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राजमाता विजयाराजे सिंधिया भारती जनता पार्टी की नेता थी। (जन्म- [[1919]]  ई. [[सागर]], [[मध्य प्रदेश]], मृत्यु- जनवरी [[2001]] ई. [[ग्वालियर]])। विजयाराजे सिंधिया को ग्वालियर की राजमाता के रूप में जाना जाता था।   
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राजमाता विजयाराजे सिंधिया भारती जनता पार्टी की नेता थी। (जन्म- [[1919]]  ई. [[सागर]], [[मध्य प्रदेश]], मृत्यु- [[जनवरी]] [[2001]] ई. [[ग्वालियर]])। विजयाराजे सिंधिया को ग्वालियर की राजमाता के रूप में जाना जाता था।   
==जीवन परिचय==  
==जीवन परिचय==  
राजमाता विजयाराजे सिंधिया का जन्म 1919 ई. सागर, मध्य प्रदेश के राणा परिवार में हुआ था। विजया राजे सिंधिया के पिता श्री महेन्द्रसिंह ठाकुर जालौन ज़िला के डिप्टी कलेक्टर थे श्रीमती सिंधिया की माता श्रीमती विंदेश्वरी देवी थीं। विजयाराजे सिंधिया का विवाह के पूर्व का नाम लेखा दिव्येश्वरी था। विजया राजे सिंधिया का विवाह [[21 फ़रवरी]], [[1941]] ई. में ग्वालियर के महाराजा [[जीवाजी राव सिंधिया]] से हुआ था। विजयाराजे सिंधिया के पुत्र माधवराव सिंधिया, पुत्री वसुंधरा राजे सिंधिया और यशोधरा राजे सिंधिया हैं।
राजमाता विजयाराजे सिंधिया का जन्म 1919 ई. सागर, मध्य प्रदेश के राणा परिवार में हुआ था। विजया राजे सिंधिया के पिता श्री महेन्द्रसिंह ठाकुर जालौन ज़िला के डिप्टी कलेक्टर थे, और विजयाराजे सिंधिया की माता श्रीमती विंदेश्वरी देवी थीं। विजयाराजे सिंधिया का विवाह के पूर्व का नाम लेखा दिव्येश्वरी था। विजया राजे सिंधिया का विवाह [[21 फ़रवरी]], [[1941]] ई. में ग्वालियर के महाराजा [[जीवाजी राव सिंधिया]] से हुआ था। विजयाराजे सिंधिया के पुत्र [[माधवराव सिंधिया]], पुत्री [[वसुंधरा राजे सिंधिया]] और [[यशोधरा राजे सिंधिया]] हैं।
==राजनीति सफर==  
==राजनीति सफर==  
ग्वालियर भारत के विशालतम और संपन्नतम राजेरजवाड़ों में से एक है। विजयाराजे सिंधिया अपने पति जीवाजी राव सिंधिया की मृत्यु के बाद सन [[1962]] ई. में कांग्रेस के टिकट पर वे संसद् सदस्य बनीं थीं। अपने सैध्दांतिक मूल्यों के दिशा निर्देश के कारण विजयाराजे सिंधिया कांग्रेस छोड़कर जनसंघ में शामिल हो गईं। विजयाराजे सिंधिया का रिश्ता एक राजपरिवार से होते हुए भी वे अपनी ईमानदारी, सादगी और प्रतिबध्दता के कारण पार्टी में सर्वप्रिय बन गईं। और शीघ्र ही वे पार्टी में शक्ति स्तंभ के रूप में सामने आईं।  
ग्वालियर भारत के विशालतम और संपन्नतम राजेरजवाड़ों में से एक है। विजयाराजे सिंधिया अपने पति जीवाजी राव सिंधिया की मृत्यु के बाद सन [[1962]] ई. में कांग्रेस के टिकट पर संसद सदस्य बनीं थीं। अपने सैध्दांतिक मूल्यों के दिशा निर्देश के कारण विजयाराजे सिंधिया कांग्रेस छोड़कर जनसंघ में शामिल हो गईं। विजयाराजे सिंधिया का रिश्ता एक राजपरिवार से होते हुए भी वे अपनी ईमानदारी, सादगी और प्रतिबद्धता के कारण पार्टी में सर्वप्रिय बन गईं। और शीघ्र ही वे पार्टी में शक्ति स्तंभ के रूप में सामने आईं।  
 
[[1957]] में विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस से चुनाव लड़ा और उन्होंने दो कोणीय मुक़ाबले में हिंदू महासभा के देशपांडे को 60 हज़ार 57 मतों से पराजित किया। [[1967]] का चुनाव विजयाराजे सिंधिया ने स्वतंत्र प्रत्याशी के तौर पर लड़ा और कांग्रेस के डी. के. जाधव को एक लाख 86 हज़ार 189 मतों से पराजित किया।


1957 में विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस से चुनाव लड़ा और उन्होंने दो कोणीय मुकाबले में हिंदू महासभा के देशपांडे को 60 हजार 57 मतों से शिकस्त दी। 1967 का चुनाव विजयाराजे सिंधिया ने स्वतंत्र प्रत्याशी के तौर पर लड़ा और कांग्रेस के डी. के. जाधव को एक लाख 86 हजार 189 मतों से पराजित किया।
सन [[1989]] के आम चुनाव में विजयाराजे सिंधिया एक बार फिर [[गुना]] से भाजपा प्रत्याशी थीं। इससे पहले 22 साल पूर्व सन 1967 में राजमाता वहाँ से जीती थीं। उनके मुक़ाबले कांग्रेस ने महेंद्रसिंह कालूखेड़ा को मैदान में उतारा। कालूखेड़ा राजमाता के हाथों 1 लाख 46 हज़ार 290 वोटों से परास्त हो गए।       
सन 1989 के आम चुनाव में विजयाराजे सिंधिया एक बार फिर गुना से भाजपा प्रत्याशी थीं। इससे पहले वे 22 साल पहले सन 1967 में वहाँ से जीती थीं। उनके मुकाबले कांग्रेस ने महेंद्रसिंह कालूखेड़ा को मैदान में उतारा। कालूखेड़ा राजमाता के हाथों 1 लाख 46 हजार 290 वोटों से परास्त हो गए।       


1991 के चुनाव में पुन: विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस के शशिभूषण वाजपेयी को 55 हजार 52 मतों से शिकास्त दी। विजयाराजे सिंधिया 1996 के चुनाव में फिर उम्मीदवार बनीं और उन्होंने भाजपा के टिकट पर अपनी जीत की हैट्रिक कायम करते हुए कांग्रेस के के पी सिंह को एक लाख 30 हजार 824 मतों से पराजित किया।  
[[1991]] के चुनाव में पुन: विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस के शशिभूषण वाजपेयी को 55 हज़ार 52 मतों से पराजित किया। विजयाराजे सिंधिया [[1996]] के चुनाव में फिर उम्मीदवार बनीं और उन्होंने भाजपा के टिकट पर अपनी जीत की हैट्रिक कायम करते हुए कांग्रेस के के. पी. सिंह को एक लाख 30 हज़ार 824 मतों से पराजित किया।  


1998 के चुनाव में विजयाराजे सिंधिया ने अपनी जीत का सिलसिला चौथी बार भी लगातार जारी रखा। उन्होंने तब कांग्रेस के देवेंद्र सिंह रघुवंशी को एक लाख 29 हजार 82 मतों से पराजित कर डाला। 1999 के चुनाव में अस्वस्थ राजमाता ने अपने पुत्र माधवराव सिंधिया को यह आसंदी छोड़ दी और 1999 में माधवराव सिंधिया ने पांच उम्मीदवारों की मौजूदगी में अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भारतीय जनता पार्टी के देशराज सिंह को दो लाख 14 हजार 428 मतों से कीर्तिमान शिकास्त दी।
[[1998]] के चुनाव में विजयाराजे सिंधिया ने अपनी जीत का सिलसिला चौथी बार भी लगातार जारी रखा। उन्होंने तब कांग्रेस के देवेंद्र सिंह रघुवंशी को एक लाख 29 हज़ार 82 मतों से पराजित कर डाला। [[1999]] के चुनाव में अस्वस्थ राजमाता ने अपने पुत्र माधवराव सिंधिया को यह आसंदी छोड़ दी और 1999 में माधवराव सिंधिया ने पाँच उम्मीदवारों की मौज़ूदगी में अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भारतीय जनता पार्टी के देशराज सिंह को दो लाख 14 हज़ार 428 मतों से पराजित किया।
==मृत्यु==
ग्वालियर के राजवंश की राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने लोगों के दिलों पर बरसों राज किया। सन 1998 से राजमाता का स्वास्थ्य ख़राब रहने लगा और जनवरी, सन 2001 ई. में राजमाता विजयाराजे सिंधिया का निधन हो गया। 
==प्रेरणा स्त्रोत==
==प्रेरणा स्त्रोत==
राजमाता त्याग एवं समर्पण की प्रति मूर्ति थी। उन्होंने राजसी ठाठ-वाट का मोह त्यागकर जनसेवा को अपनाया तथा सत्ता के शिखर पर पहुंचने के बाद भी उन्होंने जनसेवा से कभी अपना मुख नहीं मोड़ा। इसलिये राजमाता को अपना प्रेरणा स्त्रोत मानकर हमें उनके पदचिन्हों एवं आदर्शों पर चलना चाहिये।       
राजमाता त्याग एवं समर्पण की प्रति मूर्ति थी। उन्होंने राजसी ठाठ-वाट का मोह त्यागकर जनसेवा को अपनाया तथा सत्ता के शिखर पर पहुँचने के बाद भी उन्होंने जनसेवा से कभी अपना मुख नहीं मोड़ा। इसलिये राजमाता को अपना प्रेरणा स्त्रोत मानकर हमें उनके पदचिन्हों एवं आदर्शों पर चलना चाहिये।  
==राजमाता पर फ़िल्म==
ग्वालियर के राजवंश की आखिरी राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने लोगों के दिलों पर बरसों राज किया। राजपथ से लोकपथ का उनका यह सफर क भी रजिया सुल्तान बनी बॉलीवुड की ड्रीमगर्ल हेमा मालिनी अब परदे पर जीवंत करने जा रही हैं। 'एक थी रानी ऐसी भी' नामक फिल्म
 
 


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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12:27, 26 सितम्बर 2010 का अवतरण

विजयाराजे सिंधिया
पूरा नाम विजयाराजे सिंधिया
अन्य नाम राजमाता विजयाराजे सिंधिया
जन्म सन 1919 ई.
जन्म भूमि सागर, मध्य प्रदेश
मृत्यु जनवरी, 2001 ई.
मृत्यु स्थान ग्वालियर, मध्य प्रदेश
मृत्यु कारण स्वास्थ्य ख़राब
पति/पत्नी जीवाजी राव सिंधिया
संतान पुत्र- माधवराव सिंधिया, पुत्री- वसुंधरा राजे सिंधिया, यशोधरा राजे सिंधिया
पार्टी भाजपा

राजमाता विजयाराजे सिंधिया भारती जनता पार्टी की नेता थी। (जन्म- 1919 ई. सागर, मध्य प्रदेश, मृत्यु- जनवरी 2001 ई. ग्वालियर)। विजयाराजे सिंधिया को ग्वालियर की राजमाता के रूप में जाना जाता था।

जीवन परिचय

राजमाता विजयाराजे सिंधिया का जन्म 1919 ई. सागर, मध्य प्रदेश के राणा परिवार में हुआ था। विजया राजे सिंधिया के पिता श्री महेन्द्रसिंह ठाकुर जालौन ज़िला के डिप्टी कलेक्टर थे, और विजयाराजे सिंधिया की माता श्रीमती विंदेश्वरी देवी थीं। विजयाराजे सिंधिया का विवाह के पूर्व का नाम लेखा दिव्येश्वरी था। विजया राजे सिंधिया का विवाह 21 फ़रवरी, 1941 ई. में ग्वालियर के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया से हुआ था। विजयाराजे सिंधिया के पुत्र माधवराव सिंधिया, पुत्री वसुंधरा राजे सिंधिया और यशोधरा राजे सिंधिया हैं।

राजनीति सफर

ग्वालियर भारत के विशालतम और संपन्नतम राजेरजवाड़ों में से एक है। विजयाराजे सिंधिया अपने पति जीवाजी राव सिंधिया की मृत्यु के बाद सन 1962 ई. में कांग्रेस के टिकट पर संसद सदस्य बनीं थीं। अपने सैध्दांतिक मूल्यों के दिशा निर्देश के कारण विजयाराजे सिंधिया कांग्रेस छोड़कर जनसंघ में शामिल हो गईं। विजयाराजे सिंधिया का रिश्ता एक राजपरिवार से होते हुए भी वे अपनी ईमानदारी, सादगी और प्रतिबद्धता के कारण पार्टी में सर्वप्रिय बन गईं। और शीघ्र ही वे पार्टी में शक्ति स्तंभ के रूप में सामने आईं।

1957 में विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस से चुनाव लड़ा और उन्होंने दो कोणीय मुक़ाबले में हिंदू महासभा के देशपांडे को 60 हज़ार 57 मतों से पराजित किया। 1967 का चुनाव विजयाराजे सिंधिया ने स्वतंत्र प्रत्याशी के तौर पर लड़ा और कांग्रेस के डी. के. जाधव को एक लाख 86 हज़ार 189 मतों से पराजित किया।

सन 1989 के आम चुनाव में विजयाराजे सिंधिया एक बार फिर गुना से भाजपा प्रत्याशी थीं। इससे पहले 22 साल पूर्व सन 1967 में राजमाता वहाँ से जीती थीं। उनके मुक़ाबले कांग्रेस ने महेंद्रसिंह कालूखेड़ा को मैदान में उतारा। कालूखेड़ा राजमाता के हाथों 1 लाख 46 हज़ार 290 वोटों से परास्त हो गए।

1991 के चुनाव में पुन: विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस के शशिभूषण वाजपेयी को 55 हज़ार 52 मतों से पराजित किया। विजयाराजे सिंधिया 1996 के चुनाव में फिर उम्मीदवार बनीं और उन्होंने भाजपा के टिकट पर अपनी जीत की हैट्रिक कायम करते हुए कांग्रेस के के. पी. सिंह को एक लाख 30 हज़ार 824 मतों से पराजित किया।

1998 के चुनाव में विजयाराजे सिंधिया ने अपनी जीत का सिलसिला चौथी बार भी लगातार जारी रखा। उन्होंने तब कांग्रेस के देवेंद्र सिंह रघुवंशी को एक लाख 29 हज़ार 82 मतों से पराजित कर डाला। 1999 के चुनाव में अस्वस्थ राजमाता ने अपने पुत्र माधवराव सिंधिया को यह आसंदी छोड़ दी और 1999 में माधवराव सिंधिया ने पाँच उम्मीदवारों की मौज़ूदगी में अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भारतीय जनता पार्टी के देशराज सिंह को दो लाख 14 हज़ार 428 मतों से पराजित किया।

मृत्यु

ग्वालियर के राजवंश की राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने लोगों के दिलों पर बरसों राज किया। सन 1998 से राजमाता का स्वास्थ्य ख़राब रहने लगा और जनवरी, सन 2001 ई. में राजमाता विजयाराजे सिंधिया का निधन हो गया।

प्रेरणा स्त्रोत

राजमाता त्याग एवं समर्पण की प्रति मूर्ति थी। उन्होंने राजसी ठाठ-वाट का मोह त्यागकर जनसेवा को अपनाया तथा सत्ता के शिखर पर पहुँचने के बाद भी उन्होंने जनसेवा से कभी अपना मुख नहीं मोड़ा। इसलिये राजमाता को अपना प्रेरणा स्त्रोत मानकर हमें उनके पदचिन्हों एवं आदर्शों पर चलना चाहिये।


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