"शाही बावड़ी, लखनऊ": अवतरणों में अंतर

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*शाही बावड़ी का निर्माण [[अवध]] के नवाब आसफ-उद-दौला द्वारा कराया गया था, जिसे मुसलमानों द्वारा प्रार्थना कक्ष के रूप में भी उपयोग किया जाता है।
*शाही बावड़ी का निर्माण [[अवध]] के नवाब आसफ-उद-दौला द्वारा कराया गया था, जिसे मुसलमानों द्वारा प्रार्थना कक्ष के रूप में भी उपयोग किया जाता है।
*इस बावड़ी को [[दिल्ली]] के [[मुग़ल]] वास्तुकार द्वारा डिजाइन किया गया था। इस स्टेप वेल की अनूठी [[वास्तुकला]] आगंतुकों को एक गुप्त दृश्य प्रदान करती है।<ref>{{cite web |url=https://hindi.holidayrider.com/12-famous-stepwells-in-india-in-hindi/ |title=भारत की 12 प्रसिद्ध और प्राचीन बावड़ीयां|accessmonthday=5 अक्टूबर|accessyear=2020 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=hindi.holidayrider.com |language=हिंदी}}</ref>
*इस बावड़ी को [[दिल्ली]] के [[मुग़ल]] वास्तुकार द्वारा डिजाइन किया गया था। इस स्टेप वेल की अनूठी [[वास्तुकला]] आगंतुकों को एक गुप्त दृश्य प्रदान करती है।<ref>{{cite web |url=https://hindi.holidayrider.com/12-famous-stepwells-in-india-in-hindi/ |title=भारत की 12 प्रसिद्ध और प्राचीन बावड़ीयां|accessmonthday=6 अक्टूबर|accessyear=2020 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=hindi.holidayrider.com |language=हिंदी}}</ref>


*शाही बावड़ी के निर्माण से पहले यहाँ एक कुआँ खोदा गया था, जिसका पानी बाद में बावड़ी और इसके आस-पास की इमारतों के निर्माण कार्य में प्रयोग हुआ।
*शाही बावड़ी के निर्माण से पहले यहाँ एक कुआँ खोदा गया था, जिसका पानी बाद में बावड़ी और इसके आस-पास की इमारतों के निर्माण कार्य में प्रयोग हुआ।

10:25, 6 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण

शाही बावड़ी, लखनऊ

शाही बावड़ी (अंग्रेज़ी: Shahi Baoli) भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में स्थित है। इंडो-इस्लामिक वास्तुशिल्प डिजाइनों में निर्मित यह बावली भारत की शानदार संरचनाओं में से एक है। इस बावड़ी की रूपरेखा किफायत-उल्लाह ने तैयार की थी, जो अपने दौर के एक मशहूर वास्तुकार थे।

  • शाही बावड़ी का निर्माण अवध के नवाब आसफ-उद-दौला द्वारा कराया गया था, जिसे मुसलमानों द्वारा प्रार्थना कक्ष के रूप में भी उपयोग किया जाता है।
  • इस बावड़ी को दिल्ली के मुग़ल वास्तुकार द्वारा डिजाइन किया गया था। इस स्टेप वेल की अनूठी वास्तुकला आगंतुकों को एक गुप्त दृश्य प्रदान करती है।[1]
  • शाही बावड़ी के निर्माण से पहले यहाँ एक कुआँ खोदा गया था, जिसका पानी बाद में बावड़ी और इसके आस-पास की इमारतों के निर्माण कार्य में प्रयोग हुआ।
  • सबसे पहले बावड़ी का निर्माण हुआ, फिर आसिफी मस्जिद का और आख़िर में बड़े इमामबाड़े का।
  • कुछ लोगों की धारणा थी कि बावड़ी में मौजूद कुआँ नीचे-नीचे गोमती नदी से जुड़ा हुआ था। जिस कारण कुएँ में हमेशा पानी रहता था। अगर कुआँ गहरा हो तो इसमें सदा ही पानी रहता है। हाँ, गोमती नदी के पास में ही होने के कारण रिसकर ज़रूर पानी आता होगा। लेकिन कुएँ के गोमती नदी से जुड़े होने वाली बात की पुष्टि नहीं हुई।
  • बावड़ी का प्रयोग पानी को संरक्षित करने के लिए किया जाता था ताकि विषम परिस्थितियों में इस संरक्षित जल को प्रयोग में लाया जा सके।
  • बावड़ी का निर्माण भी अकाल पीड़ित लोगों को रोज़गार देने के लिए किया गया था। इमामबाड़े के मुख्य भवन के पूर्व में स्थित ये बावड़ी पाँच मंज़िला विशाल इमारत थी, जिसकी तीन मंजिलें अब पूरी तरह से पानी में विलुप्त हो चुकी हैं। वर्तमान में इसके सिर्फ़ एक हिस्से की दो मंजिलें ही बची हैं।
  • शाही बावड़ी के प्रवेश द्वार से अंदर जाने पर सामने सीढ़ियाँ बनी हैं जो नीचे कुएँ तक जाती हैं। जबकि इन सीढ़ियों के बगल से जाने वाला मार्ग एक बहु-मंज़िला इमारत में जाता है जिसमें बहुत सी खिड़कियाँ और आपस में जुड़े हुए गलियारे हैं।[2]
  • इसकी एक विशेषता यह है कि आंतरिक भाग में दूसरी मंज़िल पर एक जगह से कुएँ के पानी में बावली के मुख्य द्वार पर खड़े व्यक्ति का प्रतिबिंब दिखाई देता है। जबकि बावली के द्वार पर खड़े व्यक्ति को आभास तक नहीं होता कि बावली के अंदर से कोई उसे देख रहा होगा। हालाँकि, पानी में होने वाली हलचल के कारण चेहरा तो साफ नहीं दिखाई देता पर अगर पानी स्थिर हो तो चेहरा भी देखा जा सकता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारत की 12 प्रसिद्ध और प्राचीन बावड़ीयां (हिंदी) hindi.holidayrider.com। अभिगमन तिथि: 6 अक्टूबर, 2020।
  2. लखनऊ की शानदार शाही बावली (हिंदी) omusafir.com। अभिगमन तिथि: 6 अक्टूबर, 2020।

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