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[[कर्नाटक]] के [[बेलारी ज़िला|बेलारी ज़िले]] में स्थित संगनकल्लू से नव- पाषाणयुगीन तथा ताम्र- पाषाणयुगीन संस्कृतियों के प्रमाण मिले हैं। 1872 ई. में इस स्थल से घर्षित पाषाण कुल्हाड़ियाँ प्राप्त हुई हैं। [[1884]] ई. में इस स्थल के नजदीक एक पहाड़ी पर शैल चित्र तथा उकेरी गई मानव, हस्ति, वृषभ, पक्षी तथा तारों की आकृतियों की खोज की गई। इस क्षेत्र में दो राखी-ढेरियाँ पाई गई हैं। प्रथम राखी ढेरी के उत्खनन में तीन चरण अनावृत्त किए हैं।  
[[कर्नाटक]] के [[बेलारी ज़िला|बेलारी ज़िले]] में स्थित संगनकल्लू से नव- पाषाणयुगीन तथा ताम्र- पाषाणयुगीन संस्कृतियों के प्रमाण मिले हैं। [[1872]] ई. में इस स्थल से घर्षित पाषाण कुल्हाड़ियाँ प्राप्त हुई हैं। [[1884]] ई. में इस स्थल के नजदीक एक पहाड़ी पर शैल चित्र तथा उकेरी गई मानव, हस्ति, वृषभ, पक्षी तथा तारों की आकृतियों की खोज की गई। इस क्षेत्र में दो राखी-ढेरियाँ पाई गई हैं। प्रथम राखी ढेरी के उत्खनन में तीन चरण अनावृत्त किए हैं।  
#प्रथम चरण में बेसाल्ट व र्क्वाट्ज से निर्मित उपकरण प्राप्त हुए हैं।  
#प्रथम चरण में बेसाल्ट व र्क्वाट्ज से निर्मित उपकरण प्राप्त हुए हैं।  
#दूसरा चरण नव- प्रस्तरकालीन हैं। जो दो उप चरणों में विभक्त किया गया हैं पहला उप चरण 1600 वर्ष ई. पू. से प्राचीन हैं तथा दूसरा उपचरण ताम्र- प्रस्तरकालीन है, जो लगभग ई. पू. 1600 से 1500 का माना गया है।  
#दूसरा चरण नव- प्रस्तरकालीन हैं। जो दो उप चरणों में विभक्त किया गया हैं पहला उप चरण 1600 वर्ष ई. पू. से प्राचीन हैं तथा दूसरा उपचरण ताम्र- प्रस्तरकालीन है, जो लगभग ई. पू. 1600 से 1500 का माना गया है।  
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संगनकल्लू से उत्खनित नव- प्रस्तर चरण में वृत्ताकार झोंपड़ियो के अवशेष मिले हैं। फर्श ग्रेनाइट से बनी हुई है। झोंपड़ियों की छ्प्पर बाँस के घेरे से निर्मित है। एक झोंपड़ी के अन्दर चूल्हे के अवशेष हैं। इस झोंपड़ी को तीन पाषाण खण्डों से बनाया गया है। इनके अतिरिक्त यहाँ से तीन कुल्हाड़ियाँ, एक गोला तथा पात्र को आधार प्रदान करने के लिए तीन चपटे पाषाण खण्ड भी प्राप्त हुए हैं।  
संगनकल्लू से उत्खनित नव- प्रस्तर चरण में वृत्ताकार झोंपड़ियो के अवशेष मिले हैं। फर्श ग्रेनाइट से बनी हुई है। झोंपड़ियों की छ्प्पर बाँस के घेरे से निर्मित है। एक झोंपड़ी के अन्दर चूल्हे के अवशेष हैं। इस झोंपड़ी को तीन पाषाण खण्डों से बनाया गया है। इनके अतिरिक्त यहाँ से तीन कुल्हाड़ियाँ, एक गोला तथा पात्र को आधार प्रदान करने के लिए तीन चपटे पाषाण खण्ड भी प्राप्त हुए हैं।  


नव- प्रस्तरकालीन दोनों ही चरणों से घर्षित पाषाण कुल्हाड़ियाँ, हथगोले, हथौड़े, छेनी, लोढे, फनाकार उपकरण इत्यादि की प्राप्ति उल्लेखनीय है। मृद् भाण्डों के अंतर्गत हस्त- निर्मित लाल तथा भूरे पात्र हैं। इनमें गोल तथा टोंटीदार कटोरे, बिना किनारों के पात्र एवं छिद्रित पात्र मुख्य हैं। नवप्रस्तर और ताम्रप्रस्तर स्तरों के मृणपात्रों में कुछ अंतर दिखाई देता है। इनमें मोटे, भूरे तथा काले पात्रों की अधिकता है। सबसे ऊपरी स्तर से काले लोहित भाण्डों में लम्बी ग्रीवायुक्त घटों की प्राप्ति उल्लेखीय है, क्योंकि इस प्रकार के मृद्भाण्ड महाराष्ट्र के ताम्र- प्रस्तरकालीन प्रसिद्ध जोर्वे शैली में निर्मित मृद्भाण्डों सें मिलते- जुलते हैं। मृणमूर्तियों में वृषभ तथा पक्षी की आकृतियों के अवशेष मिले हैं। पशु अस्थियों में इस स्थल से कुत्तों के अवशेष तथा बारहसिंघा के अस्तित्व को पहचाना गया है। अनुमान किया गया है कि राखी- ढेरी में गोबर के ढेरों को जलाने के समय तापमान 9000 से 9500 तथा 11000 से 12500 से था। इस स्थल से प्राप्त प्रमाण से स्पष्ट है कि राखी- ढेरियों का निर्माण गोशालाई मलबे से हुआ था।  
नव- प्रस्तरकालीन दोनों ही चरणों से घर्षित पाषाण कुल्हाड़ियाँ, हथगोले, हथौड़े, छेनी, लोढे, फनाकार उपकरण इत्यादि की प्राप्ति उल्लेखनीय है। मृद् भाण्डों के अंतर्गत हस्त- निर्मित लाल तथा भूरे पात्र हैं। इनमें गोल तथा टोंटीदार कटोरे, बिना किनारों के पात्र एवं छिद्रित पात्र मुख्य हैं। नवप्रस्तर और ताम्रप्रस्तर स्तरों के मृणपात्रों में कुछ अंतर दिखाई देता है। इनमें मोटे, भूरे तथा काले पात्रों की अधिकता है। सबसे ऊपरी स्तर से काले लोहित भाण्डों में लम्बी ग्रीवायुक्त घटों की प्राप्ति उल्लेखीय है, क्योंकि इस प्रकार के मृद्भाण्ड [[महाराष्ट्र]] के ताम्र- प्रस्तरकालीन प्रसिद्ध जोर्वे शैली में निर्मित मृद्भाण्डों सें मिलते- जुलते हैं। मृणमूर्तियों में वृषभ तथा पक्षी की आकृतियों के अवशेष मिले हैं। पशु अस्थियों में इस स्थल से कुत्तों के अवशेष तथा बारहसिंघा के अस्तित्व को पहचाना गया है। अनुमान किया गया है कि राखी- ढेरी में गोबर के ढेरों को जलाने के समय तापमान 9000 से 9500 तथा 11000 से 12500 से था। इस स्थल से प्राप्त प्रमाण से स्पष्ट है कि राखी- ढेरियों का निर्माण गोशालाई मलबे से हुआ था।  


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10:08, 13 दिसम्बर 2010 का अवतरण

कर्नाटक के बेलारी ज़िले में स्थित संगनकल्लू से नव- पाषाणयुगीन तथा ताम्र- पाषाणयुगीन संस्कृतियों के प्रमाण मिले हैं। 1872 ई. में इस स्थल से घर्षित पाषाण कुल्हाड़ियाँ प्राप्त हुई हैं। 1884 ई. में इस स्थल के नजदीक एक पहाड़ी पर शैल चित्र तथा उकेरी गई मानव, हस्ति, वृषभ, पक्षी तथा तारों की आकृतियों की खोज की गई। इस क्षेत्र में दो राखी-ढेरियाँ पाई गई हैं। प्रथम राखी ढेरी के उत्खनन में तीन चरण अनावृत्त किए हैं।

  1. प्रथम चरण में बेसाल्ट व र्क्वाट्ज से निर्मित उपकरण प्राप्त हुए हैं।
  2. दूसरा चरण नव- प्रस्तरकालीन हैं। जो दो उप चरणों में विभक्त किया गया हैं पहला उप चरण 1600 वर्ष ई. पू. से प्राचीन हैं तथा दूसरा उपचरण ताम्र- प्रस्तरकालीन है, जो लगभग ई. पू. 1600 से 1500 का माना गया है।
  3. तीसरा चरण महाश्मकालीन लौह सांस्कृतिक चरण हैं। दूसरी राखी- ढेरी के उत्खनन से प्राप्त प्रमाण भी पूर्ववर्ती अवशेषों के समान हैं यहाँ से नव- प्रस्तरकाल से पूर्व के दो सांस्कृतिक चरणों का अस्तित्व प्रकाश में आया हैं, जो मध्य- प्रस्तर काल से सम्बद्ध है।

संगनकल्लू से उत्खनित नव- प्रस्तर चरण में वृत्ताकार झोंपड़ियो के अवशेष मिले हैं। फर्श ग्रेनाइट से बनी हुई है। झोंपड़ियों की छ्प्पर बाँस के घेरे से निर्मित है। एक झोंपड़ी के अन्दर चूल्हे के अवशेष हैं। इस झोंपड़ी को तीन पाषाण खण्डों से बनाया गया है। इनके अतिरिक्त यहाँ से तीन कुल्हाड़ियाँ, एक गोला तथा पात्र को आधार प्रदान करने के लिए तीन चपटे पाषाण खण्ड भी प्राप्त हुए हैं।

नव- प्रस्तरकालीन दोनों ही चरणों से घर्षित पाषाण कुल्हाड़ियाँ, हथगोले, हथौड़े, छेनी, लोढे, फनाकार उपकरण इत्यादि की प्राप्ति उल्लेखनीय है। मृद् भाण्डों के अंतर्गत हस्त- निर्मित लाल तथा भूरे पात्र हैं। इनमें गोल तथा टोंटीदार कटोरे, बिना किनारों के पात्र एवं छिद्रित पात्र मुख्य हैं। नवप्रस्तर और ताम्रप्रस्तर स्तरों के मृणपात्रों में कुछ अंतर दिखाई देता है। इनमें मोटे, भूरे तथा काले पात्रों की अधिकता है। सबसे ऊपरी स्तर से काले लोहित भाण्डों में लम्बी ग्रीवायुक्त घटों की प्राप्ति उल्लेखीय है, क्योंकि इस प्रकार के मृद्भाण्ड महाराष्ट्र के ताम्र- प्रस्तरकालीन प्रसिद्ध जोर्वे शैली में निर्मित मृद्भाण्डों सें मिलते- जुलते हैं। मृणमूर्तियों में वृषभ तथा पक्षी की आकृतियों के अवशेष मिले हैं। पशु अस्थियों में इस स्थल से कुत्तों के अवशेष तथा बारहसिंघा के अस्तित्व को पहचाना गया है। अनुमान किया गया है कि राखी- ढेरी में गोबर के ढेरों को जलाने के समय तापमान 9000 से 9500 तथा 11000 से 12500 से था। इस स्थल से प्राप्त प्रमाण से स्पष्ट है कि राखी- ढेरियों का निर्माण गोशालाई मलबे से हुआ था।


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