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1. हिस्सा, भाग, टुकड़ा; सकृदंशो निपतति | 1. हिस्सा, भाग, टुकड़ा; सकृदंशो निपतति<ref>[[मनुस्मृति]] 9/47 [[रघुवंश महाकाव्य|रघुवंश]] 8/16</ref>-अंशेन दर्शितानुकूलता<ref>कादम्बरी 159</ref> अंशतः; | ||
2 संपत्ति में हिस्सा, दाय स्वतोंशतः | 2 संपत्ति में हिस्सा, दाय स्वतोंशतः<ref>[[मनुस्मृति]] 8/408, 9/201; याज्ञवल्क्यस्मृति 2/115</ref>; | ||
3. भिन्न में ऊपर की संख्या; कभी-कभी भिन्न के लिए भी प्रयुक्त | 3. भिन्न में ऊपर की संख्या; कभी-कभी भिन्न के लिए भी प्रयुक्त | ||
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'''अंशि''' (क्रिया विशेषण) हिस्सेदार; | '''अंशि''' (क्रिया विशेषण) हिस्सेदार; | ||
'''अवतरणम्''' - '''अवतारः'''- [[पृथ्वी]] पर देवताओं के अंश को लेकर जन्म लेना, आंशिक [[अवतार]], 'तार इव धर्मस्य | '''अवतरणम्''' - '''अवतारः'''- [[पृथ्वी]] पर देवताओं के अंश को लेकर जन्म लेना, आंशिक [[अवतार]], 'तार इव धर्मस्य<ref>दश. 153</ref>; [[महाभारत]] के आदिपर्व के 64-67 तक अध्याय; | ||
'''कल्पना''' ([[स्त्रीलिंग]]),'''- प्रकल्पना''' ([[स्त्रीलिंग]])-'''प्रदान''' (न.) किसी भाग का बंटवारा या देना। | '''कल्पना''' ([[स्त्रीलिंग]]),'''- प्रकल्पना''' ([[स्त्रीलिंग]])-'''प्रदान''' (न.) किसी भाग का बंटवारा या देना। | ||
'''भाजू''', '''हर''', '''हारिन्''' ([[विशेषण]]) उत्तराधिकारी, सहदायभागी-पिण्डदोंशहर- श्चैषां पूर्वाभावे परः परः | '''भाजू''', '''हर''', '''हारिन्''' ([[विशेषण]]) उत्तराधिकारी, सहदायभागी-पिण्डदोंशहर- श्चैषां पूर्वाभावे परः परः<ref>याज्ञवल्क्य स्मृति 2/132-133</ref>- | ||
'''सवर्णनम्''' -भिन्नों को एक समान हर में लाना; | '''सवर्णनम्''' -भिन्नों को एक समान हर में लाना; | ||
'''स्वरः''' मुख्य स्वर, मूलस्वर ।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश|लेखक=वामन शिवराम आप्टे|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=02|url=|ISBN=}}</ref> | '''स्वरः''' मुख्य स्वर, मूलस्वर ।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश|लेखक=वामन शिवराम आप्टे|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=02|url=|ISBN=}}</ref> | ||
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11:26, 11 मई 2024 के समय का अवतरण
अंशः (पुल्लिंग) [अंश्+अच]
1. हिस्सा, भाग, टुकड़ा; सकृदंशो निपतति[1]-अंशेन दर्शितानुकूलता[2] अंशतः;
2 संपत्ति में हिस्सा, दाय स्वतोंशतः[3];
3. भिन्न में ऊपर की संख्या; कभी-कभी भिन्न के लिए भी प्रयुक्त
4. अक्षांश या रेखांश की कोटि
5. कंधा (सामान्यतः 'कंधे' के अर्थ में, ‘अंस' का प्रयोग होता है दे.)
6. वृत्त की परिधि का 360वां हिस्सा।
समस्त पद-अंशः अंशावतार, हिस्से का हिस्सा;
अंशि (क्रिया विशेषण) हिस्सेदार;
अवतरणम् - अवतारः- पृथ्वी पर देवताओं के अंश को लेकर जन्म लेना, आंशिक अवतार, 'तार इव धर्मस्य[4]; महाभारत के आदिपर्व के 64-67 तक अध्याय;
कल्पना (स्त्रीलिंग),- प्रकल्पना (स्त्रीलिंग)-प्रदान (न.) किसी भाग का बंटवारा या देना।
भाजू, हर, हारिन् (विशेषण) उत्तराधिकारी, सहदायभागी-पिण्डदोंशहर- श्चैषां पूर्वाभावे परः परः[5]-
सवर्णनम् -भिन्नों को एक समान हर में लाना;
स्वरः मुख्य स्वर, मूलस्वर ।[6]
इन्हें भी देखें: संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेताक्षर सूची) एवं संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेत सूची)
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख