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| class="headbg16" style="border:1px solid #B0B0FF; padding:10px;" valign="top" | <div class="headbg15" style="padding-left:8px;"><span style="color:#191406">'''विशेष आलेख'''</span></div>
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<center>'''[[ब्रज]]'''</center>
[[चित्र:Braj-Kolaz.jpg|right|130px|ब्रज के विभिन्न द्रश्य|link=ब्रज]]
*ब्रज शब्द का प्रयोग [[वेद|वेदों]], [[रामायण]] और [[महाभारत]] के काल में गोष्ठ- 'गो-स्थान’ जैसे लघु स्थल के लिये होता था, वहीं पौराणिक काल में ‘गोप-बस्ती’ जैसे कुछ बड़े स्थानों के लिये किया जाने लगा।
*भागवत में ‘ब्रज’ क्षेत्रवायी अर्थ में ही प्रयुक्त हुआ है। वहाँ इसे एक छोटे ग्राम की संज्ञा दी गई है। उसमें ‘पुर’ से छोटा ‘ग्राम’ और उससे भी छोटी बस्ती को ‘ब्रज’ कहा गया है। 16वीं शताब्दी में ‘ब्रज’ प्रदेशवायी होकर ‘ब्रजमंडल’ हो गया और तब उसका आकार '''[[ब्रज चौरासी कोस की यात्रा|84 कोस]]''' का माना जाने लगा था।
*आज जिसे हम ब्रज क्षेत्र मानते हैं उसकी दिशाऐं, उत्तर में पलवल, [[हरियाणा]], दक्षिण में [[ग्वालियर]], [[मध्य प्रदेश]], पश्चिम में [[भरतपुर]], [[राजस्थान]] और पूर्व में [[एटा]] [[उत्तर प्रदेश]] को छूती हैं। [[मथुरा]]-[[वृन्दावन]] ब्रज के केन्द्र हैं।
*ब्रज के वन–उपवन, कुन्ज-निकुन्ज, श्री [[यमुना]] व गिरिराज अत्यन्त मोहक हैं। पक्षियों का मधुर स्वर एकांकी स्थली को मादक एवं मनोहर बनाता है। [[मोर|मोरों]] की बहुतायत तथा उनकी पिऊ-पिऊ की आवाज़ से वातावरण गुंजायमान रहता है।
*ब्रज के प्राचीन संगीतज्ञों की प्रामाणिक जानकारी 16वीं शताब्दी के [[भक्तिकाल]] से मिलती है। इस काल में अनेकों संगीतज्ञ वैष्णव संत हुए। संगीत शिरोमणि [[स्वामी हरिदास जी]], इनके गुरु आशुधीर जी तथा उनके शिष्य [[तानसेन]] आदि का नाम सर्वविदित है।
*ब्रजभूमि पर्वों एवं त्योहारों की भूमि है। यहाँ की संस्कृति उत्सव प्रधान है। यहाँ हर ऋतु माह एवं दिनों में पर्व और त्योहार चलते हैं। [[होली]] ब्रज का विशेष त्योहार है। इसमें [[यज्ञ]] रूप में नवीन अन्न की बालें भूनी जाती है।  [[ब्रज|.... '''और पढ़ें''']]

12:36, 4 नवम्बर 2010 का अवतरण