था? | ||
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-[[कलियुग]] | -[[कलियुग]] | ||
+[[द्वापर युग]] | +[[द्वापर युग]] | ||
||[[चित्र:Krishna-arjun1.jpg|right|border|80px|श्रीकृष्ण तथा अर्जुन]]'द्वापर' चार युगों में तीसरा [[युग]] है। इसका आरम्भ [[भाद्रपद]] के [[कृष्ण पक्ष]] की [[त्रयोदशी]] [[बृहस्पतिवार]] से होता है। [[महाभारत]] [[हिन्दू|हिन्दुओं]] का प्रमुख काव्य [[ग्रंथ]] है, जो [[हिन्दू धर्म]] के उन धर्म-ग्रन्थों का समूह है, जिनकी मान्यता श्रुति से नीची श्रेणी की हैं और जो मानवों द्वारा उत्पन्न थे। कभी-कभी सिर्फ़ 'भारत' कहा जाने वाला यह काव्य-ग्रंथ [[भारत]] का अनुपम, धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ है। यह [[हिन्दू धर्म]] के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाभारत]] | |||
{किस बौद्ध ग्रन्थ में सर्वप्रथम [[संस्कृत]] का प्रयोग हुआ? | {किस बौद्ध ग्रन्थ में सर्वप्रथम [[संस्कृत]] का प्रयोग हुआ? | ||
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+[[अभिधम्मपिटक]] | +[[अभिधम्मपिटक]] | ||
-[[महावस्तु]] | -[[महावस्तु]] | ||
||'अभिधम्मपिटक' [[बौद्ध धर्म]] का धार्मिक ग्रंथ है। इस ग्रंथ में [[बौद्ध]] मतों की दार्शनिक व्याख्या की गयी है। बौद्ध परम्परा की ऐसी मान्यता है कि इस [[पिटक]] का संकलन [[अशोक]] के समय में सम्पन्न [[बौद्ध संगीति तृतीय|तृतीय बौद्ध संगीति]] में 'मोग्गलिपुत्त तिस्म' ने किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अभिधम्मपिटक]] | |||
{[[काल गणना]] के अन्तर्गत एक अहोरात्र में कितने मुहूर्त होते हैं? | {[[काल गणना]] के अन्तर्गत एक अहोरात्र में कितने मुहूर्त होते हैं? | ||
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-चालीस | -चालीस | ||
-पचास | -पचास | ||
||सृष्टि की कुल आयु 4320000000 वर्ष मानी गई है। इसमें से वर्तमान आयु निकालकर सृष्टि की शेष आयु 2,35,91,46,895 [[वर्ष]] है। तदुपरांत महाप्रलय निश्चित है। इसके बाद [[ब्रह्मा]] की रात्रि प्रारंभ होगी। यह रात्रि 4320000000 मानव वर्षों की ही होगी, जिसे प्रलय कहा गया है। इसके उपरांत सृष्टि के पुनर्निर्माण के साथ [[ब्रह्मा]] का नया दिन शुरू होगा। इस प्रकार ब्रह्मा का एक [[अहोरात्र]] 8640000000 मानव वर्षों का होता है। ब्रह्मा को परमेष्ठी मंडल की संज्ञा दी गई है, जिसके चारों और [[सूर्य]] चक्कर लगाता है। ब्रह्मा के [[अहोरात्र]] को 360 से गुणा करने पर एक ब्राह्म वर्ष बनता है तथा उसे 100 से गुणा करने पर ब्राह्म युग होता है। इसी प्रकार काल गणना का क्रम आगे चलता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हिन्दू काल गणना]] | |||
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06:09, 20 फ़रवरी 2020 के समय का अवतरण
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- इस विषय से संबंधित लेख पढ़ें:- कला प्रांगण, कला कोश, संस्कृति प्रांगण, संस्कृति कोश, धर्म प्रांगण, धर्म कोश
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