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वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की शुरुआत से ही इसके साथ जुड़ गए और साल [[1885]] में पहले सत्र में शामिल होने वाले दो मुसलमानों में से वह एक थे। जनता की सेवाओं पर विचार करने के लिए कांग्रेस द्वारा बनी कमेटी के वह सदस्य बने।
[[1899]] में बनी कांग्रेस प्रबंधक कमेटी में [[बम्बई]] की तरफ से प्रतिनिधित्व करने वालों में रहीमतुल्ला एम. सयानी भी शामिल थे। साल [[1896]] में उन्होंने [[कलकत्ता]] में कांग्रेस के 12वें वार्षिक अधिवेशन की अध्यक्षता की। [[अध्यक्ष]] के रूप में उनके भाषण को पत्रिका द्वारा अब तक का सबसे बेहतरीन भाषण बताया गया, इस भाषण में उन्होंने [[भारत]] में [[ब्रिटिश साम्राज्य]] के आर्थिक और मौद्रिक पहलुओं की और ध्यान दिलाया। सयानी ने [[मुसलमान|मुसलमानों]] से [[कांग्रेस]] में शामिल होने की अपील की, उनके मुताबिक कांग्रेस उन सब का प्रतिनिधित्व करती है जो वफादार, देशभक्ति प्रबुद्ध, प्रभावशाली, प्रगतिशील और उदासीन हैं  जिन मुसलमानों ने [[कांग्रेस]] में शामिल होने पर आपत्ति जताई, सयानी ने बिन्दुवार उनकी आपत्तियों का खंडन किया। पश्चिमी शिक्षा के समर्थक, सयानी ने इसे मुसलमानों के लिए बेहद जरुरी बताया।<ref name="aa"/>
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10:07, 11 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

रहीमतुल्ला सयानी
रहीमतुल्ला सयानी
रहीमतुल्ला सयानी
पूरा नाम रहीमतुल्ला मोहम्मद सयानी
जन्म 5 अप्रॅल, 1847
जन्म भूमि कुटच
मृत्यु 6 जून, 1902
नागरिकता भारतीय
पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
अन्य जानकारी अध्यक्ष के रूप में उनके भाषण को पत्रिका द्वारा अब तक का सबसे बेहतरीन भाषण बताया गया, इस भाषण में उन्होंने भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के आर्थिक और मौद्रिक पहलुओं की और ध्यान दिलाया।
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रहीमतुल्ला सयानी (अंग्रेज़ी: Rahimtulla Sayani, जन्म: 5 अप्रॅल, 1847, कुटच; मृत्यु: 6 जून, 1902) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष थे।[1]

संक्षप्ति परिचय

रहीमतुल्ला सयानी का पूरा नाम रहीमतुल्ला मोहम्मद सयानी है। इनका जन्म 5 अप्रॅल 1847 को कुटच में हुआ था। यह खोजा मुस्लिम परिवार से ताल्लुक रखते थे, जो आगा खान के शिष्यत्व से ओतप्रोत थे। कड़ी मेहनत और लगन के दम पर उन्होंने सार्वजनिक श्रेष्ठता और कानून के पेशे में पेशेवर उत्कृष्टता हासिल की। उन्होंने 1876 में अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत बम्बई नगर निगम के निर्वाचित सदस्य के रूप मे की, और वह 1888 में निगम के अध्यक्ष भी चुने गए और 1885 में वह बम्बई के फौजदार भी बने। उन्होंने विधायक के रूप में लंबे समय तक काम किया। वह बम्बई विधान परिषद के सदस्य भी चुने गए ( 1880 से 1890 और 1894 से 1896) और वह इम्पीरीयल लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य भी चुने गए (1896 से 1898)। उन्हें सरकार द्वारा खोजा समुदाय के अंतर्राज्यीय और वसीयती उत्तराधिकार कानूनों पर विचार करने के लिए बनाए गए आयोग का सदस्य नियुक्त किया गया।[1]

राजनैतिक सफर

वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की शुरुआत से ही इसके साथ जुड़ गए और साल 1885 में पहले सत्र में शामिल होने वाले दो मुसलमानों में से वह एक थे। जनता की सेवाओं पर विचार करने के लिए कांग्रेस द्वारा बनी कमेटी के वह सदस्य बने। 1899 में बनी कांग्रेस प्रबंधक कमेटी में बम्बई की तरफ से प्रतिनिधित्व करने वालों में रहीमतुल्ला एम. सयानी भी शामिल थे। साल 1896 में उन्होंने कलकत्ता में कांग्रेस के 12वें वार्षिक अधिवेशन की अध्यक्षता की। अध्यक्ष के रूप में उनके भाषण को पत्रिका द्वारा अब तक का सबसे बेहतरीन भाषण बताया गया, इस भाषण में उन्होंने भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के आर्थिक और मौद्रिक पहलुओं की और ध्यान दिलाया। सयानी ने मुसलमानों से कांग्रेस में शामिल होने की अपील की, उनके मुताबिक़ कांग्रेस उन सब का प्रतिनिधित्व करती है जो वफादार, देशभक्ति प्रबुद्ध, प्रभावशाली, प्रगतिशील और उदासीन हैं जिन मुसलमानों ने कांग्रेस में शामिल होने पर आपत्ति जताई, सयानी ने बिन्दुवार उनकी आपत्तियों का खंडन किया। पश्चिमी शिक्षा के समर्थक, सयानी ने इसे मुसलमानों के लिए बेहद जरुरी बताया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 रहीमतुल्ला एम सयानी (हिन्दी) indian National Congress। अभिगमन तिथि: 4 जून, 2017

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख