"अजीत सिंह": अवतरणों में अंतर
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अजीत सिंह मारवाड़ के राजा जसवन्त सिंह का पुत्र था। उसका जन्म 1679 ई. में [[लाहौर]] में पिता की मृत्यु के बाद हुआ। अजीत सिंह को [[दिल्ली]] लाया गया, जहाँ पर [[औरंगज़ेब]] उसे [[मुसलमान]] बना लेना चाहता था। राठौर सरदार दुर्गादास बड़े साहस के साथ अजीत सिंह को दिल्ली से निकाल कर | अजीत सिंह मारवाड़ के राजा जसवन्त सिंह का पुत्र था। उसका जन्म 1679 ई. में [[लाहौर]] में पिता की मृत्यु के बाद हुआ। अजीत सिंह को [[दिल्ली]] लाया गया, जहाँ पर [[औरंगज़ेब]] उसे [[मुसलमान]] बना लेना चाहता था। राठौर सरदार दुर्गादास बड़े साहस के साथ अजीत सिंह को दिल्ली से निकाल कर मारवाड़ ले गया। अजीत सिंह के मामले को लेकर मारवाड़ के राठौर सरदारों और [[मेवाड़]] के राणा तथा औरंगज़ेब में लम्बा युद्ध छिड़ गया, जो 1709 ई. तक चला। जब औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद उसके लड़के और उत्तराधिकारी बादशाह बहादुर शाह प्रथम ने राजपूतों से सुलह कर ली। अजीत सिंह ने अपनी कन्या का विवाह बारशाह फ़र्रुख़सियर से किया और उससे सुलह कर ली। जिससे मुग़ल दरबार में उसका प्रभाव बढ़ गया। सैयद बन्धुओं ने उसकी सहायता माँगी और उसको [[अजमेर]]-[[गुजरात]] का सूबेदार नियुक्त कर दिया। इस प्रकार अजमेर से पश्चिमी समुद्र तट तक का सारा प्रदेश उसके अधीन हो गया। उसे हिन्दुओं को संगठित करके मुग़ल सल्तनत का तख़्ता पलट करने का अच्छा अवसर प्राप्त हुआ था, किन्तु उसने इस अवसर का कोई भी लाभ नहीं उठाया। उसके लड़के भक्तसिंह ने रहस्यमय रीति से उसकी हत्या कर दी।<ref>भारतीय इतिहास कोश पृष्ठ संख्या-07</ref> | ||
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14:05, 4 दिसम्बर 2010 का अवतरण
अजीत सिंह मारवाड़ के राजा जसवन्त सिंह का पुत्र था। उसका जन्म 1679 ई. में लाहौर में पिता की मृत्यु के बाद हुआ। अजीत सिंह को दिल्ली लाया गया, जहाँ पर औरंगज़ेब उसे मुसलमान बना लेना चाहता था। राठौर सरदार दुर्गादास बड़े साहस के साथ अजीत सिंह को दिल्ली से निकाल कर मारवाड़ ले गया। अजीत सिंह के मामले को लेकर मारवाड़ के राठौर सरदारों और मेवाड़ के राणा तथा औरंगज़ेब में लम्बा युद्ध छिड़ गया, जो 1709 ई. तक चला। जब औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद उसके लड़के और उत्तराधिकारी बादशाह बहादुर शाह प्रथम ने राजपूतों से सुलह कर ली। अजीत सिंह ने अपनी कन्या का विवाह बारशाह फ़र्रुख़सियर से किया और उससे सुलह कर ली। जिससे मुग़ल दरबार में उसका प्रभाव बढ़ गया। सैयद बन्धुओं ने उसकी सहायता माँगी और उसको अजमेर-गुजरात का सूबेदार नियुक्त कर दिया। इस प्रकार अजमेर से पश्चिमी समुद्र तट तक का सारा प्रदेश उसके अधीन हो गया। उसे हिन्दुओं को संगठित करके मुग़ल सल्तनत का तख़्ता पलट करने का अच्छा अवसर प्राप्त हुआ था, किन्तु उसने इस अवसर का कोई भी लाभ नहीं उठाया। उसके लड़के भक्तसिंह ने रहस्यमय रीति से उसकी हत्या कर दी।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय इतिहास कोश पृष्ठ संख्या-07