"फरीदुद्दीन अत्तार": अवतरणों में अंतर
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'''अत्तार, फरीदुद्दीन अबू हामिद, शेख''', कुछ मतों के अनुसार फरीदुद्दीन अत्तार का जन्म फारस के निशापुर के एक गाँव में 1119 ई. में हुआ। यद्यपि ये व्यवसाय से इत्रफरोश और हकीम थे तथापि अपनी आध्यात्मिक और साहित्यिक उपलब्धियों के कारण इनकी गणना फारसी के तीन प्रमुखतम कवियों (सनाई, अत्तार और रूमी) तथा सूफियों में की जाती है। इन्होंने दमिश्क, मिस्र, तुर्किस्तान, भारतवर्ष आदि का विस्तृत भ्रमण किया था। इनकी मृत्यु चंगेज खाँ के फारस पर आक्रमण के समय 1229 ई. में एक सैनिक के हाथों हुई जो इनकी | '''अत्तार, फरीदुद्दीन अबू हामिद, शेख''', कुछ मतों के अनुसार फरीदुद्दीन अत्तार का जन्म फारस के निशापुर के एक गाँव में 1119 ई. में हुआ। यद्यपि ये व्यवसाय से इत्रफरोश और हकीम थे तथापि अपनी आध्यात्मिक और साहित्यिक उपलब्धियों के कारण इनकी गणना फारसी के तीन प्रमुखतम कवियों (सनाई, अत्तार और रूमी) तथा सूफियों में की जाती है। इन्होंने दमिश्क, मिस्र, तुर्किस्तान, भारतवर्ष आदि का विस्तृत भ्रमण किया था। इनकी मृत्यु चंगेज खाँ के फारस पर आक्रमण के समय 1229 ई. में एक सैनिक के हाथों हुई जो इनकी सूफ़ियाना प्रकृति से चिढ़ गया था। इनकी रचनाओं में चतुष्पदियों, चतुर्दशपदियों और द्विपदियों की अधिकता है। कहा जाता है, इन्होंने एक लाख बीस हजार पद (कप्लेट्स) लिखे। इनकी रचनाएँ हैं- तज़किरातुल-औलिया, पंदनामा, मंतिकुत्तैर, इलाहीनामा, दीवान-ए-अत्तार, कुल्लियात-ए-अत्तार आदि। मंतिकुत्तैर में पक्षियों की सभा का आध्यात्मिक रूपकात्मक वर्णन मिलता है जिसमें साधनात्मक एवं आध्यात्मिक रहस्यों का उद्घाटन किया गया है। काव्य, अध्यात्म और दर्शन (सूफी) का उच्च कोटि का समन्वय इनके काव्य में मिलता है। सरल, सुबोध, मधुर एवं स्पष्ट शैली के साथ विरोधाभास कथन की प्रकृति इनकी अपनी विशेषता है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=93 |url=}}</ref> | ||
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06:14, 10 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
अत्तार, फरीदुद्दीन अबू हामिद, शेख, कुछ मतों के अनुसार फरीदुद्दीन अत्तार का जन्म फारस के निशापुर के एक गाँव में 1119 ई. में हुआ। यद्यपि ये व्यवसाय से इत्रफरोश और हकीम थे तथापि अपनी आध्यात्मिक और साहित्यिक उपलब्धियों के कारण इनकी गणना फारसी के तीन प्रमुखतम कवियों (सनाई, अत्तार और रूमी) तथा सूफियों में की जाती है। इन्होंने दमिश्क, मिस्र, तुर्किस्तान, भारतवर्ष आदि का विस्तृत भ्रमण किया था। इनकी मृत्यु चंगेज खाँ के फारस पर आक्रमण के समय 1229 ई. में एक सैनिक के हाथों हुई जो इनकी सूफ़ियाना प्रकृति से चिढ़ गया था। इनकी रचनाओं में चतुष्पदियों, चतुर्दशपदियों और द्विपदियों की अधिकता है। कहा जाता है, इन्होंने एक लाख बीस हजार पद (कप्लेट्स) लिखे। इनकी रचनाएँ हैं- तज़किरातुल-औलिया, पंदनामा, मंतिकुत्तैर, इलाहीनामा, दीवान-ए-अत्तार, कुल्लियात-ए-अत्तार आदि। मंतिकुत्तैर में पक्षियों की सभा का आध्यात्मिक रूपकात्मक वर्णन मिलता है जिसमें साधनात्मक एवं आध्यात्मिक रहस्यों का उद्घाटन किया गया है। काव्य, अध्यात्म और दर्शन (सूफी) का उच्च कोटि का समन्वय इनके काव्य में मिलता है। सरल, सुबोध, मधुर एवं स्पष्ट शैली के साथ विरोधाभास कथन की प्रकृति इनकी अपनी विशेषता है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 93 |
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