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ऐहोल [[कर्नाटक]] के [[बीजापुर]] में स्थित, [[बादामी]] के निकट, बहुत प्राचीन स्थान है। इसे आइहोल के नाम से जाना जाता है। यहाँ से चालुक्य नरेश पुल्केशिन द्धितीय का 634 ई. का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है। यह प्रशस्ति के रुप में है और संस्कृत काव्य परम्परा में लिखा गया है। इसका रचियता जैन कवि रविकीर्ति था। इस अभिलेख में [[पुलकेशी द्वितीय]] की विजयों का वर्णन है। इस अभिलेख में पुलकेशी द्वितीय के हाथों [[हर्षवर्धन]] की पराजय का भी वर्णन है। | {{tocright}} | ||
ऐहोल [[कर्नाटक]] के [[बीजापुर]] में स्थित, [[बादामी कर्नाटक|बादामी]] के निकट, बहुत प्राचीन स्थान है। इसे आइहोल के नाम से जाना जाता है। यहाँ से चालुक्य नरेश पुल्केशिन द्धितीय का 634 ई. का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है। यह प्रशस्ति के रुप में है और संस्कृत काव्य परम्परा में लिखा गया है। इसका रचियता जैन कवि रविकीर्ति था। इस अभिलेख में [[पुलकेशी द्वितीय]] की विजयों का वर्णन है। इस अभिलेख में पुलकेशी द्वितीय के हाथों [[हर्षवर्धन]] की पराजय का भी वर्णन है। | |||
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यहाँ हमें 70 मन्दिरों के अवशेष मिलते हैं। ऐहोल का भारतीय मन्दिर वास्तुकला की पाठशाला कहा गया है। इसे 'ऐहोल का नगर' भी कहा जाता है। ऐहोल के मन्दिरों से दक्षिण भारत के हिन्दू मन्दिर वास्तुकला के इतिहास को समझने में सहायता मिलती है। ऐहोल के चालुक्यकालीन तीन मन्दिर विशेष रुप से उल्लेखनीय हैं। उनके नाम लाड़खान मन्दिर, दुर्गा मन्दिर तथा हच्चीमल्लीगुड्डी मन्दिर हैं। | यहाँ हमें 70 मन्दिरों के अवशेष मिलते हैं। ऐहोल का भारतीय मन्दिर वास्तुकला की पाठशाला कहा गया है। इसे 'ऐहोल का नगर' भी कहा जाता है। ऐहोल के मन्दिरों से दक्षिण भारत के हिन्दू मन्दिर वास्तुकला के इतिहास को समझने में सहायता मिलती है। ऐहोल के चालुक्यकालीन तीन मन्दिर विशेष रुप से उल्लेखनीय हैं। उनके नाम लाड़खान मन्दिर, दुर्गा मन्दिर तथा हच्चीमल्लीगुड्डी मन्दिर हैं। | ||
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ऐहोल कर्नाटक के बीजापुर में स्थित, बादामी के निकट, बहुत प्राचीन स्थान है। इसे आइहोल के नाम से जाना जाता है। यहाँ से चालुक्य नरेश पुल्केशिन द्धितीय का 634 ई. का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है। यह प्रशस्ति के रुप में है और संस्कृत काव्य परम्परा में लिखा गया है। इसका रचियता जैन कवि रविकीर्ति था। इस अभिलेख में पुलकेशी द्वितीय की विजयों का वर्णन है। इस अभिलेख में पुलकेशी द्वितीय के हाथों हर्षवर्धन की पराजय का भी वर्णन है।
मन्दिरों के अवशेष
यहाँ हमें 70 मन्दिरों के अवशेष मिलते हैं। ऐहोल का भारतीय मन्दिर वास्तुकला की पाठशाला कहा गया है। इसे 'ऐहोल का नगर' भी कहा जाता है। ऐहोल के मन्दिरों से दक्षिण भारत के हिन्दू मन्दिर वास्तुकला के इतिहास को समझने में सहायता मिलती है। ऐहोल के चालुक्यकालीन तीन मन्दिर विशेष रुप से उल्लेखनीय हैं। उनके नाम लाड़खान मन्दिर, दुर्गा मन्दिर तथा हच्चीमल्लीगुड्डी मन्दिर हैं।
लाड़खान मन्दिर
लाड़खान मन्दिर 450 ई. में निर्मित माना जाता है। यह वर्गाकार है। नीची तथा सपाट छत वाले इस वर्गाकार भवन की प्रत्येक दीवार 50 फुट लम्बी है। यह मन्दिर अपनी विशालता, रचना की सरलता, नक्शे की वास्तुकला के विवरण, इन सब बातों में गुफा मन्दिरों से मिलता जुलता है।
दुर्गा मन्दिर
दुर्गा मन्दिर सम्भवतः छठी सदी का है। यह मन्दिर बौद्ध चैत्य को ब्राह्मण धर्म के मन्दिर के रुप में उपयोग में लाने का एक प्रयोग है। इस मन्दिर का ढाँचा अर्द्धवृत्ताकार है।
हच्चीमल्लीगुड्डी मन्दिर
हच्चीमल्लीगुड्डी मन्दिर बहुत कुछ दुर्गा मन्दिर से मिलता-जुलता है। यद्यपि यह उससे बनावट में अधिक सरल तथा आकार में छोटा है। भीतरी कक्ष तथा मुख्य हॉल के बीच अन्तराल इसकी एक नई विशेषता है। यह मन्दिर अभी अधूरा है। ऐहोल में सबसे बाद में बनने वाले मन्दिरों में मेगुत्ती का जैन मन्दिर है, 634 ई. का है।
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