"बाँसुरी": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - " भारत " to " भारत ") |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
*प्राचीनकाल में [[लोक संगीत]] का प्रमुख वाद्य था बाँसुरी। | *प्राचीनकाल में [[लोक संगीत]] का प्रमुख वाद्य था बाँसुरी। | ||
*मुरली और श्री [[कृष्ण]] एक दूसरे के पर्याय रहे हैं । मुरली के बिना श्री कृष्ण की कल्पना भी नहीं की जा सकती । उनकी मुरली के नाद रूपी ब्रह्म ने सम्पूर्ण चराचर सृष्टि को आलोकित और सम्मोहित किया । | *मुरली और श्री [[कृष्ण]] एक दूसरे के पर्याय रहे हैं । मुरली के बिना श्री कृष्ण की कल्पना भी नहीं की जा सकती । उनकी मुरली के नाद रूपी ब्रह्म ने सम्पूर्ण चराचर सृष्टि को आलोकित और सम्मोहित किया । | ||
*कृष्ण के बाद भी भारत में बाँसुरी रही, पर कुछ खोयी खोयी सी, मौन सी। मानो श्री कृष्ण की याद में उसने स्वयं को भुला दिया हो, उसका अस्तित्व तो भारत वर्ष में सदैव रहा। | *कृष्ण के बाद भी [[भारत]] में बाँसुरी रही, पर कुछ खोयी खोयी सी, मौन सी। मानो श्री कृष्ण की याद में उसने स्वयं को भुला दिया हो, उसका अस्तित्व तो [[भारत]] वर्ष में सदैव रहा। | ||
*वह कृष्ण प्रिया थी, किंतु श्री हरी के विरह में जो हाल उनके गोप गोपिकाओ का हुआ कुछ वैसा ही बाँसुरी का भी हुआ। | *वह कृष्ण प्रिया थी, किंतु श्री हरी के विरह में जो हाल उनके गोप गोपिकाओ का हुआ कुछ वैसा ही बाँसुरी का भी हुआ। | ||
*युग बदल गए, बाँसुरी की अवस्था जस की तस रही, युगों बाद में [[पंडित पन्नालाल घोष]] जी ने अपने अथक परिश्रम से बांसुरी वाद्य में अनेक परिवर्तन कर, उसकी वादन शैली में परिवर्तन कर बाँसुरी को पुनः भारतीय संगीत में सम्माननीय स्थान दिलाया। लेकिन उनके बाद पुनः: बाँसुरी एकाकी हो गई । | *युग बदल गए, बाँसुरी की अवस्था जस की तस रही, युगों बाद में [[पंडित पन्नालाल घोष]] जी ने अपने अथक परिश्रम से बांसुरी वाद्य में अनेक परिवर्तन कर, उसकी वादन शैली में परिवर्तन कर बाँसुरी को पुनः भारतीय संगीत में सम्माननीय स्थान दिलाया। लेकिन उनके बाद पुनः: बाँसुरी एकाकी हो गई । |
09:45, 20 सितम्बर 2010 का अवतरण
- बांसुरी अत्यंत लोकप्रिय सुषिर वाद्य यंत्र माना जाता है, क्योंकि यह प्राकृतिक बांस से बनायी जाती है, इसलिये लोग उसे बांस बांसुरी भी कहते हैं।
- बांसुरी बनाने की प्रक्रिया काफ़ी कठिन नहीं है, सब से पहले बांसुरी के अंदर के गांठों को हटाया जाता है, फिर उस के शरीर पर कुल सात छेद खोदे जाते हैं। सब से पहला छेद मुंह से फूंकने के लिये छोड़ा जाता है, बाक़ी छेद अलग अलग आवाज निकले का काम देते हैं।
- बांसुरी की अभिव्यक्त शक्ति अत्यंत विविधतापूर्ण है, उस से लम्बे, ऊंचे, चंचल, तेज व भारी प्रकारों के सूक्ष्म भाविक मधुर संगीत बजाया जाता है। लेकिन इतना ही नहीं, वह विभिन्न प्राकृतिक आवाजों की नक़ल करने में निपुण है, मिसाल के लिये उससे नाना प्रकार के पक्षियों की आवाज की हू-ब-हू नक्ल की जा सकती है।
- बांसुरी की बजाने की तकनीक कलाएं समृद्ध ही नहीं, उस की किस्में भी विविधतापूर्ण हैं, जैसे मोटी लम्बी बांसुरी, पतली नाटी बांसुरी, सात छेदों वाली बांसुरी और ग्यारह छेदों वाली बांसुरी आदि देखने को मिलते हैं और उस की बजाने की शैली भी भिन्न रूपों में पायी जाती है।
- बांसुरी, वंसी, वेणु, वंशिका आदि कई सुंदर नामो से सुसज्जित है।
- प्राचीनकाल में लोक संगीत का प्रमुख वाद्य था बाँसुरी।
- मुरली और श्री कृष्ण एक दूसरे के पर्याय रहे हैं । मुरली के बिना श्री कृष्ण की कल्पना भी नहीं की जा सकती । उनकी मुरली के नाद रूपी ब्रह्म ने सम्पूर्ण चराचर सृष्टि को आलोकित और सम्मोहित किया ।
- कृष्ण के बाद भी भारत में बाँसुरी रही, पर कुछ खोयी खोयी सी, मौन सी। मानो श्री कृष्ण की याद में उसने स्वयं को भुला दिया हो, उसका अस्तित्व तो भारत वर्ष में सदैव रहा।
- वह कृष्ण प्रिया थी, किंतु श्री हरी के विरह में जो हाल उनके गोप गोपिकाओ का हुआ कुछ वैसा ही बाँसुरी का भी हुआ।
- युग बदल गए, बाँसुरी की अवस्था जस की तस रही, युगों बाद में पंडित पन्नालाल घोष जी ने अपने अथक परिश्रम से बांसुरी वाद्य में अनेक परिवर्तन कर, उसकी वादन शैली में परिवर्तन कर बाँसुरी को पुनः भारतीय संगीत में सम्माननीय स्थान दिलाया। लेकिन उनके बाद पुनः: बाँसुरी एकाकी हो गई ।
- आज हरिप्रसाद चौरसिया जी का बाँसुरी वादन विश्व प्रसिद्ध है।
|
|
|
|
|