"अघासुर का वध": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
छो (1 अवतरण) |
No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
==अघासुर का वध / Aghasur Ka Vadh== | ==अघासुर का वध / Aghasur Ka Vadh== | ||
पंक्ति 8: | पंक्ति 7: | ||
*कृष्ण इसी प्रकार [[वृन्दावन]] में गाएं चराते, बाल-लीलाएं करते और कंस द्वारा भेजे हुए राक्षसों को मारकर ग्वाल-बालों की रक्षा किया करते थे। | *कृष्ण इसी प्रकार [[वृन्दावन]] में गाएं चराते, बाल-लीलाएं करते और कंस द्वारा भेजे हुए राक्षसों को मारकर ग्वाल-बालों की रक्षा किया करते थे। | ||
==अन्य लिंक== | |||
{{कथा}} | |||
[[Category:कथा साहित्य कोश]] | [[Category:कथा साहित्य कोश]] | ||
[[Category:कथा साहित्य]] | [[Category:कथा साहित्य]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
09:39, 27 मार्च 2010 का अवतरण
अघासुर का वध / Aghasur Ka Vadh
- कंस ने दैत्यों में अघासुर बड़ा भयानक था। वह वेश बदलने में दक्ष तो था ही, बड़ा शूरवीर और मायावी भी था। कंस ने कृष्ण को हानि पहुंचाने के लिए बकासुर के पश्चात अघासुर को भेजा। दोपहर के पहले का समय था। गाएं चर रहीं थीं। ग्वाल-बाल इधर-उधर घूम रहे थे। बाल कृष्ण चरती गायों को बड़े ध्यान से देख रहे थे। बालकृष्ण यह जानकर चकित हो उठे कि उनके ग्वाल बालों में कोई भी नहीं दिखाई पड़ रहा है। गौए रह-रहकर हुंकार रही हैं। बाल-कृष्ण विस्मित होकर आगे बढ़े। वे ग्वाल-बालों को पुकारने लगे, उन्हें खोजने लगे किंतु न तो उन्हें उत्तर मिला, न कोई ग्वाल-बाल दिखाई पड़ा। श्रीकृष्ण चिंतित होकर सोचने लगे, आख़िर सब गए तो कहां गए? कोई उत्तर क्यों नहीं दे रहा है?
- श्रीकृष्ण कुछ और आगे बढ़े। उन्होंने आगे जाकर जो कुछ देखा, उससे उनके आश्चर्य की सीमा नहीं रही। एक भयानक अजगर मार्ग में पड़ा हुआ था, जो जोर-जोर से सांसें ले रहा था। वह कृष्ण को देखते ही और भी जोर-जोर से सांसें लेने लगा। वह अजगर नहीं, अजगर के रूप में अघासुर था। उसी ने अपनी सांसों द्वारा ग्वाल-बालों को अपने पेट के अंदर खींच लिया था। उसने सोचा था, वह कृष्ण को भी अपनी सांसों द्वारा अपने पेट के अंदर खीच लेगा, उसे क्या पता था कि जो कृष्ण सारे ब्रह्माण्ड को अपनी ओर खींच लेते हैं, उन्हें कौन खींच सकता है?
- अजगर के रूप में पड़े हुए अघासुर को देखते ही कृष्ण पहचान गए, वह अजगर नहीं, कोई दैत्य है और इसी ने अपनी सांसों द्वारा ग्वाल-बालों को अपने पेट में खींच लिया है। वे सावधान हो गए। उधर, अजगर कृष्ण को खींचने के लिए जोर-जोर से सांसे ले रहा था। कृष्ण अपने आप ही अजगर के मुख के पास जा पहुंचे। उन्होंने दोनों हाथों से अजगर का मुख पकड़कर उसे फाड़ डाला। वे अपने आप ही उसके बहुत बड़े पेट के भीतर घुसकर अपने शरीर का विस्तार किया। इतना विस्तार किया कि अजगर का पेट फट गया। उसके पेट के भीतर से सभी ग्वाल-बाल सकुशल बाहर निकल आए।
- ग्वाल-बालों ने सायंकाल बस्ती में आकर अपने माता-पिता को बताया, किस तरह श्रीकृष्ण ने अजगर से उनकी रक्षा की। नंद, यशोदा और बस्ती के सभी गोप तथा गोपियां कृष्ण की बलैयां लेने लगे, उनके शौर्य की प्रशंसा करने लगे। साथ ही ईश्वर को धन्यवाद देने लगे के ईश्वर की कृपा से कन्हैया का बाल तक बांका नहीं हुआ।
- कृष्ण इसी प्रकार वृन्दावन में गाएं चराते, बाल-लीलाएं करते और कंस द्वारा भेजे हुए राक्षसों को मारकर ग्वाल-बालों की रक्षा किया करते थे।