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*<u>[[हिन्दू धर्म संस्कार|हिन्दू धर्म संस्कारों]] में कर्णवेध संस्कार नवम् संस्कार है।</u>  
*<u>[[हिन्दू धर्म संस्कार|हिन्दू धर्म संस्कारों]] में कर्णवेध संस्कार नवम संस्कार है।</u>  
*यह संस्कार कर्णेन्दिय में श्रवण शक्ति की वृद्धि, कर्ण में आभूषण पहनने तथा स्वास्थ्य रक्षा के लिये किया जाता है।  
*यह संस्कार कर्णेन्दिय में श्रवण शक्ति की वृद्धि, कर्ण में आभूषण पहनने तथा स्वास्थ्य रक्षा के लिये किया जाता है।  
*विशेषकर कन्याओं के लिये तो कर्णवेध नितान्त आवश्यक माना गया है।  
*विशेषकर कन्याओं के लिये तो कर्णवेध नितान्त आवश्यक माना गया है।  
*इसमें दोनों कानों को वेध करके उसकी नस को ठीक रखने के लिए उसमें सुवर्ण कुण्डल धारण कराया जाता है।  
*इसमें दोनों कानों को वेध करके उसकी नस को ठीक रखने के लिए उसमें सुवर्ण कुण्डल धारण कराया जाता है।  
*इससे शारीरिक लाभ होता है।
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05:35, 2 नवम्बर 2010 का अवतरण

  • हिन्दू धर्म संस्कारों में कर्णवेध संस्कार नवम संस्कार है।
  • यह संस्कार कर्णेन्दिय में श्रवण शक्ति की वृद्धि, कर्ण में आभूषण पहनने तथा स्वास्थ्य रक्षा के लिये किया जाता है।
  • विशेषकर कन्याओं के लिये तो कर्णवेध नितान्त आवश्यक माना गया है।
  • इसमें दोनों कानों को वेध करके उसकी नस को ठीक रखने के लिए उसमें सुवर्ण कुण्डल धारण कराया जाता है।
  • इससे शारीरिक लाभ होता है।


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