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*देवता न बड़ा होता है, न छोटा, न शक्तिशाली होता है, न अशक्त । वह उतना ही बड़ा होता है जितना बड़ा उसे उपासक बनाना चाहता है। -'''हज़ारीप्रसाद द्विवेदी''' (पुनर्नवा, पृ॰ 22) | |||
*कर्म की दृढ़ता वस्तुत: व्यक्ति की मानसिक दृढ़ता ही है। शेष सब पृथक ही ठहरते हैं। -'''तिरुवल्लुवर''' (तिरुक्कुरल, 661) | |||
*किसी भी भाग्यवान के विषय में मृत्यु से पहले निर्णय मत दो। -'''एपोक्रिफ़ा''' (पुरोहित।11।28 | |||
*मनुष्य में तीनों चीज़ें वास करती हैं- मनुष्यता, पशुता और दिव्यता। -'''शिवानंद''' (दिव्योपदेश 2।26) | |||
*देश प्रेम हो और भाषा-प्रेम की चिन्ता न हो, यह असम्भव है। -'''[[महात्मा गाँधी]]''' (गांधी वाड्मय, खंड 19, पृ॰ 515) | |||
*संसार में नाम और द्रव्य की महिमा कोई आज भी ठीक-ठीक नहीं जान पाया। -'''शरतचंद्र चट्टोपाध्याय''' (शेष परिचय,पृ॰31) | |||
*परंपरा को स्वीकार करने का अर्थ बंधन नहीं, अनुशासन का स्वेच्छा से वरण है। -'''विद्यानिवास मिश्र''' (परंपरा बंधन नहीं, पृ॰53 ) | |||
*असाधारण प्रतिभा को चमत्कारिक वरदान की आवश्यकता नहीं होती और साधारण को अपनी त्रुटियों की इतनी पहचान नहीं होती कि वह किसी पूर्णता के वरदान के लिए साधना करे। -'''[[महादेवी वर्मा]]''' (सप्तपर्णा, पृ॰49) | |||
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10:06, 21 नवम्बर 2010 का अवतरण
- देवता न बड़ा होता है, न छोटा, न शक्तिशाली होता है, न अशक्त । वह उतना ही बड़ा होता है जितना बड़ा उसे उपासक बनाना चाहता है। -हज़ारीप्रसाद द्विवेदी (पुनर्नवा, पृ॰ 22)
- कर्म की दृढ़ता वस्तुत: व्यक्ति की मानसिक दृढ़ता ही है। शेष सब पृथक ही ठहरते हैं। -तिरुवल्लुवर (तिरुक्कुरल, 661)
- किसी भी भाग्यवान के विषय में मृत्यु से पहले निर्णय मत दो। -एपोक्रिफ़ा (पुरोहित।11।28
- मनुष्य में तीनों चीज़ें वास करती हैं- मनुष्यता, पशुता और दिव्यता। -शिवानंद (दिव्योपदेश 2।26)
- देश प्रेम हो और भाषा-प्रेम की चिन्ता न हो, यह असम्भव है। -महात्मा गाँधी (गांधी वाड्मय, खंड 19, पृ॰ 515)
- संसार में नाम और द्रव्य की महिमा कोई आज भी ठीक-ठीक नहीं जान पाया। -शरतचंद्र चट्टोपाध्याय (शेष परिचय,पृ॰31)
- परंपरा को स्वीकार करने का अर्थ बंधन नहीं, अनुशासन का स्वेच्छा से वरण है। -विद्यानिवास मिश्र (परंपरा बंधन नहीं, पृ॰53 )
- असाधारण प्रतिभा को चमत्कारिक वरदान की आवश्यकता नहीं होती और साधारण को अपनी त्रुटियों की इतनी पहचान नहीं होती कि वह किसी पूर्णता के वरदान के लिए साधना करे। -महादेवी वर्मा (सप्तपर्णा, पृ॰49)