"इल्तुतमिश": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
छो (Text replace - " भारत " to " भारत ")
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
इल्तुतमिश [[दिल्ली]] का सुल्तान (1211-36 ई.) था। आरम्भ में वह दिल्ली के पहले सुल्तान [[कुतुबुद्दीन ऐबक]] का ग़ुलाम था। योग्यता के कारण वह मालिक का प्यारा बन गया। उसने उसे ग़ुलामी से मुक्त कर दिया और अपनी लड़की की शादी करके उसे [[बदायूं]] का हाकिम बना दिया। चौगान खेलते समय 1210 ई0 में घोड़े से गिरने के कारण ऐबक की मृत्यु हो गई। कुतुबुद्दीन की मृत्यु के एक साल बाद वह उसके उत्तराधिकारी [[आरामशाह]] को हराने के बाद दिल्ली की गद्दी पर बैठा। इस प्रकार आरम्भ से ही पिता की मृत्यु के बाद उसके पुत्र के सिंहासनाधिकार की प्रथा को धक्का लगा।  
इल्तुतमिश [[दिल्ली]] का सुल्तान (1211-36 ई.) था। आरम्भ में वह दिल्ली के पहले सुल्तान [[कुतुबुद्दीन ऐबक]] का ग़ुलाम था। योग्यता के कारण वह मालिक का प्यारा बन गया। उसने उसे ग़ुलामी से मुक्त कर दिया और अपनी लड़की की शादी करके उसे [[बदायूं]] का हाकिम बना दिया। चौगान खेलते समय 1210 ई0 में घोड़े से गिरने के कारण ऐबक की मृत्यु हो गई। कुतुबुद्दीन की मृत्यु के एक साल बाद वह उसके उत्तराधिकारी [[आरामशाह]] को हराने के बाद दिल्ली की गद्दी पर बैठा। इस प्रकार आरम्भ से ही पिता की मृत्यु के बाद उसके पुत्र के सिंहासनाधिकार की प्रथा को धक्का लगा।  
==वास्तविक संस्थापक==
==वास्तविक संस्थापक==
इल्तुतमिश (1211-36) को उत्तर भारत में तुर्कों के राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जा सकता है। उसके सिंहासन पर बैठने के समय 'अली मर्दन ख़ाँ' ने बंगाल और बिहार तथा ऐबक के एक और ग़ुलाम, 'कुबाचा' ने, मुल्तान के स्वतंत्र शासकों के रूप में घोषणा कर दी थी। कुबाचा ने [[लाहौर]] तथा [[पंजाब]] के कुछ हिस्सों पर अपना अधिकार भी कर लिया। पहले पहल दिल्ली के निकट भी अल्तमश के कुछ सहकारी अधिकारी उसकी प्रभुता स्वीकार करने में हिचकिचा रहे थे। राजपूतों ने भी स्थिति का लाभ उठाकर अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दीं। इस प्रकार [[कालिंजर]], [[ग्वालियर]] तथा [[अजमेर]] और [[बयाना]] सहित सारे पूर्वी [[राजस्थान]] ने तुर्की बोझ अपने कन्धों से उतार फेंका।  
इल्तुतमिश (1211-36) को उत्तर [[भारत]] में तुर्कों के राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जा सकता है। उसके सिंहासन पर बैठने के समय 'अली मर्दन ख़ाँ' ने बंगाल और बिहार तथा ऐबक के एक और ग़ुलाम, 'कुबाचा' ने, मुल्तान के स्वतंत्र शासकों के रूप में घोषणा कर दी थी। कुबाचा ने [[लाहौर]] तथा [[पंजाब]] के कुछ हिस्सों पर अपना अधिकार भी कर लिया। पहले पहल दिल्ली के निकट भी अल्तमश के कुछ सहकारी अधिकारी उसकी प्रभुता स्वीकार करने में हिचकिचा रहे थे। राजपूतों ने भी स्थिति का लाभ उठाकर अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दीं। इस प्रकार [[कालिंजर]], [[ग्वालियर]] तथा [[अजमेर]] और [[बयाना]] सहित सारे पूर्वी [[राजस्थान]] ने तुर्की बोझ अपने कन्धों से उतार फेंका।  
==राज्य का विस्तार==
==राज्य का विस्तार==
अपने शासन के प्रारम्भिक वर्षों में अल्तमश ने अपना ध्यान उत्तर-पश्चिम की ओर लगाया। 'ख्वारिज़म शाह' की ग़ज़नी विजय से उसकी स्थिति को नया ख़तरा पैदा हो गया था। ख्वारिज़म साम्राज्य मध्य एशिया में अपने समय का सबसे शक्तिशाली साम्राज्य था और उसकी पूर्वी सीमा [[सिन्धु नदी]] को छूती थी। इस ख़तरे को समाप्त करने के लिए अल्तमश ने लाहौर पर अपना क़ब्ज़ा कर लिया। मंगोलों ने 1220 ई0 में ख्वारिज़मी साम्राज्य को समाप्त कर इतिहास के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य में गिने जाने वाले साम्राज्य की नींव डाली, जो अपने चरमोत्कर्ष में [[चीन]] से लेकर [[भूमध्य सागर]] तथा कास्पियन समुद्र से लेकर जक्सारटेस नदी तक फैला हुआ था। जब 'मंगोल' कहीं और व्यस्त थे, अल्तमश ने मुल्तान और उच्छ से कुबाचा को उखाड़ फैंका। इस प्रकार [[दिल्ली सल्तनत]] की सीमा एक बार फिर सिन्धु तक पहुँच गई।  
अपने शासन के प्रारम्भिक वर्षों में अल्तमश ने अपना ध्यान उत्तर-पश्चिम की ओर लगाया। 'ख्वारिज़म शाह' की ग़ज़नी विजय से उसकी स्थिति को नया ख़तरा पैदा हो गया था। ख्वारिज़म साम्राज्य मध्य एशिया में अपने समय का सबसे शक्तिशाली साम्राज्य था और उसकी पूर्वी सीमा [[सिन्धु नदी]] को छूती थी। इस ख़तरे को समाप्त करने के लिए अल्तमश ने लाहौर पर अपना क़ब्ज़ा कर लिया। मंगोलों ने 1220 ई0 में ख्वारिज़मी साम्राज्य को समाप्त कर इतिहास के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य में गिने जाने वाले साम्राज्य की नींव डाली, जो अपने चरमोत्कर्ष में [[चीन]] से लेकर [[भूमध्य सागर]] तथा कास्पियन समुद्र से लेकर जक्सारटेस नदी तक फैला हुआ था। जब 'मंगोल' कहीं और व्यस्त थे, अल्तमश ने मुल्तान और उच्छ से कुबाचा को उखाड़ फैंका। इस प्रकार [[दिल्ली सल्तनत]] की सीमा एक बार फिर सिन्धु तक पहुँच गई।  
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
इसी समय अल्तमश ने [[ग्वालियर]], बयाना, अजमेर तथा नागौर को भी वापस अपने क़ब्ज़े में करने के लिए क़दम उठाए। इस प्रकार उसने पूर्वी राजस्थान को अपने अधीन कर लिया। उसने [[रणथंभौर]] और [[जालौर]] पर भी विजय प्राप्त की, लेकिन [[चित्तौड़]] के निकट [[नागदा]] तथा [[गुजरात]] के [[चालुक्य वंश|चालुक्यों]] के विरुद्ध अपने अभियानों में वह सफल नहीं हो सका।
इसी समय अल्तमश ने [[ग्वालियर]], बयाना, अजमेर तथा नागौर को भी वापस अपने क़ब्ज़े में करने के लिए क़दम उठाए। इस प्रकार उसने पूर्वी राजस्थान को अपने अधीन कर लिया। उसने [[रणथंभौर]] और [[जालौर]] पर भी विजय प्राप्त की, लेकिन [[चित्तौड़]] के निकट [[नागदा]] तथा [[गुजरात]] के [[चालुक्य वंश|चालुक्यों]] के विरुद्ध अपने अभियानों में वह सफल नहीं हो सका।
==योग्य शासक==
==योग्य शासक==
इल्तुतमिश बहुत ही योग्य शासक सिद्ध हुआ। उसने असंतुष्ट मुसलमान सरदारों की बगावत कुचल दी। उसने अपने तीन शक्तिशाली प्रतिद्वन्द्वियों—[[पंजाब]] के एलदोज, [[सिंध प्रांत|सिंध]] के कुबाचा तथा [[पश्चिम बंगाल|बंगाल]] के अली मर्दान ख़ाँ को भी पराजित किया। उसने [[रणथंभौर]] और [[ग्वालियर]] को हिन्दुओं से छीन लिया। सुल्तान आराम के निर्बल शासनकाल में हिन्दुओं ने इन दोनों स्थानों को फिरे से जीत लिया था। उसने [[भिलता]] और [[उज्जैन]] सहित [[मालवा]] को भी जीत लिया। उसके शासन काल में मंगोलो खूंखार नेता [[चंगेज़ ख़ाँ]] खीवा के शाह जलालुद्दीन का पीछा करता हुआ [[भारत]] की सीमाओं तक आ पहुँचा और उसने भारत पर हमला करने की धमकी दी। इल्तुतमिश ने विनम्र रीति से भगोड़े शाह जलालुद्दीन को शरण देने से इन्कार करके इस आफत से पीछा छुड़ाया। इल्तुतमिश को बगदाद के ख़लीफ़ा से खिलअत प्राप्त हुई थी। इससे दिल्ली की सल्तनत पर उसके अधिकार की धार्मिक पुष्टि हो गयी। उसने चाँदी के सिक्के ढालने की अच्छी व्यवस्था की जो बाद के सुल्तानों के लिए आदर्श सिद्ध हुई। उसने 1232 ई. में मुस्लिम संत ख्वाजा कुतुबुद्दीन के सम्मान में प्रसिद्ध [[कुतुबमीनार]] का निर्माण कराया। एक साहसी योद्धा और योग्य प्रशासक के रूप में इल्तुतमिश को दिल्ली के प्रारम्भिक सुल्तानों में सबसे महान कहा जा सकता है।
इल्तुतमिश बहुत ही योग्य शासक सिद्ध हुआ। उसने असंतुष्ट मुसलमान सरदारों की बगावत कुचल दी। उसने अपने तीन शक्तिशाली प्रतिद्वन्द्वियों—[[पंजाब]] के एलदोज, [[सिंध प्रांत|सिंध]] के कुबाचा तथा [[पश्चिम बंगाल|बंगाल]] के अली मर्दान ख़ाँ को भी पराजित किया। उसने [[रणथंभौर]] और [[ग्वालियर]] को हिन्दुओं से छीन लिया। सुल्तान आराम के निर्बल शासनकाल में हिन्दुओं ने इन दोनों स्थानों को फिरे से जीत लिया था। उसने [[भिलता]] और [[उज्जैन]] सहित [[मालवा]] को भी जीत लिया। उसके शासन काल में मंगोलो खूंखार नेता [[चंगेज़ ख़ाँ]] खीवा के शाह जलालुद्दीन का पीछा करता हुआ [[भारत]] की सीमाओं तक आ पहुँचा और उसने [[भारत]] पर हमला करने की धमकी दी। इल्तुतमिश ने विनम्र रीति से भगोड़े शाह जलालुद्दीन को शरण देने से इन्कार करके इस आफत से पीछा छुड़ाया। इल्तुतमिश को बगदाद के ख़लीफ़ा से खिलअत प्राप्त हुई थी। इससे दिल्ली की सल्तनत पर उसके अधिकार की धार्मिक पुष्टि हो गयी। उसने चाँदी के सिक्के ढालने की अच्छी व्यवस्था की जो बाद के सुल्तानों के लिए आदर्श सिद्ध हुई। उसने 1232 ई. में मुस्लिम संत ख्वाजा कुतुबुद्दीन के सम्मान में प्रसिद्ध [[कुतुबमीनार]] का निर्माण कराया। एक साहसी योद्धा और योग्य प्रशासक के रूप में इल्तुतमिश को दिल्ली के प्रारम्भिक सुल्तानों में सबसे महान कहा जा सकता है।


   
   

09:37, 20 सितम्बर 2010 का अवतरण

इल्तुतमिश दिल्ली का सुल्तान (1211-36 ई.) था। आरम्भ में वह दिल्ली के पहले सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक का ग़ुलाम था। योग्यता के कारण वह मालिक का प्यारा बन गया। उसने उसे ग़ुलामी से मुक्त कर दिया और अपनी लड़की की शादी करके उसे बदायूं का हाकिम बना दिया। चौगान खेलते समय 1210 ई0 में घोड़े से गिरने के कारण ऐबक की मृत्यु हो गई। कुतुबुद्दीन की मृत्यु के एक साल बाद वह उसके उत्तराधिकारी आरामशाह को हराने के बाद दिल्ली की गद्दी पर बैठा। इस प्रकार आरम्भ से ही पिता की मृत्यु के बाद उसके पुत्र के सिंहासनाधिकार की प्रथा को धक्का लगा।

वास्तविक संस्थापक

इल्तुतमिश (1211-36) को उत्तर भारत में तुर्कों के राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जा सकता है। उसके सिंहासन पर बैठने के समय 'अली मर्दन ख़ाँ' ने बंगाल और बिहार तथा ऐबक के एक और ग़ुलाम, 'कुबाचा' ने, मुल्तान के स्वतंत्र शासकों के रूप में घोषणा कर दी थी। कुबाचा ने लाहौर तथा पंजाब के कुछ हिस्सों पर अपना अधिकार भी कर लिया। पहले पहल दिल्ली के निकट भी अल्तमश के कुछ सहकारी अधिकारी उसकी प्रभुता स्वीकार करने में हिचकिचा रहे थे। राजपूतों ने भी स्थिति का लाभ उठाकर अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दीं। इस प्रकार कालिंजर, ग्वालियर तथा अजमेर और बयाना सहित सारे पूर्वी राजस्थान ने तुर्की बोझ अपने कन्धों से उतार फेंका।

राज्य का विस्तार

अपने शासन के प्रारम्भिक वर्षों में अल्तमश ने अपना ध्यान उत्तर-पश्चिम की ओर लगाया। 'ख्वारिज़म शाह' की ग़ज़नी विजय से उसकी स्थिति को नया ख़तरा पैदा हो गया था। ख्वारिज़म साम्राज्य मध्य एशिया में अपने समय का सबसे शक्तिशाली साम्राज्य था और उसकी पूर्वी सीमा सिन्धु नदी को छूती थी। इस ख़तरे को समाप्त करने के लिए अल्तमश ने लाहौर पर अपना क़ब्ज़ा कर लिया। मंगोलों ने 1220 ई0 में ख्वारिज़मी साम्राज्य को समाप्त कर इतिहास के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य में गिने जाने वाले साम्राज्य की नींव डाली, जो अपने चरमोत्कर्ष में चीन से लेकर भूमध्य सागर तथा कास्पियन समुद्र से लेकर जक्सारटेस नदी तक फैला हुआ था। जब 'मंगोल' कहीं और व्यस्त थे, अल्तमश ने मुल्तान और उच्छ से कुबाचा को उखाड़ फैंका। इस प्रकार दिल्ली सल्तनत की सीमा एक बार फिर सिन्धु तक पहुँच गई।

पश्चिम में अपनी स्थिति मज़बूत कर अल्तमश ने अन्य क्षेत्रों की ओर ध्यान दिया। बंगाल और बिहार में 'इवाज़' नाम के एक व्यक्ति ने 'सु्ल्तान ग़ियासुद्दीन' की पदवी ग्रहण कर अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी। वह कुशल तथा उदार प्रशासक था और उसने सार्वजनिक लाभ के लिए कई चीज़ों का निर्माण किया। यद्यपि उसने अपने पड़ोसी राज्यों के क्षेत्रों पर चढ़ाई की, तथापि पूर्व बंगाल में सेन तथा उड़ीसा और कामरूप (असम) में हिन्दू राजाओं का प्रभाव बना रहा। इवाज़, अल्तमश के लड़के द्वारा 1226-27 में लखनौती के निकट एक युद्ध में पराजित हुआ। बंगाल और बिहार एक बार फिर दिल्ली के अधीन हो गए, पर इन क्षेत्रों पर शासन क़ायम रखना आसान नहीं था और इन्होंने दिल्ली को बार-बार चुनौती दी।

इसी समय अल्तमश ने ग्वालियर, बयाना, अजमेर तथा नागौर को भी वापस अपने क़ब्ज़े में करने के लिए क़दम उठाए। इस प्रकार उसने पूर्वी राजस्थान को अपने अधीन कर लिया। उसने रणथंभौर और जालौर पर भी विजय प्राप्त की, लेकिन चित्तौड़ के निकट नागदा तथा गुजरात के चालुक्यों के विरुद्ध अपने अभियानों में वह सफल नहीं हो सका।

योग्य शासक

इल्तुतमिश बहुत ही योग्य शासक सिद्ध हुआ। उसने असंतुष्ट मुसलमान सरदारों की बगावत कुचल दी। उसने अपने तीन शक्तिशाली प्रतिद्वन्द्वियों—पंजाब के एलदोज, सिंध के कुबाचा तथा बंगाल के अली मर्दान ख़ाँ को भी पराजित किया। उसने रणथंभौर और ग्वालियर को हिन्दुओं से छीन लिया। सुल्तान आराम के निर्बल शासनकाल में हिन्दुओं ने इन दोनों स्थानों को फिरे से जीत लिया था। उसने भिलता और उज्जैन सहित मालवा को भी जीत लिया। उसके शासन काल में मंगोलो खूंखार नेता चंगेज़ ख़ाँ खीवा के शाह जलालुद्दीन का पीछा करता हुआ भारत की सीमाओं तक आ पहुँचा और उसने भारत पर हमला करने की धमकी दी। इल्तुतमिश ने विनम्र रीति से भगोड़े शाह जलालुद्दीन को शरण देने से इन्कार करके इस आफत से पीछा छुड़ाया। इल्तुतमिश को बगदाद के ख़लीफ़ा से खिलअत प्राप्त हुई थी। इससे दिल्ली की सल्तनत पर उसके अधिकार की धार्मिक पुष्टि हो गयी। उसने चाँदी के सिक्के ढालने की अच्छी व्यवस्था की जो बाद के सुल्तानों के लिए आदर्श सिद्ध हुई। उसने 1232 ई. में मुस्लिम संत ख्वाजा कुतुबुद्दीन के सम्मान में प्रसिद्ध कुतुबमीनार का निर्माण कराया। एक साहसी योद्धा और योग्य प्रशासक के रूप में इल्तुतमिश को दिल्ली के प्रारम्भिक सुल्तानों में सबसे महान कहा जा सकता है।